प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा (8-9 जुलाई) से पहले भारतीय सेना को मिली है एक बड़ी सौगात. रूस की ‘रोसोबोरोनएक्सपोर्ट’ कंपनी ने रक्षा मंत्रालय को मेक इन इंडिया के तहत कोरवा (अमेठी) में बनी एके-203 असॉल्ट राइफल की पहली खेप देने की घोषणा की है.
रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के मुताबिक, पहली खेप में 35 हजार राइफल दी गई हैं. खास बात ये है कि गुरुवार को ही खबर आई थी कि रूस ने भारत में ही टी-90 टैंक के लिए बेहद खास ‘मैंगो’ शेल (बारूदी गोले) बनाने का फैसला लिया है.
शुक्रवार को रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने एक आधिकारिक बयान जारी कर रक्षा मंत्रालय को 35 हजार एके-203 असॉल्ट राइफल देने का दावा किया. रोजोबोरोनएक्सरोर्ट कंपनी की पैरेंट कंपनी रोस्टेक के डीजी सर्जेई चेमेज़ोव के मुताबिक, “एके-203 राइफल पाने वाला भारत पहला विदेशी कस्टम बन गया है. क्योंकि अभी तक इस एके-सीरीज की राइफल का इस्तेमाल रूस में ही किया जा रहा था.” चेमेज़ोव के मुताबिक, “ये एके-203 राइफल पूरी तरह ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी (टीओटी) के जरिए कोरवा में बनी हैं और इनमें शत प्रतिशत (100 प्रतिशत) स्थानीय कंटेंट है.”
भारत में एके-203 के निर्माण के लिए एडवांस वेपन एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड (पूर्व में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड यानी ओफएबी) और रुस की रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (और कलाश्निकोव) कंपनी ने एक संयुक्त उद्यम ‘इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड’ (आईआरआरपीएल) का गठन किया था. जुलाई 2021 में दोनों देशों ने कोरबा प्लांट में साढ़े सात लाख (7.50 लाख) से भी ज्यादा एके-203 राइफल के निर्माण के लिए 5000 करोड़ का करार किया था.
7.62 x 39 एमएम कैलिबर की एके-203 राइफल एक मिनट में 700 राउंड फायर कर सकती है. इसकी रेंज 500-800 मीटर है और 3.8 किलो वजन के साथ इस राइफल को हल्का माना जाता है. हल्की लेकिन घातक होने के चलते सैनिकों को इस राइफल को ऑपरेट करना आसान होता है.
वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मेक इन इंडिया के तहत एके-203 असॉल्ट राइफल के निर्माण के लिए कोरवा में एक साझा प्लांट का उद्घाटन किया था. लेकिन पहले कोविड महामारी, यूक्रेन युद्ध और फिर लेन-देन में आ रही दिक्कतों के चलते प्लांट में राइफल के निर्माण में देरी हो रही थी. लेकिन अब खबर पक्की है कि प्लांट में निर्माण शुरु हो चुका है और इसी कड़ी में 35 हजार राइफल सेना को दी गई हैं.
इस बीच वर्ष 2020 में गलवान घाटी की झड़प और पूर्वी लद्दाख में चीन से शुरु हुए विवाद के चलते भारतीय सेना को आनन-फानन में अमेरिका से 72 हजार सिग-सोर राइफल्स की खेप का दो बार ऑर्डर भी देना पड़ा था. कोरबा प्लांट के उत्पादन में देरी के चलते वर्ष 2021 में भारतीय सेना को 70 हजार एके-203 राइफल भी सीधे रुस से ऑफ द सेल्फ खरीदने की खबर भी सामने आई थी.
भारतीय सेना को पुरानी पड़ चुकी इंसास राइफल की रिप्लेसमेंट के लिए एके-203 राइफल की जरूरत है. निकट भविष्य में एके-203 ही भारत की मुख्य असॉल्ट राइफल बन जाएगी. क्योंकि भारतीय सेना सहित वायुसेना और नौसेना को साढ़े छह लाख असॉल्ट राइफल की जरुरत पड़ने जा रही है. माना जा रहा है कि भारत की सशस्त्र सेनाओं की जरूरत पूरा करने के बाद यहां से इन राइफल का एक्सपोर्ट भी किया जा सकता है. यानी जरूरत पड़ने पर रूस खुद भी यहां से एके-203 का ऑर्डर दे सकता है.
हालांकि, रूस काफी लंबे समय से फाइटर जेट (सुखोई) से लेकर टैंक (टी-90) और बीएमपी व्हीकल का उत्पादन भारत में करता रहा है लेकिन अब गोला-बारूद भी मेक इन इंडिया के तहत बनाने के लिए तैयार हो गया है. गुरुवार को ही टीएफए ने बताया था कि रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने भारत में ही टी-90 और टी-72 टैंक के लिए खास आर्मर्ड पेनेट्रेटिंग शेल (बम का गोला) बनाने के लिए तैयार हो गया है. ऐसे में माना जा सकता है कि जरूरत पड़ने पर इस गोला-बारूद को वापस रुस को भी निर्यात किया जा सकता है (ये mango मीठा नहीं घातक है, टैंक फाड़ डालता है).
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सल्ंस
ाल
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