एक्ट ईस्ट पॉलिसी के दस साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आसियान शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने दक्षिण-एशियाई देश लाओस पहुंच चुके हैं. पहुंचते ही पीएम मोदी ने बौद्ध धर्म-गुरुओं का सानिध्य प्राप्त किया. तकरीबन 75 लाख की आबादी वाला लाओस भारत के लिए रणनीतिक तौर पर बेहद अहम है. इस बार आसियान का अध्यक्षता कर रहा है लाओस. लाओस में पीएम मोदी 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भी भाग लेंगे. पीएम मोदी की यात्रा से पहले जुलाई के महीने में एस जयशंकर ने भी लाओस की यात्रा की थी और आसियान से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लिया था.
भारत एक्ट ईस्ट पॉलिसी का दशक पूरा कर रहा: पीएम मोदी
पीएम मोदी का लाओस में भव्य स्वागत किया गया है. लाओस रवाना होने से पहले पीएम मोदी ने अपने बयान में कहा कि भारत इस साल एक्ट ईस्ट पॉलिसी का एक दशक पूरा कर रहा है. पीएम मोदी ने एक्स पोस्ट में लिखा, “21वें आसियान-भारत और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए लाओ पीडीआर के लिए रवाना हो रहा हूं. यह एक विशेष वर्ष है क्योंकि हम अपनी एक्ट ईस्ट नीति के एक दशक पूरा कर रहे हैं, जिसके कारण हमारे देश को काफी लाभ हुआ है. इस यात्रा के दौरान विभिन्न विश्व नेताओं के साथ विभिन्न द्विपक्षीय बैठकें और बातचीत भी होंगी.”
भारत के लिए लाओस महत्वपूर्ण क्यों है?
लाओस की सीमा उत्तर-पश्चिम में म्यांमार और चीन, पूर्व में वियतनाम, दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया और पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में थाईलैंड से लगती है. म्यांमार और चीन से सटी सीमा होने के कारण लाओस भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. साल 1945 तक लाओस फ्रांस का गुलाम रहा, तो कभी लाओस पर जापान ने कब्जा जमाया.
साल 1953 में लाओस को स्वतंत्रता मिली तो पड़ोसी देश चीन लाओस पर अधिकार जमाने लगा. भारत-लाओस के बीच साल 1956 में संबंध स्थापित हुए, क्योंकि भारत हमेशा से ये जानता है कि लाओस रणनीतिक तौर पर बेहद अहम है वो भी तब जब चीन की विस्तारवादी नीयत को रोकना जरूरी हो.
साल 2008 में भारत ने लाओस में एयर फोर्स एकेडमी खोलने का फैसला लिया था. लाओस की सेना को भारत ने समय समय पर आधुनिक तकनीक और मदद मुहैया कराई है. भारत और लाओस सांस्कृतिक विचारधारा भी साझा करते हैं जो बौद्ध धर्म और रामायण की साझा विरासत से परिपूर्ण हैं. (https://x.com/narendramodi/status/1844322885797867996)
भारत और लाओस हमेशा एकदूसरे का देते हैं साथ
सिर्फ भारत ही लाओस की मदद नहीं करता, लाओस भी भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहता है. हाल ही में जब एस जयशंकर लाओस पहुंचे थे, तो अयोध्या में रामलला की सूरत वाला डाक टिकट लाओस ने जारी किया था. साथ ही लाओस हमेशा से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थाई सदस्य बनाए जाने का समर्थन करता है.
म्यांमार में गृहयुद्ध खत्म कराएंगे मोदी, चीन की क्या चिंता?
आसियान बैठक में म्यांमार में लंबे समय से चल रहे गृह युद्ध और दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय तनाव पर चर्चा हो सकती है. म्यामांर में जबर्दस्त गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है हाल ही में जुंटा सेना ने सीजफायर की बात कही थी.
वहीं आसियान ने भी एक शांति योजना प्रस्तावित की है, जिसमें म्यांमार में संघर्षरत गुटों के बीच युद्ध विराम और मध्यस्थता की बात कही गई है. पीएम मोदी के लाओस दौरे के आधिकारिक बयान में भी कहा गया है कि “म्यांमार की स्थिति के बारे में आसियान देशों और उनके साझेदारों के बीच पांच सूत्री आम सहमति थी.” थाईलैंड ने भी पिछले महीने ही सुझाव दिया था कि म्यांमार के दूसरे प्रभावशाली पड़ोसी देश, चीन और भारत, शांति प्रयास में भूमिका निभा सकते हैं.
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पीएम मोदी इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, फिलीपीन्स, वियतनाम, मलेशिया, म्यांमार, कंबोडिया, ब्रुनेई और लाओस के साथ चर्चा कर सकते हैं. ये सारे वही देश हैं जो कहीं ना कहीं चीन से परेशान हैं. दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागीरी के पीड़ित हैं.
आसियान और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के बारे में जानिए
भारत आसियान का सदस्य नहीं है, लेकिन आसियान के मौजूदा अध्यक्ष लाओस के प्रधानमंत्री सोनेक्से सिफंडोन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खासतौर से न्योता दिया है. जिसके कारण पीएम मोदी लाओस पहुंचे हैं. साल 1967 में दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संघ (आसियान) बनाया गया. आसियान में इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया देश हिस्सा हैं. वहीं पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की बात करें तो इसमें 10 आसियान देश और आठ साझेदार देश-ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, रूस और अमेरिका शामिल होंगे. तिमोर-लेस्ते पर्यवेक्षक की भूमिका में है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में सत्ता संभालने के बाद एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की थी. इसका मकसद भारत की रणनीतिक, आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को हिंद-प्रशांत एशिया क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में मजबूत करना है. भारत के एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत मुख्य रूप से अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया, और आसियान देश शामिल हैं. इन सबके बीच ब्रुनेई दक्षिण-पूर्व एशिया का वो देश है, जो साउथ चाइना सी और हिंद महासागर को जोड़ने वाले समुद्री मार्ग के करीब है. पिछले 10 वर्षों में एक्ट ईस्ट पॉलिसी में बहुत प्रगति हुई है, जिसमें निवेश भी शामिल है.
चीन के लिए भारत का चक्रव्यूह है एक्ट ईस्ट पॉलिसी
हिंद महासागर में जहां दबदबा कायम करने के लिए चीन भारत के पड़ोसी देशों मालदीव, श्रीलंका को अपने जाल में फंसा रहा है तो वहीं चीन को जवाब देने के लिए भारत भी चीन के पड़ोसी देशों से अपनी करीबी बढ़ा लिया है. पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल 5 महीनों में ही पीएम मोदी ने सिंगापुर और ब्रुनेई का दौरा करके द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया तो वियतनाम और मलेशिया के प्रधानमंत्रियों को भारत दौरे पर आमंत्रित किया. भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तिमोर-लेस्ते का दौरा किया जो पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में पर्यवेक्षक है.
मतलब साफ है कि भारत की कूटनीति चीन की चिंता बढ़ाने वाली है और यही वजह है कि चीन खुद भारत के साथ संबंधों पर काम करने लगा है, तो चीन के करीबी मालदीव और बांग्लादेश के भी सुर बदल चुके हैं. वहीं तुर्किए जैसे देश ने भी इस बार संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर बयानबाजी ना करके पाकिस्तान को झटका दिया है.