अरब सागर में सोमनाथ मंदिर के करीब लाईबेरिया के जहाज पर हुए हमले को लेकर भारतीय नौसेना ने प्रारंभिक जांच के बाद साफ कर दिया है कि उस पर ड्रोन अटैक ही हुआ था. भारतीय नौसेना हालांकि, अभी भी इस बात को लेकर असमंजस में है कि आखिर ये हमला किस दिशा से हुआ है और इसमें किस तरह का बारूद इस्तेमाल किया गया है. भारत की समुद्री सीमा के करीब इतना बड़ा ड्रोन अटैक साफ दिखाता है कि भारत को रुस-यूक्रेन युद्ध से सबक लेने की सख्त जरूरत है.
भारतीय नौसेना ने एक संक्षिप्त बयान जारी कर बताया है कि शनिवार को गुजरात के तट से करीब 200 नॉटिकल मील (करीब 370 किलोमीटर) दूर अरब सागर में लाईबेरिया के जिस एमवी केम-प्लूटो ऑयल-केमिकल टैंकर (जहाज) पर हमला हुआ था वो ड्रोन के जरिए ही किया गया था. नौसेना के मुताबिक, मुंबई पहुंचने पर एक्सप्लोजिव ऑर्डिनेंस डिस्पोजल टीम ने एमवी प्लूटो का मुआयना किया और हमले वाली जगह और मलबे के प्रारंभिक विश्लेषण के बाद पाया कि शिप पर ड्रोन से हमला किया गया है. नौसेना के मुताबिक आगे फोरेंसिक और तकनीकी जांच के बाद साफ हो पाएगा कि ‘’हमला किस दिशा से हुआ और इसमें कितना और कौन सा एक्सपलोजिव इस्तेमाल किया गया था.’’
अरब सागर में समुद्री जहाज पर हो रहे हमलों को देखते हुए भारतीय नौसेना ने अपने तीन गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर, आईएनएस कोच्चि, आईएनएस कोलकाता और आईएनएस मोरमुगाओ को अलग-अलग क्षेत्रों में तैनात किया है. इसके अलावा लॉन्ग रेंज मैरीटाइम रेनोकॉसेंस एयरक्राफ्ट पी8आई को भी तैनात किया गया है. नौसेना के मुताबिक, मुंबई स्थित पश्चिमी कमान का मेरीटाइम ऑपरेशन्स सेंटर इंडियन कोस्टगार्ड और संबंधित एजेंसियों के तालमेल से पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं. (Somnath पहुंची इजरायल-हमास युद्ध की आग ? जहाज पर हुआ ड्रोन अटैक)
साफ है कि भारत के पास अभी ऐसी रडार या फिर तकनीक नहीं है जो लो-फ्लाइंग ड्रोन को डिटेक्ट कर सकती हो. माना जाता है कि ईरान के ‘शहीद-136’ (कामकाजी) ड्रोन लंबी दूरी तक बेहद नीचे उड़ान भरते हैं और उन्हें ट्रैक करना बेहद मुश्किल होता है. हालांकि, अभी तक ये साफ नहीं है कि क्या वाकई एमवी केम प्लूटो पर इन ड्रोन से हमला किया गया है. ईरान ने खुद अमेरिका के उस दावे को एक सिरे से खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था कि एमवी प्लूटो पर ईरान के शहीद ड्रोन ने हमला किया गया है. लेकिन ये बात पक्की है कि ईरान के अलावा हूती विद्रोहियों के पास ये शहीद ड्रोन हैं. ईरान ने यूक्रेन युद्ध में रुस को भी ये ड्रोन मुहैया कराए हैं. माना जाता है कि इन्ही ड्रोन की वजह से रुस को आज यूक्रेन पर एक निर्णायक बढ़त मिल गई है.
