75 वर्ष की आयु में भी थलसेना प्रमुख को देखकर हॉस्पिटल के बेड से खड़े होकर अभिवादन एक असाधारण वीरता का धनी सैनिक ही कर सकता है. क्योंकि ऐसे ही जज़्बे के लिए हॉनरेरी कैप्टन बाना सिंह को देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला था. वो भी दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के लिए.
रविवार को थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी राजधानी दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च एंड रेफरल (आर एंड आर) पहुंचे थे. क्योंकि परमवीर चक्र विजेता बाना सिंह इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती थे. जनरल द्विवेदी हाल चाल पूछने के लिए हॉस्पिटल गए थे.
आर्मी चीफ को अपने रूम में देखते ही बाना सिंह बेड से उठे और अभिवादन स्वीकार किया. भारतीय सेना ने इस मुलाकात के बाद हॉनरेरी कैप्टन बाना सिंह की बहादुरी को सैल्यूट किया.
भारतीय सेना ने कैप्टन बाना सिंह की सिचायिन में पाकिस्तानी सेना से हुई झड़प का जानकारी साझा करते हुए लिखा कि “उत्कृष्ट वीरता ने उन्हें परमवीर चक्र दिलाया. भारतीय सेना, मानद कैप्टन बाना सिंह जैसे दिग्गजों से प्रेरणा लेती हैं और राष्ट्र के प्रति उनकी भावना और समर्पण को सलाम करती हैं.” (https://x.com/adgpi/status/1855499049925009762)
सेना की जैकलाई यानी जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री ने जून 1987 में सियाचिन में असाधारण वीरता का नमूना पेश किया था. उस वक्त नायब सूबेदार के पद पर तैनात बाना सिंह ने अपनी टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए 21 हजार फीट की ऊंचाई पर कड़ाके की ठंड, बर्फीली हवाओं और ऑक्सीजन की कमी के बावजूद दुश्मन की घुसपैठ को नाकाम किया.
जीरो विजिबिलिटी के बावजूद बाना सिंह और उनके साथियों ने 1500 फीट की बर्फ की दीवार पर चढ़ाई की और दुश्मन के बंकर को ध्वस्त कर दिया. हैंड टू हैंड लड़ाई में बाना सिंह और भारतीय सेना के दूसरे सैनिकों ने अपने गन की बेयनोट से पाकिस्तानी सेना के जवानों को मौत के घाट उतार दिया.
पाकिस्तानी सेना ने इस बंकर को कैद-पोस्ट (चौकी) का नाम दे रखा था. लेकिन कैप्टन बाना सिंह के आक्रमण के बाद ये बंकर हमेशा के लिए भारतीय सेना का हो गया.
कैप्टन बाना सिंह के अदम्य साहस और उत्कृष्ट नेतृत्व के चलते सरकार ने युद्ध के समय देश के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र से नवाजा. साथ ही पाकिस्तान की पोस्ट को हमेशा-हमेशा के लिए बाना-पोस्ट का नाम दे दिया.