नए थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कमान संभालने के साथ ही हुंकार कर भर दी है कि अगर कोई युद्ध होता है तो सेना के तीनों अंगों के समन्वय के साथ ‘फुल स्पेक्ट्रम’ के जरिए मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा.
सेना प्रमुख ने कहा कि ‘आज वैश्विक समीकरण बदल रहे है. वर्तमान दौर की लड़ाई का नया रूप ले रही है, हमे न केवल इस दिशा में अग्रसर रहने की ज़रूरत है बल्कि सैनिक को अत्याधुनिक हथियारों से लैस कर युद्ध पद्धति और रणनीति को बेहतर करने की ज़रूरत है.”
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना की कमान संभालने के पहले दिन, थलसेना प्रमुख ने सोमवार को साउथ ब्लॉक में मीडिया से बात करते हुए कहा कि “मेरा प्रयास रहेगा कि तीनों सेना के बीच सिनर्जी और समन्वय के साथ कॉन्फ्लिक्ट के समय में फुल स्पेक्ट्रम के साथ सदैव तत्पर रहे.” जनरल द्विवेदी ने कहा कि “इससे भारत के राष्ट्र-हितों को सुरक्षित किया जा सकेगा और हम ‘विकसित भारत 2047’ का मजबूत स्तंभ बन सकेंगे.”
इससे पहले थलसेना प्रमुख ने कार्यभार संभालने के पहले दिन की शुरुआत नेशनल वॉर मेमोरियल (राष्ट्रीय समर स्मारक) पर वीरगति को प्राप्त सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित कर की. इसके बाद साउथ ब्लॉक लॉन में सैनिकों की टुकड़ी से सेल्यूटिंग गार्ड लिया.
जनरल द्विवेदी ने कहा कि “आज भारतीय थलसेना आधुनिकरण के पथ पर अग्रसर है उस दिशा में आत्मनिर्भरता को पूर्णतः हासिल करने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह से तैयार है और आत्मनिर्भरता को और ज़्यादा से ज़्यादा स्वदेशी वॉर सिस्टम को सेना में शामिल करेंगे.” सेनाध्यक्ष ने कहा कि “मुझे सौंपी गई जिम्मेदारी के साथ मैं देश और भारतीय नागरिकों को विश्वास दिलाता हूं कि भारतीय सेना हर चुनौतियों का सामना करने के लिए पूर्णतः सक्षम और तैयार है.” (https://x.com/neeraj_rajput/status/1807634235391619175)
दुनियाभर में तेजी से बदल रही जियो-पॉलिटिक्स से और तकनीक के माध्यम से आधुनिक युद्ध का रुख बदलने के बीच जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने भारतीय सेना के 30वें प्रमुख के तौर पर कमान संभाली है. उन्हें जनरल मनोज पांडे के रिटायरमेंट पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना का चीफ बनाया गया है. जनरल द्विवेदी फिलहाल भारतीय सेना के सह-प्रमुख (वाइस चीफ) के पद पर तैनात थे.
सह-सेना प्रमुख बनाए जाने से पहले ले.जनरल द्विवेदी (2022-24) भारतीय सेना की उधमपुर स्थित उत्तरी कमान के कमांडर (जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ) थे. पूरे जम्मू-कश्मीर की आंतरिक सुरक्षा से लेकर पाकिस्तान से सटी एलओसी (लाइन ऑफ कंट्रोल) और पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी.
जनरल द्विवेदी ने ऐसे समय में कमान संभाली जब शनिवार को ही पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी लाइन ऑफ एक्युअल कंट्रोल (एलएसी) पर बेहद ही संवेदनशील डीबीओ सेक्टर में एक टैंक के नदी में बहने से पांच सैनिकों की मौत हो गई थी.
1964 में जन्मे जनरल द्विवेदी, 1984 में भारतीय सेना की जम्म-कश्मीर राइफल्स (जैकरिफ) में कमीशन हुए थे. वे मध्य प्रदेश के रीवा स्थित सैनिक स्कूल के पास आउट हैं और यूएस वार कॉलेज से भी पढ़ाई कर चुके हैे. जैकरिफ से ताल्लुक रखने वाले वे पहले सेना प्रमुख हैं. जनरल द्विवेदी को पूर्वी, पश्चिमी और उत्तरी थिएटर में ऑपरेशन तैनाती का पूरा अनुभव है, साथ ही काउंटर-टेररिज्म में भी उन्हें खासा अनुभव है.
खास बात ये है कि रीवा के जिस सैनिक स्कूल से जनरल द्विवेदी पास-आउट हुए हैं वहीं से नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी भी पढ़े हैं. स्कूल में दोनों एक ही कक्षा के छात्र थे.
चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के तौर पर जनरल द्विवेदी के सामने देश के सामने सुरक्षा से जुड़ी बड़ी चुनौतियां सामने हैं. जम्मू-क्षेत्र में एक बार फिर सिर उठाता आतंकवाद है तो एलएसी पर चीन से तनातनी जारी है. राष्ट्र सुरक्षा में ग्रे-जोन वारफेयर भी उनके लिए एक चैलेंज है.
उत्तरी कमान के कमांडर के तौर पर जनरल द्विवेदी ने सिक्योरिटी डोमेन और मिलिट्री सिस्टम में तकनीक को इंटीग्रेट कर ऑपरेशनल क्षमताओं को बढ़ाने पर खासा ध्यान दिया था. ऐसे में अब ये कटिंग एज टेक्नोलॉजी पूरी सेना में देखने को मिल सकती है. क्योंकि भारतीय सेना स्वदेशी हथियार और गोला-बारूद सहित रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के राह पर निकल चुकी है.