बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमलों, मंदिर में तोड़फोड़ और अल्पसंख्यकों की संपत्तियों पर हुए कब्जों को लेकर क्या बांग्लादेशी सेना प्रमुख ने सच्चाई छुपाने की कोशिश की है. ऐसा इसलिए, क्योंकि बांग्लादेशी आर्मी चीफ जनरल वकार उज जमां के मुताबिक, शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद के इस्तीफा देने और भारत भाग जाने के बाद हिंदुओं पर महज 20 हमलों की घटनाएं पूरे देश से सामने आई थी. जबकि टीएफए को मिली जानकारी के मुताबिक, हमलों की संख्या दस गुना ज्यादा थी यानी 200 से भी ज्यादा.
टीएफए को मिली एक्सक्लुजिव जानकारी के मुताबिक, 5 अगस्त को शेख हसीना के देश छोड़कर भारत आने के तीन बाद यानी 5-8 अगस्त के बीच बांग्लादेश का शायद ही कोई ऐसा जिला बचा था जहां हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर हमले नहीं हुए थे. इन हमलों में हिंदुओं के घरों में लूटपाट, मंदिरों में तोड़फोड़, अल्पसंख्यक समुदाय की गाय, दुकान और व्यापारिक संस्थानों पर लूटपाट और वसूली से लेकर शमशान घाट तक पर कब्जा करने की घटनाएं शामिल हैं.
कुल मिलाकर तीन दिनों में पूरे बांग्लादेश में 206 घटनाएं सामने आई थी. यानी बांग्लादेशी सेना प्रमुख ने हमलों की संख्या से एक शून्य कम कर दिया था. हाल ही में एक सैन्य कार्यक्रम में मीडिया से बात करते हुए जनरल वकार ने कहा था कि अल्पसंख्यकों पर हमले की महज 20 घटनाएं सामने आई थी. बांग्लादेशी सेना प्रमुख के मुताबिक, ये सभी घटनाएं राजनीति से प्रेरित थी.
बांग्लादेश के जिन जिलों में सबसे ज्यादा हिंदुओं के घरों, दुकानों, व्यवसायों और धार्मिक स्थलों पर हमला हुआ, उनमें राजधानी ढाका के अलावा चटगांव (चित्तागोंग), राजशाही, जैसोर, खुलना और दिनाजपुर शामिल हैं.
राजधानी ढाका में हिंदुओं पर हमलों की कुल आठ (08) घटनाएं सामने आई. इनमें बांग्लादेश हिंदू बौद्ध क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल की महासचिव दिपाली चक्रबर्ती के घर पर हुआ हमला और तोड़फोड़ शामिल हैं. इसके अलावा बैली रोड पर एक हिंदू रेस्टोरेंट के मालिक को बंद करने के लिए डराया-धमकाया गया. साथ ही ढाका में ही नंदीपारा मंदिर में तोड़फोड़ की गई.
शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के साथ ही पूरे देश में भारत-विरोधी विपक्षी पार्टी बीएनपी और कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने हिंसा और अराजकता फैला दी थी. हिंदुओं को टारगेट कर हमले किए गए. शेख हसीना के तख्तापलट के एक दिन बाद ही बांग्लादेश पुलिस ने हड़ताल कर दी थी जिसके कारण कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी. कट्टरपंथियों को रोकने वाला कोई नहीं बचा था. जब तक बांग्लादेश आर्मी मोर्चा संभालती, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
राजधानी के शिव मंदिर के करीब रहने वाले 50 हिंदू परिवारों को इलाका छोड़कर भागने की धमकी दी गई. ढाका में ही हिंदुओं की जमीन पर कब्जा करने की घटनाएं भी सामने आई.
ढाका से सटे नारायणगंज जिले में हिंदू पूजा परिषद के उपाध्यक्ष के घर पर हमले की घटना सामने आई. कट्टरपंथियों ने नारायणगंज के एक हिंदू डॉक्टर तक को नहीं बख्शा और उनके घर पर हमला कर दिया. नारायणगढ़ जिले में हिंदुओं के घरों और संपत्तियों पर हमले की कुल 06 घटनाएं सामने आई. मेहरपुर जिले के इस्कॉन मंदिर में भी तोड़फोड़ की घटना सामने आई थी.
