शेख हसीना के इस्तीफा देने और देश छोड़कर भागने से बांग्लादेश आर्मी भी संदेह के घेरे में खड़ी दिखाई पड़ रही है. सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार बांग्लादेश की सेना ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुन कर आई अपनी प्रधानमंत्री की रक्षा क्यों नहीं की. क्यों एक ‘शॉर्ट नोटिस’ के जरिए शेख हसीना को इस्तीफा देने पर मजबूर कर देश छोड़ने के लिए विवश किया गया. सवाल ये भी कि क्या सेना ने शेख हसीना के ऑर्डर मानने से इंकार कर दिए थे.
1971 में पाकिस्तान से मिली आजादी के बाद से ही बांग्लादेश की सेना का चरित्र संदेह के घेरे में रहा है. पाकिस्तान से मुक्ति मिलने के महज पांच साल के भीतर ही बांग्लादेश आर्मी ने आजादी के मसीहा मुजीबुर्ररहमान की परिवार के साथ निर्मम हत्या करने के बाद तख्ता पलट दिया था.
यहां तक की मुजीबुर्ररहमान की बेटी शेख हसीना के 20 साल के कार्यकाल के दौरान भी कई बार ऐसे मौके आए जब सेना ने देश की चुनी हुई सरकार के खिलाफ बगावत करने या फिर अनुशासनहीनता करने की कोशिश की थी. आज बांग्लादेश की सेना में करीब डेढ़ लाख रेगुलर सैनिक हैं.
शनिवार यानी 4 अगस्त को ही शेख हसीना ने बतौर देश की प्रधानमंत्री होने के नाते बांग्लादेश आर्मी के चीफ जनरल वकार उज जमां सहित टॉप कमांडर्स से मीटिंग कर उग्र विरोध प्रदर्शन को लेकर चर्चा की थी. मीटिंग में आखिर क्या कुछ हुआ इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं. लेकिन बैठक के महज 48 घंटे के भीतर ही यानी सोमवार को जनरल वकार ने शेख हसीना को 45 मिनट का अल्टीमेटम देकर इस्तीफा देने और देश छोड़ने पर विवश कर दिया.
सेना के ही सी-130 हरक्युलिस मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट से शेख हसीना भारतीय वायुसेना के हिंडन एयरबेस (राजधानी दिल्ली के करीब गाजियाबाद) पहुंची थी.
शेख हसीना के देश छोड़ते ही जनरल वकार ने प्रेस कांफ्रेंस कर एक अंतरिम सरकार बनाने की घोषणा की. साथ ही पिछले एक महीने में विरोध-प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों को इंसाफ दिलाने का भरोसा दिलाया. इसका नतीजा ये हुआ कि सेना ने पुलिस के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी. गुस्साई पुलिस ने विरोध में अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान कर दिया है. (बांग्लादेश में गृह-युद्ध, पुलिस की अनिश्चितकालीन हड़ताल)
जनरल वकार, हालांकि, शेख हसीना से अपनी पत्नी के जरिए रिश्तेदार हैं. लेकिन शेख हसीना के तख्तापलट में उनकी भूमिका भी संदिग्ध रही है. इसी साल जून के महीने में उन्होंने बांग्लादेश आर्मी की कमान संभाली थी. उनके ससुर भी शेख हसीना के सबसे पहले कार्यकाल (1996-2001) के दौरान बांग्लादेश सेना के प्रमुख के पद पर रह चुके थे. यही वजह है कि शेख हसीना ने जनरल वकार को देश का आर्मी चीफ नियुक्त किया था. लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि सेना ही उनकी पीठ में छुरा घोंपने का काम कर रही है. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1820787255847325984)
जनरल वकार ने जो ‘अंतरिम सरकार’ की घोषणा की है उसमें चार रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी शामिल हैं. एक लेफ्टिनेंट जनरल को विदेश मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया है. अंतरिम सरकार की कमान ग्रामीण बैंक के संस्थापक मोहम्मद यूनुस के हाथों में सौंपी गई है. लंदन में रहने वाले यूनुस को भले ही नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है लेकिन बांग्लादेश में उनपर कई भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मुकदमे दर्ज हैं.
जनरल वकार ने शेख हसीना के देश छोड़ते ही सबसे पहला काम किया उनकी (शेख हसीना की प्रतिद्वंदी और बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) की संस्थापक (पूर्व प्रधानमंत्री) खालिदा जिया को जेल से रिहा करने का. खालिदा जिया के पति भी बांग्लादेश आर्मी के चीफ रह चुके हैं और हिंसात्मक तरीके से सैन्य शासन कर चुके हैं. हालांकि, मेजर जनरल जियाउर्रहमान की सैन्य तानाशाह जनरल इरशाद ने हत्या कर दी थी (1981) और तख्तापलट कर दिया था.
खालिदा जिया को शेख हसीना ने भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेज दिया था. खालिदा जिया अपने पति की तरह ही पाकिस्तान की गोद में बैठना ज्यादा पसंद करती हैं. लंदन में बैठे उनके भगोड़े बेटे तारिक रहमान के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध का खुलासा टीएफए पहले ही कर चुका है. (बांग्लादेश में ISI की साजिश कामयाब)
जनरल वकार ने खालिदा जिया के साथ-साथ कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लाम के एक सक्रिय सदस्य (रिटायर्ड ब्रिगेडियर) को भी जेल से रिहा करने का काम किया है. जमात भी शेख हसीना की विरोधी रही है और आईएसआई के पेयरोल पर है.
ऐसे में साफ हो जाता है कि जनरल वकार भी भारत के बजाए पाकिस्तान से संबंधों को तरजीह देते हैं. लेकिन शेख हसीना इसके आड़े आ रही थीं. जनरल वकार खुद तो शासन नहीं करना चाहते हैं क्योंकि इससे म्यांमार की तरह पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन पर्दे के पीछे से जनरल वकार अंतरिम सरकार की चाबी अपने पास रखना चाहते हैं.
शेख हसीना के सत्ता छोड़ते ही जनरल वकार ने सेना के टॉप कमांडर की बड़ी अदला-बदली की और मौजूदा सरकार के करीबी माने जाने वाले जनरल को साइड लाइन कर दिया. एक मेजर जनरल रैंक के अधिकारी जियाउर्ररहमान एहसान को बर्खास्त कर दिया गया है.
वर्ष 2009 में भी पैरामिलिट्री फोर्स ‘बांग्लादेश राइफल्स’ (अब बीजीबी यानी बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश) शेख हसीना के का तख्ता पलटने की कोशिश की थी. लेकिन उसे कुचल दिया गया था. उसी दौरान बांग्लादेश आर्मी के टॉप कमांडर का एक ऑडियो टेप लीक हुआ था जिसमें वे शेख हसीना को बुढ़िया और दूसरे अपशब्द कहते सुने गए थे. बीडीआर में बांग्लादेश आर्मी के ही सैन्य अफसर, अधिकारी रैंक पर तैनात होते हैं.
वर्ष 2001 में ही बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) की करतूतों के चलते भारत और बांग्लादेश के संबंध बेहद नाजुक मोड़ पर पहुंच गए थे. मेघालय से सटी सीमा पर बोराइबारी इलाके में जमीनी विवाद के दौरान बीडीआर के जवानों ने भारत की बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) के 16 जवानों की निर्मम हत्या कर दी थी. उस दौरान भारत में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और बांग्लादेश में शेख हसीना की. दोनों के फोन कॉल के बाद ही भारत और बांग्लादेश की दूरियां कम हो पाई थी.
लेकिन सवाल खड़ा होता है कि क्या बांग्लादेश आर्मी की रिमोट कंट्रोल वाली अंतरिम सरकार के दौरान पड़ोसी देश के भारत से संबंध कैसे होंगे. क्या जून महीने में शेख हसीना के दिल्ली दौरे के दौरान हुए एग्रीमेंट का पालन किया जाएगा या रद्दी में फेंक दिया जाएगा.
बांग्लादेश आर्मी का भारतीय सेना से भी करीबी संबंध रहा है. दोनों देशों की सेनाएं सालाना सम्प्रति युद्धाभ्यास करती हैं. हाल ही में भारत ने बांग्लादेश की जरूरत के लिए साझा हथियार और सैन्य उपकरणों के निर्माण पर समझौता किया था.
भारतीय वायुसेना की पहली मल्टीनेशनल एक्सरसाइज तरंगशक्ति (अगस्त-सितंबर) में हिस्सा लेने के लिए बांग्लादेश एयर फोर्स के चीफ अपने सी-130 एयरक्राफ्ट के साथ आने जा रहे थे लेकिन अब उनके आने पर सस्पेंस खड़ा हो गया है. (पहली मल्टीनेशनल एयर एक्सरसाइज तरंगशक्ति अगले महीने से)