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बांग्लादेश की आजादी के युद्ध-स्मारक का Viral सच

बांग्लादेश में फैली हिंसा के बीच भारत में एक ऐसी तस्वीर वायरल हो रही है जो 1971 युद्ध से जुड़ी है. ये तस्वीर है बांग्लादेश के खुलना इलाके के मुजीबनगर (मेहरपुर जिला) की, जहां है 1971 युद्ध का वार-मेमोरियल यानी युद्ध-स्मारक. इस युद्ध-स्मारक की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर सहित पत्रकार, मीडिया हाउस और पूर्व फौजी जमकर साझा कर रहे हैं कि कट्टरपंथी बांग्लादेशियों ने वार-मेमोरियल में लगी मूर्तियां तोड़ दी हैं. लेकिन क्या वाकई ये हकीकत है.

विदेश राज्य मंत्री शशि थरुर ने जो तस्वीरें साझा की हैं उसमे पाकिस्तानी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी युद्ध में हारने के बाद भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत  सिंह अरोड़ा के समक्ष सरेंडर दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर रहा है. दूसरी तस्वीर में कुछ मूर्तियां नीचे पड़ी हुई हैं. शशि थरूर ने अपने एक्स अकाउंट पर तस्वीर साझा करते हुए दुख जताया कि 1971 के मेमोरियल को भारत-विरोधी उपद्रवियों ने तोड़ दिया है. (https://x.com/ShashiTharoor/status/1822830968702750934)

शशि थरूर के ट्वीट करते ही ये तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. लेकिन लेखक ने इस मेमोरियल का खुद वर्ष 2016 का दौरा किया था. दो साल बाद मेमोरियल की तस्वीरें भी अपने एक्स अकाउंट पर साझा की थी. ऐसे में साफ हो जाता है कि शशि थरूर सहित भारत के बुद्धिजीवी जिन मूर्तियों को टूटा हुआ बता रहे हैं दरअसल वो स्कल्पटर यानी मूर्तिकार के डिजाइन का हिस्सा है. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1074176951776993281)

मेमोरियल में मूर्तियों के जरिए दिखाया गया है कि 1971 से पहले जब बांग्लादेश में पाकिस्तान का शासन था, तब यहां पाकिस्तानी सेना स्थानीय बांग्लादेशी लोगों पर बेहद अत्याचार करती थी. स्कल्पटर ने पाकिस्तानी सैनिकों को बांग्लादेशियों पर गोलियां चलाते हुए दर्शाया है जिससे लोग (मूर्तियां) जमीन पर मरे पड़े हैं. कुछ लोगों के हाथ पीछे बंधे हैं और वे झुकी हुई मुद्रा में पाकिस्तानी सैनिकों के सामने बेवश खड़े हैं. जो मूर्तियां नीचे पड़ी हैं, उसे शशि थरूर और बाकी लोग तोड़फोड़ का नाम दे रहे हैं.

1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से आजाद कराया था. इस युद्ध में भारतीय सेना ने भारत की खुफिया एजेंसी आर एंड डब्लू (रॉ) की मदद से स्थानीय बांग्लादेशियों को मुक्ति-योद्धा के तौर पर तैयार किया था. बांग्लादेश की (पूर्व) प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा संभाला था. जिस जगह युद्ध-स्मारक है वहीं पर अप्रैल 1971 में बांग्लादेश की पहली स्वतंत्र सरकार का गठन किया गया था. मेमोरियल में मूर्तियों के जरिए सरकार के गठन को भी दर्शाया गया है. उस वक्त, इस जगह का नाम वैद्यनाथतला (या अमराकन) के नाम से जाना जाता था.

1996 में जब पहली बार शेख हसीना ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली तब यहां एक बड़े मुजीबनगर लिबरेशन वार मेमोरियल का निर्माण कराया गया और जगह का नाम बदल कर मुजीबनगर कर दिया गया. करीब 20 एकड़ में फैले इस मेमोरियल में एक मुजीब स्मृति है जहां एक बड़े स्मारक के चारों तरफ 23 बड़े पिलर हैं. ये पिलर पाकिस्तान के 23 साल का क्रूर शासन दर्शाते हैं.

मेमोरियल में सफेद रंग की मूर्तियां हैं जिससे पाकिस्तानी सेना का बांग्लादेशियों पर अत्याचार, बांग्लादेश की पहली स्वतंत्र सरकार का गठन और पाकिस्तानी सेना का भारतीय सेना के सामने सरेंडर दर्शाया गया है.

पूर्व विदेश राज्य मंत्री और कांग्रेस सांसद शशि थरुर ने अपनी एक्स पोस्ट पर हिंदुओं, मंदिरों और सांस्कृतिक केंद्रों पर हमलों को लेकर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस से कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने की मांग की है. ये बात सही है कि शेख हसीना के देश छोड़कर भागने के बाद से बांग्लादेश में हिंदुओं पर जबरदस्त हमले हो रहे हैं, मंदिरों को निशाना बनाया जा रहा है. ढाका में उपद्रवियों ने इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र को निशाना बनाया है.

मुजीबनगर मेमोरियल को भी उपद्रवियों और कट्टरपंथनियों ने निशाना बनाया है, यहां ये साफ नहीं है. लेकिन जो तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं वो तोड़फोड़ की नहीं है. गौरतलब है कि इस मेमोरियल की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेशी आर्मी के हवाले है. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1822886143530066231)

अपडेट: सोशल मीडिया पर मुजीबनगर मेमोरियल का एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें जमीन पर टूटी-फूटी मूर्तियां पड़ी हैं. वीडियो में मेमोरियल में मंच पर लगी मूर्तियां नहीं दिखाई पड़ रही है. ऐसे में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और सेना से इस युद्ध-स्मारक में तोड़-फोड़ की घटना पर आधिकारिक बयान अपेक्षित है.