ताइवान और चीन के बीच तनाव को और बढ़ाने की कोशिश में अमेरिका. जापान और ऑस्ट्रेलिया के कंधे पर बंदूक रखकर चीन पर वार करना चाहता है अमेरिका. बताया जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऑस्ट्रेलिया और जापान पर ये दबाव बनाया है कि वो अपने सैनिकों को ताइवान भेजें, ताकि चीन से ताइवान की सुरक्षा की जा सके.
मतलब स्थिति रूस-यू्क्रेन के युद्ध की शुरुआत वाली है, जैसे नाटो सैनिकों की तैनाती को लेकर ही रूस-यूक्रेन की चिंगारी भड़की थी. ठीक वैसी ही स्थिति ताइवान के मोर्चे पर अमेरिका की ओर से खड़ी की जा रही है.
लेकिन अमेरिका ने अपने सहयोगी ऑस्ट्रेलिया से इस जवाब की उम्मीद नहीं की होगी, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया की ओर से अमेरिका जवाब दिया गया है कि भविष्य में तय करेंगे कि क्या करना है.
प्रशांत सागर में जब तक युद्ध की नौबत नहीं, तब तक नहीं भेजेंगे सैनिक, ऑस्ट्रेलिया ने सुनाया
अमेरिका क्षेत्र में अपने सहयोगी जापान और ऑस्ट्रेलिया पर दबाव बना रहा है कि वह भविष्य के खतरे और ताइवान की सुरक्षा के लिए अपने सैनिकों को तैनात करे. लेकिन ऐसा करने ऑस्ट्रेलिया ने साफ मना कर दिया है.
ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि “प्रशांत सागर में जब तक युद्ध की नौबत नहीं आती वह अपने सैनिक नहीं भेजेगा. जापान ने भी तैनाती को लेकर अपना रुख साफ नहीं किया है. अमेरिका को जवाब देते हुए रक्षा उद्योग मंत्री ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया अपनी संप्रभुता को प्राथमिकता देता है और काल्पनिक बातों पर चर्चा नहीं करेगा.”
दरअसल पेंटागन ने जापान-ऑस्ट्रेलिया पर दबाव डालते हुए कहा था कि अगर अमेरिका, ताइवान को लेकर चीन से युद्ध करता है, तो दोनों देशों का क्या रुख रहेगा. ऑस्ट्रेलिया ने कहा, तब देखेंगे, पहले से निर्णय नहीं ले सकते.
बताया जा रहा है कि अमेरिकी रक्षा नीति उप-सचिव एल्ब्रिज कोल्बी हाल ही में दोनों देशों के रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत के दौरान इस मुद्दे को उठाया है.
सहयोगियों के भरोसे अमेरिका, खुद ताइवान की सुरक्षा की गारंटी क्यों नहीं लेते ट्रंप?
ट्रंप प्रशासन के इस सवाल ने ऑस्ट्रेलिया और जापान, अमेरिका के दोनो सहयोगी देशों को चौंका दिया, क्योंकि अमेरिका ने खुद अभी तक चीन के हमले की स्थिति में ताइवान की सुरक्षा की गारंटी नहीं ली है, जो अमेरिका के दोहरे मानदंडो (डबल स्टैंडर्ड) को दिखा रहा है.
अमेरिका और ताइवान के बीच कोई आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन इंडो पैसिफिक में चीन के बढ़ते कदम को रोकने के लिए ताइवान, अमेरिका के एक बड़ा प्यादा है. बिना राजनयिक संबंध और मान्यता के अमेरिका ताइवान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है. यह हथियार आपूर्ति ताइवान रिलेशन एक्ट के तहत की जाती है, जो ताइवान की आत्मरक्षा में मदद के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करता है.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका सीधे तौर पर ताइवान क्षेत्र में कूदने से बचना चाहता है, और इस युद्ध को भी ताइवान जापान, ऑस्ट्रेलिया के कंधे पर बंदूक रखकर लड़ना चाहता है.