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मोदी पुतिन वार्ता: ब्रदर्स इन आर्म्स या जियो-पॉलिटिकल Balancing

जियो-पॉलिटिकल बैलेंसिंग के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को मॉस्को पहुंच रहे है. अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी ने पहली द्विपक्षीय यात्रा के लिए भारत के सबसे भरोसेमंद मित्र-देश रूस को चुना है (8-9 जुलाई). इसके कई सामरिक कारण है.

संसद सत्र के चलते पीएम मोदी कजाख्सतान में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन (3-4 जुलाई) में हिस्सा नहीं ले पाए थे. ऐसे में बेहद जरूरी था कि अपने सबसे पुराने और भरोसेमंद मित्र-देश रूस से नजदीकियां बनाई रखी जाएं. मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की जबरदस्त ‘केमिस्ट्री’ भी पूरी दुनिया के माथे पर बल लाने के लिए काफी है.

हालांकि, भारत और रूस के बीच सालाना इंडिया-रशिया समिट होती थी लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद से ये लंबित थी. ऐसे में मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच 22वें दौर की सालाना समिट होने जा रही है. पिछले दस सालों में यानी जब से पीएम मोदी ने भारत की बागडोर संभाली है तब से लेकर अब तक दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष 16 बार मुलाकात कर चुके हैं. आखिरी बार पुतिन ने दिसंबर 2021 में भारत का दौरा महज छह घंटे के लिए किया था. मोदी ने रूस का दौरा 2019 में किया था.

आखिरी बार जब पीएम मोदी और पुतिन के बीच वर्ष 2022 में समरकंद में मुलाकात हुई थी तब पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई थी. क्योंकि यूक्रेन युद्ध के बाद दोनों की ये पहली बैठक थी. पीएम मोदी ने ऐसे में पुतिन को मुलाकात के दौरान सार्वजनिक तौर से ये कहकर स्तब्ध कर दिया था कि ‘ये युग युद्ध का नहीं है’.

बावजूद इसके, भारत ने रूस का साथ नहीं छोड़ा. इसके लिए भारत को अमेरिका सहित पश्चिमी देशों की आलोचना का शिकार भी होना पड़ा. भारत ने रूस से हथियारों के साथ तेल और पेट्रोलियम सहित दूसरी वस्तुओं का व्यापार जारी रखा. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1809850187491287487?s=46)

भारत और रूस के मजबूत संबंधों का ही असर था कि पिछले साल राजधानी दिल्ली में आयोजित जी-20 बैठक में यूक्रेन से जुड़ी अनाज संधि के लिए मॉस्को तैयार हो गया.

यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए भारत अपनी तरफ से कोशिश कर रहा है. यही वजह है कि पीएम मोदी मॉस्को से सीधे ऑस्ट्रिया जाएंगे (9-10 जुलाई). क्योंकि ऑस्ट्रिया यूरोप के उन चुनिंदा देशों में से है जो नाटो का सदस्य नहीं है लेकिन यूक्रेन युद्ध पर रूस के खिलाफ है. मोदी के ऑस्ट्रिया पहुंचने के दौरान यूक्रेन में शांति स्थापित करने पर भी बातचीत होनी है.  

भारत को हालांकि, रूस से संबंधों को लेकर एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. ये है खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कोशिश की साजिश में भारत को घेरने की तैयारी. हत्या की साजिश के लिए भारत के अधिकारियों को सीधे तरीके से दोषी ठहराए जाने की कोशिश की जा रही है. ऐसे में पश्चिमी देशों के नैरेटिव को काउंटर करने के लिए भारत को रूस की जरुरत पड़ सकती है.   

दरअसल, अमेरिका सहित पश्चिम देशों का मानना है कि भारत हथियारों की जरूरत के लिए रूस से संबंध बनाए रखना चाहता है. ये हकीकत है कि पिछले पांच दशक से भारत की 70 प्रतिशत रक्षा जरूरतों को रूस ही पूरा करता आया है. फिर चाहे वो फाइटर जेट हो या हेलीकॉप्टर, युद्धपोत हो या पनडुब्बी या फिर टैंक, गन, मिसाइल और रॉकेट. हालांकि, पिछले कुछ सालों से अमेरिका के करीब जाने से रूस पर निर्भरता कम जरूर हुई है. माना जाता है कि अब भारत को रक्षा जरूरतों के लिए करीब 40 प्रतिशत की जरूरत रूस से पड़ती है. (सेना को मिली 35 हजार AK-203 राइफल, मोदी के मॉस्को दौरे से पहले बड़ी सौगात)

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के संकल्प के साथ ही भारत अब मेक इन इंडिया के तहत ही हथियारों का निर्माण कर रहा है. इसी का नतीजा है कि भारत ने रूस के साथ एके-203 राइफल का साझा निर्माण शुरु किया है तो टी-72 और टी-90 टैंक के लिए मैंगो बम भी मेक इन इंडिया के तहत ही बनाए जाएंगे (ये mango मीठा नहीं घातक है, टैंक फाड़ डालता है).

अमेरिका के स्ट्राइकर आईसीवी और एमक्यू-9 प्रीडेटर ड्रोन भी मेक इन इंडिया के तहत ही भारत में ही बनाए जाएंगे.

भारत अपनी विदेश नीति को लेकर साफ है. रूस जैसे पारंपरिक मित्र देशों से अटूट संबंध रहेंगे तो अमेरिका और फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों से भी स्ट्रेटेजिक-पार्टनरशिप बनाई जाएगी.

भारत और अमेरिका ने लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम एग्रीमेंट किया गया है तो पीएम मोदी की पुतिन से मुलाकात के दौरान माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच मिलिट्री-लॉजिस्टिक करार किया जा सकता है. इस करार के तहत दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियां और मिलिट्री प्लेटफॉर्म को एक दूसरे के बेस पर तैनात किया जा सकता है.

भारत को रूस का साथ चीन के साथ चल रही तनातनी के लिए भी बेहद जरूरी है. रूस ही ऐसा देश है जो भारत और चीन को बातचीत की टेबल पर लाने का प्रयास कर सकता है. हाल ही में एससीओ देशों की समिट में भी भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी समकक्ष वांग यी से बैठक कर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का विवाद जल्द से जल्द समाप्त करने और इसके लिए दोगुना प्रयास करने पर सहमति जताई है.   

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