तिब्बत में सुलग रहे विरोध के सुर के बाद चीन ने दलाई लामा से ‘बैक चैनल’ बातचीत शुरु कर दी है. करीब डेढ़ दशक बाद चीन ने धर्मशाला में तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रतिनिधियों से ये वार्ता शुरु की है. खुद सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन (सीटीए) के प्रमुख ने इस बात की पुष्टि की है.
जानकारी के मुताबिक, पिछले एक साल से सीटीए के प्रमुख के प्रतिनिधि चीन के अधिकारियों से बैक चैनल बातचीत कर रहे हैं. वर्ष 2002 से लेकर 2010 तक भी इस तरह की बातचीत दोनों पक्षों ने की थी. लेकिन आठ साल तक चलने के बाद वार्ता बेनतीजा रही तो बातचीत को बंद कर दिया गया था. लेकिन अब एक बार फिर चीन नए सिरे से बातचीत शुरु करना चाहता है.
चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में पिछले कुछ समय से हालात सामान्य नहीं हैं. चीन के प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से स्थानीय लोग आक्रोशित हैं और चीन के प्रशासन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. तिब्बत के लोगों का आरोप है कि डैम बनाने के नाम पर तिब्बत के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के बौद्ध मठों को तोड़ना चाहता है. पुराने शहरों को विस्थापित किया जा रहा है जिसके कारण मठों पर खतरा मंडराने लगा है (तिब्बत में Xi के डैम के खिलाफ विद्रोह (TFA Exclusive)).
हाल ही में तिब्बत क्रांति के 65 साल पूरा होने पर धर्मशाला सहित दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चीन के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किए गए थे. 1959 में तिब्बत क्रांति को बर्बरता पूर्ण कुचलने के चलते तिब्बत के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा भारत आए थे. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से ही दलाई लामा के सानिध्य में ही तिब्बत के निर्वासित सरकार यहां से चलती है. इस बात से भी चीन बेहद खफा रहता है (दलाई लामा पर चीन का तानाशाही फरमान (TFA Exclusive)).
गलवान घाटी की झड़प (2020) के बाद से भारत और चीन के संबंध भी बेहद नाजुक मोड़ पर हैं और दोनों देशों की सेनाएं पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर आमने-सामने हैं. चीन के खिलाफ भारत में रह रहे तिब्बती मूल के नागरिकों की ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ (एसएफएफ) के इस्तेमाल से भी चीन सकते में है. यही वजह है कि चीन ने तिब्बत में रहने वाले सभी परिवारों के लिए कम से कम एक सदस्य के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में अपनी सेवाएं देना अनिवार्य कर दिया है (गलवान में चीन ने इसलिए टेक दिए घुटने (TFA Insight)).
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