रुस-यूक्रेन युद्ध और गलवान घाटी की झड़प से सीख लेते हुए चीन ने अब इनफार्मेशन वारफेयर के लिए एक अलग फोर्स तैयार की है. चीन ने इसे ‘इंफॉर्मेशन सपोर्ट फोर्स’ (आईएसएफ) का नाम दिया है. इसके साथ ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की बेहद ही सीक्रेट ‘स्ट्रेटेजिक सपोर्ट फोर्स’ (एसएसएफ) को खत्म करते हुए उसकी जगह साइबर-स्पेस फोर्स और एयरोस्पेस फोर्स को भी अलग-अलग यूनिट में तब्दील कर दिया है.
हालांकि, चीन ने ये साफ नहीं किया है कि किन कारणों से एसएसएफ को खत्म किया गया है. लेकिन ये जरूर है कि इनफार्मेशन वारफेयर में पिछड़ने के कारण शी जिनपिंग के नेतृत्व वाली सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) ने आईएसएफ को एक स्वतंत्र आर्म (विंग) बनाने का फैसला लिया है. आईएसएफ को इसलिए भी अलग विंग बनाया गया है क्योंकि चीन की ‘अनरेस्ट्रक्टिटेड वारफेयर’ पॉलिसी में इंफोर्मेशन डोमेन को सामरिक नीति का अहम हिस्सा बताया गया है.
जानकारी के मुताबिक, अभी तक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के लिए जो काम ‘इंफॉर्मेशन कम्युनिकेशन बेस’ (आईसीबी) करता था उसे अब आईएसएफ के लेवल पर ले जाया गया है. इस तरह आईएसएफ भी साइबर-स्पेस और एयरोस्पेस फोर्स के बराबर माना गया है. ऐसे में चीन की सेना में अब चार कमांड, पीएलए-आर्मी, पीएलए-एयरफोर्स, पीएलए-नेवी और पीएलए-रॉकेट फोर्स के साथ तीन सपोर्ट फोर्स हो गई है यानी आईएसएफ, साइबर-स्पेस और एयरोस्पेस (अंतरिक्ष).
चीन के मुताबिक, खुद शी जिनपिंग ने इस बात पर जोर दिया है कि आईएसएफ “एक नई स्ट्रेटेजिक फोर्स है जो नेटवर्क इंफोर्मेशन सिस्टम की जिम्मेदारी तो निभाएगी ही, साथ ही सूचना के बल पर पीएलए के ऑपरेशन्स और साझा-विजय (ज्वाइंट विक्ट्री) के लिए कार्यरत होगी. इसके लिए आईएसएफ सूचना के सभी स्रोर्स को इंटीग्रेट करे के साथ ही इंफॉर्मेशन को बचाने की जिम्मेदारी भी निभाएगी.”
दरअसल, यूक्रेन युद्ध के दौरान रुस का इनफार्मेशन वारफेयर पश्चिमी देशों के मुकाबले थोड़ा कमजोर रह गया था. भले ही युद्ध के मैदान में बाजी रूसी सेना के पक्ष में थी लेकिन पश्चिमी देशों के मजबूत इंफो-वार के चलते पूरी दुनिया मे ‘नैरेटिव’ ये बन गया कि यूक्रेन का पलड़ा भारी है. इसका बड़ा खामियाजा रुस को झेलना पड़ा. लेकिन शुरुआती हफ्तों के झटकों के बाद रुस ने अपना इंफॉर्मेशन नेटवर्क मजबूत किया जिसके चलते आज ऑन-ग्राउंड और इंफो डोमेन दोनों में ही रुसी की आर्म्ड फोर्सेज ने यूक्रेन और नाटो देशों पर एक बड़ी बढ़त कायम कर रखी है. चीन को भी ये बात समझ आ गई है कि जमीन पर लड़ने के साथ साथ वार को वर्चअयुल स्पेस में भी लड़ना बेहद जरुरी है.
पूर्वी लद्दाख में भारत के साथ हुई गलवान घाटी की झड़प के दौरान भी चीन को ठंडे रेगिस्तान के साथ साथ ‘इंफोर्मेशन स्पेस’ में भी मुंह की खानी पड़ी. 20 सैनिकों के वीरगति को प्राप्त हुए ही भारत ने पूरी जानकारी आधिकारिक तौर से दुनिया के सामने रखकर युद्ध का मुंह अपनी तरफ मोड़ा तो चीन ने अपने मारे गए सैनिकों की जानकारी छह-सात महीने बाद जाकर सार्वजनिक की. तब तक भारत और अमेरिका सहित रुस की मीडिया ने भी ये कहना शुरु कर दिया कि चीन के 35-40 सैनिकों की जान गई है. चीन की एक बड़ी सेना और खुद को सुपर-पावर का दावा होने के बावजूद इतनी बड़ी सैन्य क्षति पीएलए की इमेज पर एक बड़ा दाग था.
हालांकि, चीन ने आज तक अपने मारे गए सैनिकों का आंकड़ा जारी नहीं किया है लेकिन जिन पांच सैनिकों को मरणोपरांत वीरता मेडल दिया था उनकी जानकारी जरूर मीडिया से साझा की थी. ऐसे में रणभूमि के साथ साथ सूचना-तंत्र में भी चीन की जबरदस्त भद्द पिटी. यहां तक की चीन के नागरिक ही सोशल मीडिया पर पीएलए आर्मी को हुए नुकसान को लेकर सच्ची झूठी कहानियां लिखने लगे. चीन को अपने नागरिकों को सुरक्षा से जुड़ी जानकारी साझा करने के लिए जेल तक भेजना पड़ा.
ऐसे में चीन चाहता है कि बैटलफील्ड से निकलने वाली हरेक सूचना को ‘वेपनाइज्ड’ किया जाए ताकि उसका सामरिक उपयोग किया जाए. इसी लिए खुद शी जिनपिंग ने पहल करते हुए आईएसएफ का गठन किया है. पूर्ववर्ती एसएसएफ के कमांडर बी यी को ही आईएसएफ का नया (पहला) कमांडर नियुक्त किया गया है.
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