तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुंचकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सभी को चौंका दिया है. तिब्बती बौद्ध गुरु दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर चल रहे विवाद कि बीच शी जिनपिंग के ल्हासा पहुंचने को तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धर्म को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के नियंत्रण की रणनीति के संदेश के तौर पर देखा जा रहा है.
चीन की सत्ता संभालने के बाद ये दूसरा मौका था, जब शी जिनपिंग ल्हासा पहुंचे. 1950 के दशक में चीनी सेना के कब्जे के बाद से ही बीजिंग लगातार तिब्बत को अपना अभिन्न अंग बताता रहा है और दलाई लामा के शरण को लेकर भारत पर सवाल उठाता रहा है. दलाई लामा के समर्थन को लेकर अमेरिका से भी चीन चिढ़ा रहता है.
ल्हासा में सीसीपी के कैडर्स से मिले शी जिनपिंग, चीनी भाषा को प्रमोट करने को कहा
तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की स्थापना के 60 वर्ष पूरे होने पर ल्हासा में आयोजिक कई कार्यक्रमों में शी जिनपिंग ने हिस्सा लिया. इस दौरान जिनपिंग ने कई अधिकारियों और स्थानीय नेताओं से मुलाकात की और तिब्बत को आधुनिक, विकसित बनाने पर जोर दिया. शी जिनपिंग का ल्हासा में विभिन्न जातीय समूहों के लोगों ने गर्मजोशी से स्वागत किया.
शी जिनपिंग ने इस मौके पर “एक आधुनिक समाजवादी तिब्बत बनाने” की अपील की, जो ‘एकजुट, समृद्ध, सभ्य, सौहार्दपूर्ण और सुंदर’ हो. ल्हासा में कम्युनिस्ट पार्टी के कैडरों को जिनपिंग ने कहा, कि वे भाषा के रूप में मंदारिन के प्रयोग को बढ़ावा दें.
आपको बता दें कि तिब्बत की भाषा तिब्बती है. यह तिब्बती लिपि में लिखी जाती है और ल्हासा में बोली जाने वाली बोली को स्टैंडर्ड तिब्बतियन माना जाता है. लेकिन जिनपिंग ने चीन की भाषा मंदारिन को प्रमोट करने की बात कही.
इस दौरान जिनपिंग ने कहा, तिब्बत पर शासन करने और उसका विकास करने के लिए सबसे पहले राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी.
दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीन-तिब्बत के बीच विवाद
जिनपिंग का तिब्बत दौरा ऐसे वक्त में हुआ है, जब जुलाई के महीने में दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर तिब्बत ने साफ तौर पर कह दिया है कि चीन का आदेश नहीं माना जाएगा. वहीं चीन ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी प्रक्रिया को मानने से इनकार कर दिया है.
इतिहास की बात की जाए तो चीन ने 1950 में तिब्बत कर कब्जा कर लिया तो वहां के बौद्धों पर कम्युनिस्ट सरकार की सख्ती के चलते तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने भारत में शरण ली. दलाई लामा साल 1959 में भारत चले आए थे और तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं.
1950 के दशक में चीनी सेना के कब्जे के बाद से ही बीजिंग तिब्बत को जियांग कहते हुए अपना अभिन्न अंग बताता है, लेकिन लाखों तिब्बती चीन के इस दावे को इनकार करते हैं और ये स्वायत्त क्षेत्र बताते हैं. तिब्बती लोग चीन को दमनकारी और सांस्कृतिक हस्तक्षेप करने वाला कहते हैं.
शी जिनपिंग ने की पंचेन लामा से मुलाकात
शी जिनपिंग के साथ चीन के शीर्ष राजनीतिक सलाहकार और अधिकारी वांग हुनिंग, राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ कै क्यू, यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट के प्रमुख ली गंजी, उप-प्रधानमंत्री हे लिफेंग और लोक सुरक्षा मंत्री वांग शियाओहोंग जैसे उच्च-स्तरीय लोग मौजूद थे.
ल्हासा में कई बड़े अधिकारियों ने जिनपिंग ने मुलाकात की जिसमें तिब्बती बौद्ध धर्म के दूसरे सबसे बड़े धर्मगुरु पंचेन लामा भी शामिल थे. पंचेन लामा दलाई लामा के बाद दूसरे सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति माने जाते हैं. पंचेन लामा वो गुरु हैं जिनकी भूमिका दलाई लामा के पुनर्जन्म की पहचान में महत्वपूर्ण है.
भारत और चीन के लिए अहम है तिब्बत
तिब्बत भारत और चीन दोनों देशों के लिए रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है. चीन, तिब्बत को अपना क्षेत्र करार देता है. वहीं भारत भी तिब्बत से सीमा शेयर करता है. ब्रह्मपुत्र समेत कई बड़ी नदियां तिब्बती क्षेत्र से निकलती हैं और चीन वहां डैम परियोजनाएं चलाने की योजना में है, जो भारत के लिए बड़ा जल संकट पैदा कर सकती हैं. हालांकि चीन ने भारत की आशंकाओं को गलत बताया है. और दोनों देशों के बीच डेटा शेयरिंग का करार किया गया है.
हमारी सीमा तिब्बत से लगती है, चीन से नहीं: सीएम पेमा खांडू
हाल ही में अरुणाचल प्रदेश सीएम पेमा खांडू ने कहा था,कि “भारत का कोई भी राज्य चीन के साथ लैंड बॉर्डर शेयर नहीं करता. हालांकि सीमा तिब्बत के साथ जरूर लगती है, जिस पर 1950 के दशक में चीन ने जबरन कब्जा कर लिया था.”
पेमा खांडू ने कहा, “आधिकारिक तौर पर तिब्बत अभी चीन के अधीन है, लेकिन मूल रूप से हमारी सीमा तिब्बत के साथ लगती थी. अरुणाचल प्रदेश केवल तीन इंटरनेशनल बॉर्डर शेयर करता है. भूटान के साथ लगभग 150 किलोमीटर, म्यांमार के साथ लगभग 550 किलोमीटर और तिब्बत के साथ, देश के सबसे लंबे बॉर्डर्स में से एक है. भारत का कोई भी राज्य सीधे तौर पर चीन के साथ सीमा साझा नहीं करता है.””
सीएम ने कहा था, “ऐतिहासिक तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह भारत-तिब्बत सीमा थी और उन्होंने 1914 के शिमला सम्मेलन का हवाला दिया जिसमें ब्रिटिश भारत, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था.”