June 26, 2024
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ट्रैक्टर से लॉन्च होगी सेना की मिसाइल

रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता के बीच एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) की एक तस्वीर जमकर वायरल हो रही है. क्योंकि ये एटीजीएम किसी आर्मर्ड व्हीकल या फिर बीएमपी पर नहीं बल्कि जुगाड़ तकनीक के जरिए एक ट्रैक्टर पर लगाई गई है. बिल्कुल ठीक सुना आपने. एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल, भारतीय खेतों में चलने वाले ट्रैक्टर पर. हाल ही में भारतीय सेना की वेस्टर्न कमांड ने कुछ फोटोग्राफ्स अपने एक्स सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की थीं. उन तस्वीरों में एक एटीजीएम के जमकर चर्चा की जाने लगी. कुछ लोगों ने सेना के जुगाड़ तकनीक की तारीफें कीं तो कुछ लोग तस्वीरों को ट्रोल करने लगे. अब सवाल है कि ऐसा क्या था उस एटीजीएम में जिसकी चर्चा होने लगी. दरअसल ये एटीजीएम खेत की जुताई से लेकर बुवाई-कटाई और फसल ढुलाई समेत कई कृषि कार्य करने वाले ट्रैक्टर पर बनाया गया है. सेना ने इस जुगाड़ का नाम दिया ‘इंप्रोवाइज्ड ट्रैक्टर माउंटेड एटीजीएम’.

ट्रैक्टर पर क्यों लगाई गई एटीजीएम
आखिर सेना ने टैक्टर को ही क्यों चुना ? दरअसल ट्रैक्टर किसी भी तरह के भौगोलिक क्षेत्र में चलने लायक होता है, चाहे रेगिस्तान हो या दलदल, जंगल हो या पक्की रोड, हर जगह आसानी से चलाया जा सकता है. ज्यादा सामान उठा सकता है. ये पंजाब और गुजरात से सटे पाकिस्तान की सीमा पर ट्रैक्टर वाला एटीजीएम सफल हो सकता है. कैमोफ्लेज में माहिर है. जंगल या रेगिस्तान में अगर इसकी तैनाती हो तो आसानी से कैमोफ्लेज में भी बदला जा सकता है. ताकि दुश्मन पर अटैक किया जा सके. दुश्मनों के बंकर, टैंक या बख्तरबंद वाहनों को उड़ाया जा सके.

पंजाब, गुजरात और राजस्थान से सटी पाकिस्तानी सीमा पर भारतीय किसानों की खेत हैं. ऐसे में 1965 के युद्ध जैसे हालात कभी निकट भविष्य में खड़े होते हैं तो ये ट्रैक्टर-एटीजीएम को आसानी से खेत और पेड़ों की आड़ लेकर दुश्मन के टैंकों पर मिसाइल से हमला बोला जा सकता है. आर्मर्ड व्हीकल आईसीवी यानी इन्फैन्ट्री कॉम्बेट व्हीकल या फिर बीएमपी में एटीजीएम से मार करने वाले सैनिकों की काफी सुरक्षा रहती है. लेकिन ट्रैक्टर में सैनिक काफी एक्सपोज रह सकते हैं. यही वजह है कि इन्हें किसी आड़ में लेकर ही निशाना लगाया जा सकता है.

दरअसल भारतीय सेना को व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म, फ्यूचरिस्टिक इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल (एफआईसीवी) की जरूरत है. नए, आधुनिक और ज्यादा मारक. बीएमपी-2 बख्तरबंद वाहनों को अपग्रेड करने की जरूरत है. लेकिन जब तक वो सेना में शामिल नहीं होते हैं, इंप्रोवाइज्ड ट्रैक्टर माउंटेड एटीजीएम का इस्तेमाल किया जा सकता है.

वेस्टर्न कमांड ने शेयर की ट्रैक्टर वाले एटीजीएम की तस्वीर
भारतीय सेना की वेस्टर्न कमांड ने कुछ फोटोग्राफ्स अपने एक्स सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की हैं. हाल ही में जीओसी खड़गा कोर लेफ्टिनेंट जनरल राहुल सिंह ने पंजाब में तैनात जेसोर ब्रिगेड का दौरा किया था और जेसोर ब्रिगेड की ऑपरेशनल तैयारियों की समीक्षा की थी. इस दौरान जेसोर ब्रिगेड ने अपने कुछ खास इनोवेशन को लेफ्टिनेंट जनरल को दिखाया था और उसकी खूबियों की जानकारी दी थी (https://x.com/westerncomd_IA/status/1790918031067234343).

ट्रैक्टर वाला एटीजीएम में क्या है खास ?
जानकारी के मुताबिक, ट्रैक्टर कोंकुर्स एटीजीएम लॉन्चर और मिसाइलों से लैस है. यह लॉन्चर 40 मीटर से चार किमी तक की दूरी पर खड़े टैंक को नष्ट कर सकता है. ऐसा पहली बार नहीं है जब भारतीय सेना ने ऐसा कोई इनोवेशन किया हो. भारत की जुगाड़ तकनीक ने कई बार युद्ध में साथ दिया है. परिस्थितियों को देखते हुए सेना, जुगाड़ तकनीक से ऐसे कई उपकरण तैयार कर देती है, जो दुश्मनों को चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं. यानी ये भारतीय सीमाओं की रखवाली के लिए भारतीय तकनीक है (https://x.com/KesariDhwaj/status/1791428628494127582).

दुनियाभर में दिखाए पड़ते हैं ट्रैक्टर-एटीजीएम

पिछले साल उत्तरी कोरिया ने अपनी सालाना सैन्य परेड में बड़ी संख्या में ट्रैक्टर-एटीजीएम का प्रदर्शन किया था. वो इसलिए क्योंकि पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया से उत्तर कोरिया की पुरानी दुश्मनी है और दुनिया का सबसे खतरनाक बॉर्डर डीएमजेड (डि-मिलिट्राइज जोन) सटा हुआ है.

रुस और यूक्रेन जंग के शुरूआती हफ्तों में जब रूसी सैनिक अपने टैंक कीव के आस-पास के इलाकों में छोड़कर भाग खड़े हुए थे कई ऐसी तस्वीरें और वीडियो सामने आए थे जिनमें यूक्रेनी किसान अपने ट्रैक्टर से उन्हें खींचते हुए दिखाई पड़े थे.

दुनियाभर की सेनाएं, ऊबड-खाबड़, दलदल, रेगिस्तान और बर्फीली इलाकों के लिए एटीवी यानी ऑल टेरेन व्हीकल इस्तेमाल करती है. भारतीय सेना भी इन एटीवी का इस्तेमाल करती है. लेकिन लोकल फॉर्मेशन्स अपनी जरुरतों के हिसाब से हथियारों और सैन्य तकनीक को इम्प्रोवाइज करती रहती है. ऐसे में ट्रैक्टर-एटीजीएम भी उसी का उदाहरण है.

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