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ट्रंप मेहरबान तो आतंकी भी पहलवान!

By Nalini Tewari

इस्लामिक आतंकवाद खत्म करने के नाम पर सत्ता में आए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, आतंकी संगठन पर मेहरबान होते दिख रहे हैं. कैसे इसकी बानगी उस वक्त देखने को मिली थी, जब उन्होंने सीरिया के कार्यवाहक राष्ट्रपति अल शरा, जो कि अमेरिका के आतंकियों की लिस्ट में शामिल हैं, उनसे मुलाकात की थी. और अब  ट्रंप प्रशासन ने सीरिया के ‘हयात तहरीर अल-शाम’ (पूर्व में अल-नुसरा) को विदेशी आतंकवादी संगठन (एफटीओ) से बाहर कर दिया है.

इस आतंकी ग्रुप को मिडिल ईस्ट में खतरा माना जाता है. अमेरिकी प्रशासन से ये फैसला ऐसे वक्त में लिया है, जब इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिका में मौजूद हैं. नेतन्याहू एचटीएस के लड़ाकों को इजरायल के लिए खतरा मानते रहे हैं.

अलकायदा से जुड़ा एचटीएस आतंकी संगठन की लिस्ट से बाहर

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सीरियाई संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के ऊपर से प्रतिबंध हटा दिए हैं. अल-नुसरा फ्रंट सीरिया में अल-कायदा की शाखा थी, अल-शरा ने इसे अल-कायदा से अलग करते हुए इसका नाम हयात तहरीर अल-शाम रखा था, जो मिडिल ईस्ट में अस्थिरता फैलाने और आतंकी हमलों का जिम्मेदार रहा है.

अमेरिकी विदेश सचिव (विदेश मंत्री) मार्को रुबियो ने अपने बयान में कहा, “सीरिया को प्रतिबंधों से राहत देने के राष्ट्रपति ट्रंप के 13 मई के वादे के मुताबिक मैं अल-नुसरा फ्रंट, जिसे हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नाम से भी जाना जाता है, को विदेशी आतंकवादी संगठन की लिस्ट से बाहर कर रहा हूं. ये आदेश 8 जुलाई से लागू है.” 

हद है! अमेरिका ने आतंकी संगठन को ही आतंकवाद के सभी रूपों से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध बताया

मार्को रूबियो ने कहा, “एफटीओ से एचटीएस को बाहर करना राष्ट्रपति ट्रंप के स्थिर, एकीकृत और शांतिपूर्ण सीरिया के सपने को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. यह कदम सीरिया की ओर से एचटीएस को भंग करने के ऐलान और सीरियाई सरकार द्वारा आतंकवाद के सभी रूपों से लड़ने की प्रतिबद्धता के बाद उठाया गया है. यह निर्णय सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा की ओर से उठाए गए सकारात्मक कदमों का नतीजा है.”

ट्रंप के सामने मरता क्या न करता जैसी स्थिति में हैं इजरायली पीएम

पीएम बेंजामिन नेतन्याहू एचटीएस को इजरायल के लिए खतरा मानते थे, लेकिन ईरान के खिलाफ अमेरिका का साथ मिलने के बाद नेतन्याहू भी ट्रंप के खिलाफ बोल पाने की स्थिति में नहीं दिखे. अपनी आदत से मजबूत ट्रंप ने नेतन्याहू के कुछ आपत्ति से पहले ही बयान दे दिया कि सीरिया से प्रतिबंध दुनिया के कई देशों की अपील के बाद हटाए गए हैं, जिनमें नेतन्याहू भी शामिल हैं.

सीरिया को खतरा मानने वाले नेतन्याहू ने कहा है कि “क्षेत्र में ईरान और उसके सहयोगियों के कमजोर होने से स्थिरता, सुरक्षा और अंततः शांति के लिए के नए अवसर सामने आए हैं. दमिश्क में नई सरकार के साथ एक चैनल खोलने के लिए वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सराहना करते हैं.”

