पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की झप्पी को लेकर अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने बेहद ही तीखा बयान दिया है. भारत पर सीधा निशाना साधते हुए गार्सेटी ने कहा कि युद्ध के समय ‘स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी’ किसी काम की नहीं होती है. राजदूत ने यहां तक कह दिया कि अमेरिका की दोस्ती को ‘नजरअंदाज’ नहीं किया जा सकता है.
एक कार्यक्रम में एरिक गार्सेटी ने कहा है कि “कोई भी युद्ध अब किसी से दूर नहीं है.” यूक्रेन-रूस और इजरायल-गाजा समेत दुनिया के अलग-अलग मोर्चों पर चल रहे तनाव के बीच अमेरिकी राजदूत ने कहा है कि “सभी देशों को न सिर्फ शांति के लिए खड़ा होना चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम भी उठाने चाहिए कि जो लोग शांतिपूर्ण तरीके से काम नहीं करते, उनकी युद्ध मशीनें बेरोकटोक जारी नहीं रहें.”
भारत-अमेरिका के संबंध गहरे, प्राचीन और व्यापक: अमेरिकी राजदूत
यूनाइटेड सर्विस इंस्टीटूशन (यूएसआई) में आयोजित एक कार्यक्रम में रक्षा विशेषज्ञों के बीच अमेरिकी राजदूत गार्सेटी ने भारत-अमेरिका के संबंधों पर जोर दिया है. एरिक गार्सेटी ने कहा, “हम सिर्फ अपना भविष्य भारत में नहीं देखते और भारत केवल अपना भविष्य अमेरिका में नहीं देखता, बल्कि दुनिया हमारे संबंधों में बड़ी चीजें देख सकती है. भारत-अमेरिका के संबंध गहरे, प्राचीन और व्यापक हैं. आज जब हम अमेरिका-भारत रक्षा साझेदारी को देखते हैं तो मुझे लगता है कि यह अपने चरम पर गया है.”
अब कोई युद्ध किसी से दूर नहीं: अमेरिकी राजदूत
एरिक गार्सेटी ने अपने संबोधन में कहा, “आपात स्थिति में, चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो या मानव-जनित युद्ध हो, अमेरिका और भारत एशिया और दुनिया के अन्य भागों में आने वाली समस्याओं के खिलाफ एक शक्तिशाली अवरोधक साबित होंगे. हम सभी जानते हैं कि हम दुनिया में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, अब कोई युद्ध किसी से दूर नहीं है.”
संबंधों पर संदेह से रिश्ते बिगड़ते जाएंगे: अमेरिकी राजदूत
भारत और अमेरिका के रिश्तों में आई दरार पर भी इशारों इशारों में अमेरिकी राजदूत ने बयान दिया. कहा “अमेरिका और भारत के लोगों के लिए ये बात याद रखना महत्वपूर्ण है कि जितना अधिक हम इस रिश्ते में निवेश करेंगे, उतना ही दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहतर बनेंगे. जितना ज्यादा हम अपने संबंधों पर संदेह करेंगे, हमारे संबंध उतने ही बिगड़ते जाएंगे.मैं जानता हूं कि भारत अपनी स्ट्रेटेजिक ऑटोनोमी (रणनीतिक स्वायत्तता) को पसंद करता है, हम उसका सम्मान भी करते हैं. लेकिन संघर्ष के समय में रणनीतिक स्वायत्तता जैसी कोई चीज नहीं होती. संकट के समय हमें एक-दूसरे को जानने की जरूरत होगी.”
दरअसल, रुस-यूक्रेन युद्ध के शुरुआत से ही भारत ने अपनी विदेश नीति को स्ट्रेटेजिक ऑटोनोमी का नाम दे रखा है. इसके मायने ये हैं कि भारत अपनी एक स्वतंत्र विदेश नीति रखता है. इसके लिए भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है. यही वजह है कि भले ही भारत ने यूक्रेन युद्ध का विरोध किया है लेकिन रुस से संबंधों को जारी रखा है. इससे अमेरिका सहित पश्चिमी देशों को भारत से खासी दिक्कत है.
अमेरिकी राजदूत ने युद्ध का जिक्र इसलिए किया है क्योंकि भारत का पिछले चार सालों से पूर्वी लद्दाख से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर विवाद चल रहा है. ऐसे में अगर चीन से युद्ध हुआ तो भारत को अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों की जरुरत पड़ सकती है. उस दौरान स्वतंत्र विदेश नीति कोई मायने नहीं रखेगी.
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