By Khushi Vijay Singh
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सैन्य ठिकानों और छावनियों के बाहर ‘घुसपैठियों को देखते हुए ही गोली मार दी जाएगी’ लगे बोर्ड को लेकर कड़ी आलोचना की है. अदालत ने केंद्र सरकार को ऐसे साइन बोर्ड्स पर ‘सॉफ्ट लैंग्वेज’ इस्तेमाल करने की सलाह दी है.
हाई कोर्ट ने कठोर शब्दों (भाषा) के बजाए ‘नरम’ भाषा के उपयोग की सिफारिश की है. कोर्ट ने कहा कि ऐसी जगह जहां बच्चे और आम जनता इकट्ठा होते हैं, नरम भाषा का उपयोग करना चाहिए. दरअसल, इलाहाबाद (प्रयागराज) हाई कोर्ट में शराब के नशे में धुत एक नेपाली नागरिक की जमानत का मामला सामने आया था तो प्रयागराज के मनौरी एयर फोर्स स्टेशन में घुसने की कोशिश कर रहा था. भारतीय वायुसेना ने इस घुसपैठिए को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया था. पुलिस ने आरोपी को ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) की संगीन धारा में मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया था.
नेपाल नागरिक एतवीर लिम्बू को इसी साल 23 फरवरी को प्रयागराज के मनौरी एयर फोर्स स्टेशन में घुसने की कोशिश के लिए गिरफ्तार किया गया था. लिम्बू के वकील, सूरज मांझी, जो उनके पड़ोसी थे और वर्षों से भारत में रह रहे थे यहां (भारत) आकर नौकरी की तलाश के लिए प्रेरित किया था. वकील ने दावा किया कि लिम्बू गलती से नशे में स्टेशन में प्रवेश कर गया और ढंग से हिन्दी न बोलने और नशे के कारण सही से संवाद नहीं कर पाया. वकील ने तर्क दिया कि लिम्बू के खिलाफ कोई सबूत नहीं था, लेकिन उसे आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम यानी ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट और आईपीसी के तहत आरोपित किया गया.
15 मई को अदालत ने स्कूलों और सड़कों के करीब ‘देखते ही गोली मार दी जाएगी’ के साइन-बोर्ड के बारे में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया, जिससे जनता पर उनके प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की. एएसजी एसपी सिंह ने स्वीकार किया कि ये साइन आम हैं, लेकिन उनके लिए विशिष्ट गाइडलाइन का अभाव है.
वायुसेना के एयर कमोडोर अंग्शुक पाल, एयर ऑफिसर कमांडिंग 24 ईडी (ED), एयर फोर्स, ने कोर्ट को दिए अपने हलफनामे मेंं रक्षा प्रतिष्ठानों में सुरक्षा उपायों की रूपरेखा के बारे में विस्तृत जानकारी दी, जिसमें बाड़ (कटीली ता्र) लगाना, गेट और चेतावनी संकेत शामिल थे. लेकिन कोर्ट में इस बात को उठाया गया कि इन उपायों के बावजूद, अतिक्रमण यानी ‘ट्रेस्पासिंग’ की घटनाएं बढ़ गई हैं. अदालत में उरी आर्मी बेस और पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमलों की घटनाओं के बारे में भी जिक्र किया गया. इसी दौरान ही चेतावनी साइन-बोर्ड का मुद्दा कोर्ट में उठा और हाई कोर्ट के जज ने नरम भाषा इस्तेमाल करने की सलाह दी.
हाई कोर्ट ने आरोपी की नेपाली नागरिकता, हिरासत की अवधि और त्वरित सुनवाई की संभावना ने होने के पहलुओं को ध्यान में रखते हुए लिम्बू को हालांकि जमानत दे दी है. लेकिन सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या अब वायुसेना और दूसरे सशस्त्र-बल अपने साइन-बोर्ड में घुसपैठियों को लेकर कैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं.