संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी को पी-5 के चार देशों से मिल चुकी है. चीन को छोड़कर अमेरिका, रूस, इंग्लैंड और फ्रांस पूरी तरह से भारत की दावेदारी का समर्थन कर रहे हैं. यहां तक की भूटान, चिली और पुर्तगाल ने भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में खुलकर भारत की दावेदारी का समर्थन किया है.
शनिवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम के दौरान साफ तौर से कहा कि संयुक्त राष्ट्र में विश्वसनीयता की कमी है. पिछले हफ्ते यूएन में ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ऐसे ही सवाल खड़े किए थे.
संयुक्त राष्ट्र से लेकर सभी वैश्विक मंचों पर भारत, यूएनएससी में सुधारों की वकालत कर रहा है. भारत का मानना है कि मात्र पांच देश (यूएनएससी के पांच स्थाई देश) दुनियाभर के मुद्दों पर फैसला नहीं कर सकते हैं. यूएनएससी में फिलहाल पांच स्थायी सदस्य देश हैं, अमेरिका, रूस, चीन, इंग्लैंड और फ्रांस. ऐसे में पूरी दुनिया में भारत सहित जापान, जर्मनी, ब्राजील और अफ्रीकन यूनियन को भी यूएनएससी में स्थायी सदस्यता दिए जाने की मांग उठ रही है.
भारत की दावेदारी को मौजूदा महासभा में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने की. इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैंक्रो, इंग्लैंड और अमेरिका ने भी वकालत की. यहां तक की भूटान ने भी भारत और जापान को पी-5 क्लब में शामिल करने का समर्थन किया.
भारत का दावा ये है कि दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के साथ-साथ पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को वैश्विक मुद्दों को सुलझाने में अहम भूमिका होनी चाहिए.
हाल के रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की पहल पर वार्ता का रास्ता निकलता दिखाई पड़ रहा है. यहां तक की पिछले साल यानी 7 अक्टूबर को आतंकी संगठन हमास ने इजरायल पर हमले की भारत ने सबसे पहले भर्त्सना की थी. प्रधानमंत्री मोदी ने इजरायल का समर्थन करते हुए दो टूक कह दिया था कि आतंकवाद को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. लेकिन न्यूयॉर्क दौरे के दौरान पीएम मोदी ने फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मुलाकात कर टू-नेशन थ्योरी का समर्थन किया था.