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UN Day: वैश्विक शांति सुरक्षा बेहद जरूरी

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) आज (गुरुवार को) अपना 79वां स्थापना दिवस ऐसे समय में मना रहा है जब दुनिया दो-दो युद्ध से ग्रस्त है और तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर बैठी है. आज ही के दिन यानी 24 अक्टूबर 1945 में ‘यूनाइटेड नेशन्स’ (यूएन) की स्थापना हुई थी. लेकिन विडंबना देखिए कि जिस द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनियाभर में ‘सुरक्षा, समृद्धि और मानवाधिकारों’ के लिए यूएन का गठन किया था, आज उसके अस्तित्व पर ही बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं.

पिछले 79 वर्षों में ऐसा क्या बदल गया कि संयुक्त राष्ट्र को आज दुनिया के सामने अपने ही शांति सैनिकों की सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ रही है. पश्चिम एशिया में इजरायल की आतंकी संगठन हमास और हिज्बुल्लाह के खिलाफ जंग की तपिश ‘यूएन पीसकीपिंग फोर्स’ पर ही पड़ने लगी है.

हिज्बुल्लाह के खिलाफ ग्राउंड ऑपरेशन के दौरान इजरायल के डिफेंस फोर्सेज (‘आईडीएफ’) ने लेबनान से सटी उस ‘ब्लू-लाइन’ (बॉर्डर) को पार कर दिया जो संयुक्त राष्ट्र के आदेश पर वर्ष 2006 में खींची गई थी. आईडीएफ ने ना केवल इजरायल-लेबनान सीमा की ‘सैंक्टेटी’ भंग की बल्कि यूएन परिसरों की भी घेराबंदी कर दी.

इजरायली सेना ने लेबनान सीमा पर तैनात ‘यूनाइटेड नेशन्स अंतरिम फोर्स इन लेबनान’ (यूएनआईएफआईएल) के सैनिकों को अपनी छावनियां खाली तक करने का ऑर्डर सुना दिया. ऐसा ने करने पर आईडीएफ ने अपने टैंक और सैनिकों के जरिए यूएन मिशन के परिसरों को घेर लिया और आंसू गैस के गोले तक दाग दिए. यूएन की गुजारिश और 30 से भी ज्यादा देशों द्वारा इजरायल के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव के बावजूद आईडीएफ ने अपने ऑपरेशन लेबनान में जारी रखे हैं. वो दिन दूर नहीं जब आईडीएफ के सैनिक विवादित गोलन हाइट्स को भी अपने कब्जे में कर लेंगे और वहां तैनात संयुक्त राष्ट्र शांति सेना को इलाके को खाली करना होगा. (https://x.com/UN/status/1841123718212284495)

हमास के खिलाफ गाजा में आईडीएफ के ऑपरेशन को लेकर भी यूएन को जबरदस्त शिकायत रही है. यूएन का आरोप है कि इजरायली सेना, यूएन कैंप और स्कूलों तक पर बमबारी से गुरेज नहीं करते हैं जिससे मासूम नागरिकों (बच्चे, बूढ़े और महिलाओं की भी) जान जा रही है.

लेकिन आईडीएफ के दावों पर गौर करें तो पता चलता है कि यूएन जिन्हें अपना स्कूल बताता है दरअसल, ये शरणार्थी कैंप है और इनमें हमास के आतंकी तक शरण लेते हैं. हमास के हथियार रखने और रॉकेट लॉन्च करने के ठिकाने, इन्हीं यूएन कैंप और स्कूलों के आसपास ही होते हैं. वो इसलिए ताकि किसी को कोई शक न हो. अगर इजरायली सेना हमले करे तो यूएन परिसर पर अटैक को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भुनाया जा सके.

लेबनान में आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के आका नसरल्लाह को जिस बिल्डिंग में इजरायल ने हवाई हमले में ढेर किया, वो यूएन स्कूल से महज कुछ मीटर की दूरी पर था.

यहां तक की ब्लू लाइन (इजरायल-लेबनान सीमा) पर यूएनआईएफआईएल के परिसरों के करीब ही हिज्बुल्लाह ने अपने ठिकाने बना रखे थे लेकिन संयुक्त राष्ट्र शांति सेना ने कोई विरोध नहीं किया. इन्हीं कारणों से आज यूएन की प्रासंगिकता कम होती जा रही है.