सीरिया में छिपा है इजरायल का फायदा 

सीरिया में तख्तापलट यानि विद्रोही गुट के मुखिया और अमेरिका की लिस्ट में कभी वैश्विक आतंकी की तरह दर्ज अल शरा के कब्जे के बाद सीरिया के बफर जोन गोलान हाइट्स पर इजरायली सेना मौजूद है. सीरिया में अल शरा के जबरन सत्ता में आने के बाद इजरायली सैनिकों ने गोलान हाइट्स पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था. 

सीरिया गोलान हाइट्स को अपना अभिन्न अंग मानता है और इसे इजरायल को सौंपने से इनकार करता है, लेकिन अब वहां इजरायली सैनिक मौजूद हैं. कुछ दिनों पहले ऐसी खबरें भी आई थीं कि इजरायली सैनिक गोलान हाइट्स से भी आगे बढ़ चुके हैं.

ईरान के साथ इजरायल की चल रही तनातनी के बीच सीरिया एक अहम स्थान रखता है, क्योंकि ईरान ने अपने एक्सिस ऑफ रेसिस्टेंस के सबसे बड़े समूह हिजबुल्लाह को सीरिया के जरिए ही मजबूत बनाया है और लेबनान तक हथियार पहुंचाने का सीरिया रूट रहा है.

ऐसे में जिस देश को इजरायल अपने लिए खतरा मान रहा था, उसी सीरिया के साथ कूटनीतिक बातचीत शुरु की गई है. इजरायल, सीरिया के साथ रिश्ते सामान्य करना चाहता है. हाल ही में इजरायली विदेश मंत्री गिदोन सार ने कहा था कि “इजरायल लंबे समय से अपने दुश्मन रहे सीरिया और लेबनान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करने चाहता है, लेकिन गोलान हाइट्स की स्थिति पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता.”

यूं ही नहीं ट्रंप पकड़ा रहे पाकिस्तान को झुनझुना

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप किसी एक बात पर टिक नहीं रहे. कभी रूसी राष्ट्रपति पुतिन को अपना गहरा दोस्त बताते हैं, तो अगले ही पल धमकी देते हैं. चाहे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हों या फिर नॉर्थ कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन, हर किसी को ट्रंप अपना खास दोस्त कहते हैं, लेकिन थोड़ी ही देर में अपने बयान से पलट जाते हैं.

फरवरी के महीने में जब पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका गए थे, तो ट्रंप ने अपने ज्वाइंट स्टेटमेंट में आतंकवादी संगठनों के वित्तपोषण को रोकने, खुफिया जानकारी साझा करने और वैश्विक आतंकवाद विरोधी अभियान में सहयोग बढ़ाने की बात कही थी. ट्रंप ने कहा था कि कट्टरपंथी आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए खतरा है और इसे रोकने के लिए दोनों देशों (भारत-अमेरिका) का गठबंधन बेहद महत्वपूर्ण होगा.

पहलगाम नरसंहार के बाद जिस तरह से अमेरिका का रवैया रहा है, जिसमें भारत और पाकिस्तान को एक ही पलड़े में नापा गया, उससे अमेरिका की मंशा पर सवाल खड़े हुए हैं.

भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के चलते भारतीय सेना ने जब ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया और लश्कर-जैश के आतंकी ठिकानों को नष्ट कर डाला. जिसके बाद आतंकियों के मददगार पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने की नाकाम कोशिश की, तो सेना ने प्रचंड प्रहार करते हुए पाकिस्तान के एयरबेस और सैन्य बेस पर हमले किए जिसके बाद पाकिस्तान अमेरिका के साथ-साथ सऊदी अरब के शरण में चला गया. भारतीय सेना का हमला उस नूर खान तक पहुंच गया जहां कहा जाता है कि अमेरिका के परमाणु हथियार हैं, तो अमेरिका ने पाकिस्तान पर दबाव बनाना शुरु कर दिया.

पाकिस्तान के डीजीएमओ ने गिड़गिड़ाते हुए भारत के डीजीएमओ से गुहार लगाई, जिसके बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर को पॉज़ करते हुए सीजफायर के लिए हामी भरी. 

बड़बोले ट्रंप इस सीजफायर के लिए खुद क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहे हैं. उल्टा पाकिस्तान पर प्रेशर डालकर खुद का नाम भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट करवाया है. नॉमिनेशन के बदले असीम मुनीर के साथ ट्रंप ने लंच किया था.

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