मुंशीगंज जिले में कट्टरपंथियों ने रामकृष्ण मिशन के मंदिर में तोड़फोड़ की. नोआखाली जिले में भी एक काठीगढ़ मंदिर पर हमला किया गया. यहां पर एक हिंदू के एलपीजी गैस स्टोर पर कब्जे की भी रिपोर्ट सामने आई. नोआखाली में हिंदू महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की भी खबर सामने आई.
नोआखाली वहीं इलाका है जहां 1947 में बंटवारे के वक्त सबसे बड़े दंगे हुए थे और हिंदुओं पर बड़ी संख्या में मुस्लिमों ने जुल्म और अत्याचार किए थे. खुद महात्मा गांधी को यहां आकर मोर्चा संभालना पड़ा था.
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर सबसे ज्यादा हमलों की घटनाओं सामने आई चटगांव से. यहां डेढ़ दर्जन वारदात सामने आई. माईमानसिंग जिले में आई 10 घटनाएं सामने, जिसमें एक हिंदू व्यवसायी के दो कार भी उपद्रवी लूट कर भाग खड़े हुए. यहां हिंदुओं के कारोबार पर कब्जा करने की रिपोर्ट भी सामने आई.
भारत की सीमा से सटे जैसोर जिले में कुल 10 घटनाएं सामने आई. यहां एक साथ 22 हिंदुओं की दुकानों को लूट लिया गया. सतखीरा जिले (कुल 05 घटनाएं) में हिंदुओं की 8-10 दुकानों को लूट लिया गया. मगूरा (08 घटनाएं) में हिंदू समुदाय के एक पैट्रोल पंप को लूट लिया गया. साथ ही एक हिंदू पत्रकार के घर हमला कर उसकी 60 गायों तक को उपद्रवी लूट कर ले भागे. जैसोर से सटे खुलना में भी हिंदुओं पर हमले की 09 घटनाएं सामने आई.
जलाकथी जिले में भी एक हिंदू पत्रकार के घर को लूट लिया गया. यहां एक हिंदू को अपने घर में रहने के एवज में 50 हजार की वसूली तक देनी पड़ी है.
जानकारी के मुताबिक, भारत से सटे दिनाजपुर (12) और रंगपुर (04) जिलों में भी भारी संख्या में हिंदुओं पर हमले की घटनाएं सामने आई. दिनाजपुर में बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी ने हिंदुओं के श्मशान घाट तक पर कब्जा कर लिया. पांच मंदिरों में तोड़फोड़ की गई और 40-50 हिंदुओं की दुकानों को लूट लिया गया.
दिनाजपुर और रंगपुर जिलों से सटी भारतीय सीमा पर ही बांग्लादेशी हिंदू बड़ी संख्या में भारत आने की कोशिश कर रहे थे और नदी में कई दिन तक बैठे रहे थे. लेकिन भारत की बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) ने किसी को बांग्लादेश सीमा पार नहीं करने दी थी. इसको लेकर बीएसएफ ने अपनी बांग्लादेशी समकक्ष बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) से भी कई बार फ्लैग मीटिंग की है.
बघेरघाट जिले में एक हिंदू टीचर को भीड़ ने घर में घुसकर मार डाला जबकि उसकी पत्नी और बेटी को मार-मारकर अधमरा कर दिया. बघेरघाट में तीन दिनों के भीतर हिंदुओं पर हमले की कुल सात घटनाएं सामने आई.
बांग्लादेश सेना प्रमुख जनरल वकार का दावा था कि तख्तापलट के बाद हुई अराजकता के दौरान राजनीतिक कारणों से हमले किए गए थे. यानी बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) ने शेख हसीना की अवामी लीग के सदस्यों को निशाना बनाया था. जबकि हकीकत ये है कि इन हमलों को धर्म के आधार पर किया गया था. यहां तक की कट्टरपंथियों ने ईसाइयों के धार्मिक स्थलों पर भी पत्थरबाजी की थी. (तख्तापलट के बाद बांग्लादेशी सेना के घड़ियाली आंसू)
गुरुवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लाल किले की प्राचीर से बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी. मोदी ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से हिंदू समुदाय के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान किया था. (स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने उठाया बांग्लादेशी हिंदुओं का मुद्दा)
(टीएफए की ये रिपोर्ट बांग्लादेश के एक अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा सूचीबद्ध की गई घटनाओं पर आधारित है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अभी तक हिंदुओं पर हुए हमलों के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया है.)