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अहीर रेजिमेंट को लेकर सियासत फिर गर्म !

अग्निवीर विवाद के बाद विपक्ष अब सेना में अहीर रेजिमेंट के मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी में जुट गया है. क्योंकि कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने संसद के बजट सत्र में भारतीय सेना में ‘अहीर रेजिमेंट’ के गठन की मांग को उठाने का नोटिस दिया है. संसद में बजट सत्र शुरु हो चुका है. सरकार गठन के बाद जून में बुलाए गए विशेष सत्र के दौरान खुलकर अग्निवीर को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में तूतू मैंमैं हुई थी. अब  पहले बजट सत्र में भी सेना से जुड़े एक मुद्दे पर तीखी बहस हो सकती है. 18वीं लोकसभा के बजट सत्र के पहले दिन दीपेन्द्र हुड्डा ने मांग की है कि सेना में अहीर रेजिमेंट बनाई जाए. 

हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने अहीर रेजिमेंट बनाए जाने की मांग की हो. समय-समय पर तमाम राजनीतिक दल अहीर रेजिमेंट की मांग करते रहे हैं. नेताओं का कहना है कि सेना में अगर राजपूत, जाट और म्हार रेजिमेंट हो सकते हैं, तो फिर अहीर रेजिमेंट भी बनाई  जानी चाहिए. लेकिन सेना और सरकार जाति और धर्म के आधार पर नई रेजिमेंट बनाने के पक्ष में नहीं है. 

‘अहीर रेजिमेंट’ जरूरत या फिर चुनावी मुद्दा ?
हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा अहीर रेजिमेंट को लेकर मांग उठाते रहे हैं, संसद सत्र के पहले दिन एक्स पोस्ट पर दीपेन्द्र हुड्डा ने लिखा, “आज 18वीं लोकसभा के दूसरे सत्र के पहले दिन भारतीय सेना में ‘अहीर रेजीमेंट’ के गठन की अति-महत्वपूर्ण मांग को उठाने का नोटिस दिया.”

दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि “मैं रक्षा मंत्री से मांग करता हूं कि अब समय आ गया है कि अहीर भाईयों के राष्ट्र के प्रति समर्पण और बलिदान को देखते हुए देश की सेना में परंपरागत सेवा, जोश और जुनून को आने वाली पीढ़ियों में भी कायम रखने के लिए भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट का गठन अविलंब किया जाना चाहिए.”

इससे पहले भी दीपेन्द्र हुड्डा ने हरियाणा की एक जनसभा में कहा था कि वो अहीर रेजिमेंट के लिए हर लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं. पिछले महीने एक सभा में दीपेन्द्र हुड्डा ने ये तक कहा कि ”दो तीन महीने बाद ” जिस दिन हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनेगी तो पहली कैबिनेट की मीटिंग से अहीर रेजिमेंट के गठन की मांग को केंद्र सरकार को भेजेंगे. हरियाणा में कांग्रेस सरकार बनने पर अहीर रेजिमेंट के गठन की मांग विधान सभा से पारित कर केंद्र सरकार को भिजवाने का काम करेंगे.”

हुड्डा ने गिनाई अहीरों की वीरता की कहानी
दीपेन्द्र हुड्डा ने अपने पत्र में लिखा है कि “यदुवंशियों का इतिहास किसी परिचय का मोहताज नहीं. कई सौ सालों तक मातृभूमि की रक्षा में अहीरों ने साहस, वीरता, बलिदान की अनगिनत शौर्य गाथाएं लिखी हैं. तैमूर और नादिर शाह का आक्रमण हो या 1857 की क्रांति, प्रथम या द्वितीय विश्वयुद्ध हो या फिर 1948 में आजाद भारत की लड़ाई हो, चीनी सेना के खिलाफ रेजांगला की लड़ाई से लेकर पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध तक जब भी भारत की आन-बान-शान की बात आई और देश की सीमाओं में दुश्मनों ने सिर उठाने की भूल की. तब-तब ‘जय यादव, जय माधव’ के उद्घोष के साथ अहीर समाज ने कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मनों के नापाक मंसूबों को मिट्टी में मिलाकर भारत माता के वीर सपूत होने का फर्ज खूब निभाया.”

अहीर सैनिकों ने 1962 के युद्ध में अदम्य साहस दिखाया
1962 के युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन (यूनिट) के हरियाणा के अहीर सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था. 13 कुमांयू की चार्ली (अब रेजांगला) कंपनी ने रेजांगला युद्ध के दौरान पूर्वी लद्दाख में चीनी हमले का डटकर सामना किया था. 120 अहीर जवानों ने आखिरी दम तक युद्ध किया और जब तक एक भी जवान जिंदा रहा, हार नहीं मानी. 

चीन से ये युद्ध 18 नवंबर 1962 को 17,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था. मेजर शैतान सिंह की अगुवाई में चीन से लड़ने वाली टुकड़ी में 117 सैनिकों में से 3 जवान ही जीवित बचे थे. चीन से लड़ते हुए बेहद गंभीर चोट होने के बावजूद रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ से ताल्लुक रखने वाले सैनिकों ने हार नहीं मानी और मरते दम तक चीनी सैनिकों को जवाब दिया. सर्दियां खत्म होने के बाद शहीद जवानों के शव को वापस लाया गया. उस वक्त कई जवानों के हाथ में अंत समय तक हथियार थे. हथियार में कारतूस खत्म हो गए थे, लेकिन जांबाज अहीर सैनिकों ने हथियार नहीं छो़ड़े. मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े वीरता मेडल, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 8 जवानों को वीर चक्र और कई अन्य को सेना मेडल से सम्मानित किया गया था.