यूएन आज इजरायल और ईरान के बीच युद्ध के खतरों को भी खत्म करने में असमर्थ नजर आता है, जिसके कारण ऐसा लगने लगा है कि दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर आ गई है.

पिछले ढाई साल से जारी यूक्रेन जंग में तो यूएन की कोई भूमिका नजर ही नहीं आती. इसका कारण ये भी हो सकता है कि यूक्रेन जंग को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के ही एक स्थायी सदस्य रशिया ने शुरु की है.

यूएन की सबसे मजबूत कमेटी है यूएनएससी, जिसके कुल पांच सदस्य हैं. गौर से देखा जाए तो ये वही पांच सदस्य देश है जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध जीता था—अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, चीन और रशिया.

खास बात ये है कि आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा हथियारों पर खर्च करने वाले यही पांच देश हैं. इन्हीं देशों के सबसे ज्यादा किसी ना किसी युद्ध या फिर संघर्ष में शामिल होने की खबर आती हैं. ये पांच देश ही सबसे पहले परमाणु हथियार संपन्न देश बने. इन पांचों देशों (पी-5) को यूएन के किसी भी कानून, प्रस्ताव या फिर देश पर वीटो लगाने का भी अधिकार है.

यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता को वापस लाने के लिए भारत जैसे देश यूएन में सुधारों का समर्थन कर रहे हैं. भारत चाहता है कि यूएनएससी में अधिक देशों को शामिल किया जाए ताकि विकासशील और ग्लोबल साउथ के देशों की सुनवाई हो.

आज भारत के अलावा जापान, ब्राजील और अफ्रीकी यूनियन एनएससीएस का स्थायी सदस्य बनने की कोशिश में जुटे हैं. लेकिन ये तभी संभव है जब पी-5 देश इसके लिए तैयार हो जाएं.  

संयुक्त राष्ट्र के आज 12 शांति मिशन पूरी दुनिया में चल रहे हैं. यूएन शांति सेना की कुल संख्या करीब 75 हजार है. इनमें भारत की भागीदारी सबसे ज्यादा सैनिकों के साथ है टॉप पर है.

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यूएन हमेशा से असहाय वैश्विक समूह के तौर पर दिखाई पड़ा. स्थापना के सालों में यूएन काफी एक्टिव रहा था. (https://x.com/UN/status/1849300534345236969)

1947 में बंटवारे के तुरंत बाद जब भारत और पाकिस्तान में युद्ध हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में ही युद्धविराम की घोषणा की थी. तभी से ‘यूएन मिलिट्री ऑब्जर्वर ग्रुप’ भारत और पाकिस्तान में तैनात रहता है. हालांकि, हाल के सालों में इस ऑब्जर्वर ग्रुप का दोनों देशों के बीच उत्पन्न विवाद में शायद ही कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो.

कोरियाई युद्ध (1950-53) समाप्त होने के बाद युद्धबंदियों की अदला-बदली में यूएन ने एक अहम भूमिका अदा की थी.

पिछले 79 सालों में दुनिया को करीब 250 युद्ध, संघर्ष और गृह-युद्ध को झेलना पड़ा है. लाखों-करोड़ों लोगों को इन युद्ध की त्रासदी से गुजरना पड़ता है. लाखों लोगों को बेघर होकर निर्वासित होना पड़ा है. यूएन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद से यूक्रेन की जनसंख्या में 80 लाख की कमी आई है. इनमें से 50 लाख लोग अपना देश छोड़कर यूरोप या फिर रूस चले गए हैं.

जाहिर है आज दुनिया में अगर जंग रोकनी है तो संयुक्त राष्ट्र को मजबूत और प्रभावशाली बनाने की सख्त जरूरत है. ये काम यूएन में सुधार और यूएनएससी के सदस्य देशों की संख्या को बढ़ाकर किया जा सकता है. ऐसे देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाए, जो युद्ध के बजाए शांति, स्थिरता और डिप्लोमेसी के जरिए किसी भी विवाद का हल निकालने का समर्थन करते हैं. अन्यथा, यूएन की स्थापना के वक्त दिया आदर्श-वाक्य, शांति, समृद्धि और मानवाधिकार, उनका कोई औचित्य शायद खत्म हो जाएगा. (https://x.com/UN/status/1849255235908198848)

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