भारतीय सेना को कम संसाधनों में अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में पायनियर कोर को ‘ऑप्टिमाइज’ किया जा रहा है. इसके तहत बीआरओ में तैनात पायनियर कोर की तीन यूनिट्स को हटा दिया गया है. थियेटर कमांड की तरफ बढ़ रही सेना के तीनों अंग अब ज्वाइंट लॉजिस्टिक नोड्स (जेएलएन) की तरफ अग्रसर हैं. ऐसे में फ्रंटलाइन में थलसेना को लॉजिस्टिक सपोर्ट देने वाली पायनियर कोर में तैनात सैनिकों को कम किया जा रहा है.
सीमावर्ती क्षेत्रों की फॉरवर्ड लोकेशन पर सेना के टैंक, तोप और मिलिट्री व्हीकल्स की एयरक्राफ्ट से लोडिंग और अनलोडिंग से लेकर खाने-पीने का सामान और हथियार तक सैनिकों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी पायनियर कोर की होती है.
लेकिन ‘टीथ टू टेल’ अनुपात कम करने में जुटी सेना अब पायनियर कोर के ‘ऑप्टिमाइजेशन प्लान’ पर काम कर रही है. भारतीय सेना के उच्च पदस्थ सूत्रों ने टीएफए के एक सवाल पर कहा कि फिलहाल पायनियर कोर को बंद करने का कोई इरादा नहीं है. टीथ टू टेल के तहत सेना, कॉम्बेट यूनिट्स को मजबूत करने में जुटी है लेकिन सपोर्ट-सर्विस फॉर्मेशन्स को छोटा किया जा रहा है.
सूत्रों ने साफ किया कि “सेना ने हालांकि, पायनियर कोर के लिए अगले दस साल के लिए एक ऑप्टिमाइजेशन प्लान तैयार किया है. इसके तहत ही कोर ऑफ पायनियर की तीन यूनिट (बटालियन) को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) से हटा लिया गया है.” क्योंकि पायनियर कोर को इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए भी तैयार किया जाता रहा है.
सूत्रों के मुताबिक, अब पायनियर कोर को “टेरोटेरियल आर्मी (टीए) का भी रोल दे दिया जाएगा.” जिसमें देशभर में बंजर जमीन पर पेड़-पौधों को लगाने से लेकर नदियों की सफाई तक शामिल है.
गौरतलब है कि वर्ष 2020 में गलवान घाटी की झड़प के दौरान पायनियर कोर ने लेह-लद्दाख में सेना के बेहद तेजी से मोबिलाइजेशन में काफी मदद की थी. रातो-रात पूर्वी दिल्ली और चंडीगढ़ से मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट से टैंक और तोपों को जब लेह-लद्दाख पहुंचाया गया तो उन्हें उतारने से लेकर अग्रिम चौकियों तक पायनियर ने ही पहुंचाया था. इसके चलते ही भारतीय सेना ने चीन की पीएलए सेना का डटकर मुकाबला किया था. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1331471739138707458?s=46)
कारगिल युद्ध के दौरान ऊंचाई वाले इलाकों से घायल सैनिकों से लेकर पार्थिव-शरीर तक को बेस कैंप तक पहुंचाने में पायनियर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
हालांकि, पायनियर कोर की स्थापना पहली बार मद्रास (चेन्नई) में वर्ष 1758 में की गई थी लेकिन इसे ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने बंद कर कोर ऑफ इंजीनियर्स में मिला दिया था. लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोर ऑफ
पायनियर को एक बार फिर 1941 में खड़ा किया गया. पायनियर का आदर्श-वाक्य है ‘श्रम सर्व विजय’ यानी मेहनत से सब कुछ जीता जा सकता है.
सूत्रों के मुताबिक, सेना के तीनों अंग यानी थलसेना, वायुसेना और नौसेना अब साझा यानी ज्वाइंट लॉजिस्टिक नोड (जेएलएन) खड़ा कर रहे हैं. इसके तहत तीन साझा नोड्स बना लिए गए हैं—मुंबई, गुवाहटी और अंडमान निकोबार. साथ ही इन ज्वाइंट नोड्स के लिए दूसरी लोकेशन भी तलाश की जा रही हैं. इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है.