1962 के युद्ध के बाद मशहूर गायिका लता मंगेशकर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में इस लड़ाई पर लिखा गाना, ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’, सुनाया था. इस गाने को चीन युद्ध पर बनी फिल्म ‘हकीकत’ में भी दर्शाया गया था. 

साल 2012 में 1962 के युद्ध की 50वीं वर्षगांठ में अहीर रेजिमेंट बनाए जाने की मांग ने तूल पकड़ लिया जब 13 कुमाऊं के अहीर सैनिकों की गाथा लोगों को सुनाई गई. साल 2022 में रेजांगला की लड़ाई की 60वीं वर्षगांठ के बाद रेजिमेंट बनाने की मांग और तेज हो गई.

रेवाड़ी में मौजूद है रेज़ांगला स्मारक
चार्ली कंपनी के 124 में से 120 जवान दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र यानी गुड़गांव, रेवाड़ी, नारनौल और महेंद्रगढ़ जिलों के थे. रेवाड़ी और गुड़गांव में रेजांगला के वीरों की याद में स्मारक बनाए गए हैं. रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है.

क्या है अहीरों को सैन्य इतिहास. जिसकी वजह से रेजिमेंट की मांग ?
जाट, गुर्जर और राजपूतों के साथ अहीरवाल के यदुवंशी अहीरों को शुरू में अंग्रेजों द्वारा एक ‘लड़ाकू जाति’ के रूप में पहचाना गया था. हालांकि, अहीरों का सैन्य इतिहास ब्रिटिश काल से भी पहले का है. रेवाड़ी साम्राज्य की स्थापना 18वीं शताब्दी की शुरुआत में एक अहीर सैन्य प्रमुख राव नंदराम ने की थी. कहा जाता है कि नंदराम को रेवाड़ी के आसपास के 360 गांवों की जागीर मिली थी. 

मुगल सम्राट फर्रुखसियर (1713-1719) ने अहीरों को ‘चौधरी’ की उपाधि दी थी. लंदन के प्रोफेसर लूसिया मिशेलुट्टी ने अपनी पुस्तक ‘द वर्नाकुलराइजेशन ऑफ डेमोक्रेसी: पॉलिटिक्स, कास्ट एंड रिलीजन इन इंडिया में’ लिखा है कि मुगलों ने लगातार उन कुलों की विशेषताओं को माना जो जन्म और रक्त से राजपूत होने का दावा करते थे और अपहरिया, कौसलिया और कोसा प्रमुख अहीर कुलीन वंश थे, जिनका मुगल राज्य के प्रतिनिधियों से सीधा संपर्क था.

ब्रिटिश लेखक ए. एच. बिंगले ने भी जाटों, गुर्जर और अहीरों पर एक किताब लिखी थी. जिसमें बिंगले ने अहीरों की तुलना सेना में मार्शल से की थी. बिंगले ने लिखा- “अहीर उत्कृष्ट सैनिक बनते हैं. वो झूठे अभिमान से रहित, उद्दंडता के बिना स्वतंत्र, आरक्षित शिष्टाचार वाले लेकिन अच्छे स्वभाव वाले, हल्के दिल वाले और मेहनती होते हैं. हमेशा खुश रहने और अच्छा काम करने वाले होते हैं.”

अहीर रेजिमेंट पर क्या है सेना और सरकार क्या रुख?
अहीर जवानों को अलग-अलग रेजिमेंट में भर्ती किया जाता है. उन्हें कुमायूं, जाट, राजपूत और अन्य रेजिमेंट में अलग-अलग जाति के जवानों के साथ भर्ती किया जाता है.  सेना की ओर से कहा गया था कि “पहले से बनी हुई रेजिमेंट डोगरा, सिख, राजपूत, पंजाब रेजिमेंट ही रहेंगी, किसी भी नई रेजिमेंट जैसे अहीर, हिमाचल, कलिंग, गुजरात, आदिवासी रेजिमेंट को नहीं बनाया जाएगा.”

सरकार भी कह चुकी है कि सरकारी नीति के अनुसार, “सभी नागरिक, चाहे वो किसी भी वर्ग, पंथ, क्षेत्र या धर्म के हों, भारतीय सेना में भर्ती के लिए पात्र हैं. आजादी के बाद सरकार की नीति रही है कि किसी विशेष वर्ग, समुदाय, धर्म या क्षेत्र के लिए कोई नई रेजिमेंट नहीं बनाई जाए. भारतीय सेना में भर्ती के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए सभी वर्गों को पर्याप्त मौके प्रदान किए जा रहे हैं.”

पूर्वी लद्दाख में अहीर स्मारक

अहीर रेजीमेंट की मांग को देखते हुए हाल ही में सरकार ने पूर्वी लद्दाख के चुशूल सेक्टर में अहीर धाम (स्मारक) की स्थापना की थी. ये स्मारक चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब बनाया गया है. ये स्मारक उसी रेजांगला के करीब हैं जहां मेजर शैतान सिंह और उनकी पलटन ने चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ाए थे (https://x.com/neeraj_rajput/status/1461218301015564289).

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