भारतीय नौसेना के लिए छह (06) स्टेल्थ पनडुब्बियां बनाने का करार मझगांव डॉकयार्ड (एमडीएल) को मिलना लगभग तय हो गया है. जर्मनी की थाइसेनक्रुप कंपनी की मदद से एमडीएल, इन पनडुब्बियों को मेक इन इंडिया के तहत निर्माण करेगा.
माना जा रहा है कि जल्द रक्षा मंत्रालय इस करार की घोषणा कर सकता है. इस प्रोजेक्ट की कुल कीमत करीब 70 हजार करोड़ है.
रक्षा मंत्रालय ने एयर इंडिपेंडेंट प्रोपेलेंट (एआईपी) तकनीक से लैस छह पनडुब्बियों के लिए प्रोजेक्ट पी75 (इंडिया) की घोषणा की थी. इसके लिए रक्षा मंत्रालय ने एमडीएल और एल एंड टी कंपनी को किसी विदेशी ओईएम यानी ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर के साथ करार करने की छूट दी थी. ऐसे में एमडीएल ने जर्मनी की थाइसेनक्रुप कंपनी से प्रोजेक्ट 75 (आई) के लिए करार किया था. एलएंडटी कंपनी ने स्पेन की नवांतिया से हाथ मिलाया था.
टीएफए की खबर पर मुहर
नवांतिया और एलएंडटी कंपनी, एआईपी तकनीक से लैस पनडुब्बियों को बनाने में नाकाम साबित हुई हैं. समुद्री-तट पर तो कंपनी ने एआईपी तकनीक का सफल परीक्षण किया था. लेकिन समंदर में कंपनी एआईपी तकनीक पर खरी नहीं उतर पाई. ऐसे में रक्षा मंत्रालय ने एलएंडटी और नवांतिया ग्रुप को प्रोजेक्ट से बाहर करने का फैसला लिया था. इसी वर्ष जनवरी के महीने में टीएफए ने सबसे पहले ये जानकारी दी थी. उसी वक्त ये लगभग पक्का हो गया था कि प्रोजेक्ट 75 (आई) एमडीएल और थाइसेनक्रुप को मिलेगा.
एआईपी तकनीक से लैस पनडुब्बियां, लंबे समय तक (करीब दो महीने तक) समंदर के नीचे रहकर ओपरेट कर सकती हैं. जबकि पारंपरिक (डीजल) पनडुब्बियों को समय-समय पर समंदर की सतह पर आना पड़ता है. सतह पर आने से पनडुब्बियां दुश्मन की नजर में आ जाती है. लेकिन स्टील्थ (एआईपी) तकनीक से पनडुब्बी के बारे में दुश्मन को कानों-कान खबर नहीं लगती.
स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बी के बाद एमडीएल को दूसरा बड़ा सबमरीन प्रोजेक्ट मिलने जा रहा है. फ्रांस की मदद से एमडीएल ने छह स्कॉर्पीन (कलवरी) क्लास पनडुब्बी बनाकर भारतीय नौसेना को सौंप दी है.
खास बात है कि भारतीय नौसेना की छह कलवरी (स्कोर्पीन) क्लास पनडुब्बियों को भी एआईपी तकनीक से लैस किया जा रहा है. पिछले साल दिसंबर में डीआरडीओ द्वारा तैयार की गई एआईपी तकनीक को एलएंडटी कंपनी को ट्रांसफर (टीओटी) किया गया था. एलएंडटी के हजीरा (गुजरात) स्थित शिपयार्ड में इस एआईपी तकनीक को तैयार किया जा रहा है.