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Balochistan: पाकिस्तानी बेस पर चीनी ड्रोन निशाने पर

फ्री-बलूचिस्तान आंदोलन की वर्षगांठ से पहले पाकिस्तान में हमले तेज हो गए हैं. खास बात ये है कि ये हमले पाकिस्तान के उन सामरिक ठिकानों पर हो रहे हैं जहां चीन की मौजूदगी है. सोमवार की देर रात बलूचिस्तान के दूसरे सबसे बड़े नेवल एयर बेस पर एक बड़ा हमला हुआ जिसमें एक सैनिक समेत छह लोगों की मौत हो गई. पाकिस्तानी नौसेना के जिस तुर्बत एयर बेस पर हमला हुआ वहां चीन के ड्रोन तैनात रहते हैं. 

जानकारी के मुताबिक, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की माजिद-ब्रिगेड ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. 20 मार्च को ग्वादर पोर्ट पर हुए हमले की जिम्मेदारी भी बलूचिस्तान की इस लड़ाका-ब्रिगेड ने ली थी. पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, 25-26 मार्च की रात हुए हमले में बलूचिस्तान फ्रंटियर फोर्स (पैरा-मिलिट्री) के एक सैनिक की जान चली गई और 05 लड़ाके मारे गए. बीएलए ने इस हमले में हालांकि, पाकिस्तान के एक दर्जन से ज्यादा सैनिकों को हताहत करने का दावा किया है. 

बीएलए ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए आरोप लगाया है कि चीन बलूचिस्तान की संपदा का दोहन कर रहा है. इसलिए पाकिस्तान में जहां-जहां चीन की मौजूदगी होगी वहां हमले किए जाएंगे. माना जाता है कि तुर्बत नेवल एयर बेस पर चीन की ड्रोन तैनात हैं. इसलिए इस एयरबेस को निशाना बनाया गया. 

पिछले हफ्ते भी माजिद ब्रिगेड के लड़ाकों ने पाकिस्तान के मकरान तट पर चीन द्वारा बनाए जा रहे ग्वादर बंदरगाह पर एक बड़ा हमला किया था. इस हमले में बलूच लड़ाकों ने पाकिस्तानी मिलिट्री इंटेलिजेंस ( पाक-एमआई) के हेडक्वार्टर पर हमला किया था. उस हमले में आठ (08) बलूच लड़ाके और दो पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे (‘Free Balochistan’ से पहले ग्वादर पोर्ट पर हमला).

हर साल 27 मार्च को बलूचिस्तान सहित यूरोप और दूसरे देशों में बलूच नागरिक ब्लैक-डे मनाते हैं और फ्री-बलूचिस्तान की मांग करते हैं. क्योंकि इसी दिन 1948 में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर कब्जा किया था. हालांकि, पाकिस्तान एक साल पहले यानी 14 अगस्त 1947 को भारत से अलग हो गया था लेकिन बलूचिस्तान पर कब्जा करने में नौ महीने लग गए थे. पाकिस्तान के कब्जे के खिलाफ बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने पिछले कई दशक से आंदोलन छेड़ रखा है. इसको कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में दमनकारी नीति अपनाती है और मानवाधिकार उल्लंघन करती है. यही वजह है कि कुछ साल पहले बलूच नागरिकों ने अपने आंदोलन के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी थी. 

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