प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर की कूटनीति के अब दूसरे एशियाई देश भी मुरीद हो रहे हैं. भारत की तटस्थ विदेश नीति का अनुसरण करते हुए इंडोनेशिया भी ‘एशियाई-वे’ से महाशक्तिशाली देशों से अपने संबंध बनाना चाहता है. यानी अमेरिका से भी मित्रता और रुस-चीन से भी दोस्ती का हाथ.
भारत की गुटनिरेपक्षता का समर्थन करते हुए खुद इंडोनेशिया के नए राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो ने कहा है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में “कूटनीति, बातचीत और ‘एशियाई तरीके’ (एशियाई-वे) ने तनाव को कम करने में मदद की है.” दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के दस साल में भारत की विदेश नीति और कूटनीति को नई दिशा मिली है. अब हिंदुस्तान दुश्मनों की आंख में आंख डालकर ना सिर्फ जवाब देता है बल्कि उन देशों से भी रिश्ते मधुर करने की कोशिश करता है, जिनसे खटास है. अब भारत ना झुकता है, ना मित्र देशों को झुकने देता है. किसी भी कठोर एक्शन से पहले भारत तनाव कम करने के लिए हर कोशिश करता है और बातचीत का रास्ता अपनाता है. भारत की इसी कूटनीति और दुनिया में उभरती क्षमता को छोटे और महाशक्तिशाली देश भी लोहा मानने लगे हैं.
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति का ‘एशियन वे’ क्या है ?
इसी साल फरवरी में इंडोनेशिया में हुए आम चुनावों में रक्षा मंत्री प्रबोवो सुबिआंतो ने भारी अंतर से जीत हासिल की है. प्रबोवो सुबिआंतों ने निवर्तमान राष्ट्रपति के बेटे और इंडोनेशिया के उपराष्ट्रपति जिब्रान राकाबुमिंग राका को हराया है. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो ने बातचीत और कूटनीति के एशियन वे की बात करके चौंका दिया, भारत की तारीफ करते हुए राष्ट्रपति प्रबोवो ने कहा है कि “हम अमेरिका, जापानियों, कोरियाई लोगों, यूरोपीय लोगों को आमंत्रित करते हैं. तथ्य यह है कि हम आपके साथ दोस्त हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि हम चीन, भारत, रूस के साथ दोस्त नहीं हो सकते.” आसान शब्दों में राष्ट्रपति प्रबोवो की बात समझें तो कहने का मतलब ये है कि अगर आपकी किसी देश से दोस्ती है, तो ऐसा नहीं है कि दोस्त देश के दुश्मन, आपका दुश्मन बन जाता है. भारत का उदाहरण देते हुए इंडोनेशियाई राष्ट्रपति ने कहा कि “दक्षिण पूर्व एशिया में युद्ध, विदेशी उपनिवेशीकरण और आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप होता रहा है, पर इंडोनेशिया ने इसे विदेशी हस्तक्षेप के बिना हल किया. कई बार तनाव दूर करने के लिए हमने मिलकर बात भी की. कूटनीति, बातचीत और “एशियाई तरीके” ने तनाव को कम करने में मदद की.” (https://x.com/Huma_Siddiqui/status/1788484457168609749).
चीन और अमेरिका से खुले हैं बातचीत के रास्ते: प्रबोवो
चीन और अमेरिका दो महाशक्तिशाली देशों के बीच छिड़ी प्रतिस्पर्धा पर इंडोनेशियाई राष्ट्रपति ने बेहद ही सधी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, इंडोनेशिया दोनों देशों के लिए बहुत खुला है. चीन से इंडोनेशिया के संबंध बहुत अच्छे नहीं है. साउथ चाइना सी के द्वीप को लेकर चीन-इंडोनेशिया में कई बार तनातनी हो चुकी है. पर ‘एशियाई वे’ (भारत की कूटनीति) के जरिए नए राष्ट्रपति चीन के साथ बातचीत के जरिए तनाव कम कर रहे हैं. तभी तो राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद अप्रैल में प्रबोवो सुबिआंतो ने अपनी पहली विदेश यात्रा पर चीन, जापान और मलेशिया का दौरा किया था. पिछले नवंबर में एक क्षेत्रीय मंच पर, प्रबोवो ने कहा था कि “इंडोनेशिया, गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति के लिए प्रतिबद्ध है और चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखेगा.” विदेश नीति और कूटनीति के चलते ही इजरायल और हमास में जारी जंग के बीच दुनिया के सबसे बड़ा मुस्लिम देश इंडोनेशिया के एक कदम से सभी हैरान रह गए थे. ओईसीडी यानी आर्थिक सहयोग और विकास संगठन में शामिल होने के बदले इंडोनेशिया, पिछले महीने इजरायल के साथ राजनयिक संबंध बहाल करने की प्रक्रिया शुरू करने पर सहमत हो गया है.
भारत-इंडोनेशिया मिलकर चीन-मालदीव को देंगे टक्कर
मालदीव के चीन के साथ बढ़ते प्रेम के बीच इंडोनेशिया के साथ भारत की मित्रता प्रगाढ़ हो रही है. भारत और इंडोनेशिया ने 3 मई को समुद्री सुरक्षा और सैन्य उपकरणों के उत्पादन सहित समग्र द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को और अधिक विस्तारित करने का संकल्प लिया. दिल्ली में हुई सातवीं भारत-इंडोनेशिया संयुक्त रक्षा सहयोग समिति (जेडीसीसी) की बैठक में दोनों देशों के बीच रक्षा और रणनीतिक संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई. बैठक की सह-अध्यक्षता रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने और उनके इंडोनेशियाई समकक्ष एयर मार्शल डॉनी एर्मावान तौफांटो ने की.
भारत और इंडोनेशिया में रक्षा के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक संबंध भी है. हिंदू, बौद्ध और बाद में मुस्लिम धर्म ने भारत के तटों से इंडोनेशिया की यात्रा की थी. इंडोनेशियाई की लोक कला और नाटकों में रामायण और महाभारत के महान महाकाव्यों की कहानियों की झलक साफ झलकती है. अब भारत की कूटनीति की झलक भी इंडोनेशिया में दिखने लगी है. विदेश नीति के जरिए इंडोनेशिया बड़े-बड़े तनाव को भी बातचीत के जरिए सुलझाने का समर्थन करने लगा है.