एमवी केम-प्लूटो और रेड सी (लाल सागर) में इजरायल और अमेरिका के जहाज पर हो रहे हमलों से साफ है कि युद्ध सिर्फ जमीन पर और आमने-सामने नहीं लड़ी जाएगी. यूक्रेन युद्ध के दौरान भी रुस को शुरुआत में ऐसे ही अन-कन्वेंशनल वॉरफेयर यानी गैर-पारंपरिक युद्ध का सामना करना पड़ा था. रुस की सेना यूक्रेन के खिलाफ पारंपरिक युद्ध छेड़ा था यानि अपने पैदल सैनिक और टैंक, इंफेंट्री कॉम्बैट व्हीकल (आईसीवी) से यूक्रेन की राजधानी कीव, खारकीव, सुमी इत्यादि इलाकों की घेराबंदी की थी. लेकिन यूक्रेन ने ड्रोन अटैक के जरिए रुस सेना को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया था.
हाल ही में रुस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने जो पिछले दो सालों के यूक्रेन युद्ध के आंकड़े जारी किए हैं उसके मुताबिक, यूक्रेन को अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों से करीब 23 हजार ड्रोन मिले हैं. वहीं टैंक की संख्या 5220 है और आर्टलरी की 1300. पश्चिमी देशों से यूक्रेन को मात्र 28 एयरक्राफ्ट और 87 हेलीकॉप्टर मिले थे. अगर यूक्रेन ने रुस की सेना के आक्रमण को रोकने में कामयाबी पाई तो वो ड्रोन वॉरफेयर के जरिए संभव हो पाया. युद्ध के शुरुआती महीनों में रूसी सैनिक यूक्रेन के लॉएटरिंग-म्युनिशेन (कामकाजी ड्रोन) को देखकर अपने टैंक, आईसीवी और ट्रक तक छोड़कर भाग खड़े होते थे. ड्रोन अटैक से बचने के लिए रूसी सेना को अपने टैंकों के कपोला पर लोहे के जाल तक लगाने पड़े. कुछ ऐसी ही स्थिति हमास के खिलाफ इजरायल के टैंकों की भी है. इजरायल डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) ने यूक्रेन जंग से सबक लेते हुए अपने सभी टैंक और इंफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल्स पर एहतियातन लोहे के जाल-नुमा छत लगा रखी थी. (रूस-यूक्रेन जंग से सीख, इजरायल ने टैंक पर लगाए ‘roof cage’ और ‘V’ साइन)
यूक्रेनी सेना ने ना केवल जमीन पर बल्कि समंदर में भी ड्रोन अटैक से रुस को बड़े झटके दिए हैं. यूक्रेन ने अनमैन्ड अंडरवाटर व्हीकल्स के जरिए ब्लैक सी (काला सागर) और अजोव-सागर में रुस के युद्धपोतों को नुकसान पहुंचाया. यूक्रेन के यूएवी ने क्रीमिया में रुस की ब्लैक-सी फ्लीट के मुख्यालय से लेकर सेवास्तोपोल बंदरगाह पर खड़े युद्धपोतों तक को निशाना बनाकर रुस की नौसेना की कमर तोड़ने की कोशिश की. यूक्रेन ने एक साथ दो-तीन दर्जन ड्रोन्स से सेवास्तोपोल के बंदरगाह पर हमले किए.
रुस को इन ड्रोन्स को रोकने के लिए कई बार मिसाइल तक दागनी पड़ी. क्योंकि उन्हें न्यूट्रिलाइज करने के लिए रुस के पास जरूरी एंटी-ड्रोन तकनीक नहीं थी. रुस की नौसेना यूक्रेन के ड्रोन वॉरफेयर का सिर्फ इसलिए सामना करने में सक्षम रही क्योंकि रुस के पास जंगी जहाजों की एक बड़ी फ्लीट (बेड़ा) है.
ईरान और नॉर्थ कोरिया से लिए ड्रोन और दूसरी डेस्ट्रेक्टिव तकनीक के साथ साथ रुस ने हाल के महीनों में अपने यूएवी उत्पादन को जबरदस्त बढ़ाया है. रुस के रक्षा मंत्री शोइगु की मानें तो इस साल (2023) में रुस ने ड्रोन प्रोडक्शन को 16.8 गुना तक बढ़ा दिया है. जबकि इस दौरान टैंक का उत्पादन मात्र 5.6 गुना बढ़ा है और आईसीवी का 3.6 गुना. इस दौरान रुस ने अपने आर्टिलरी एम्युनिशन का प्रोडक्शन 17.5 गुना बढ़ाया. साफ है कि इजरायल-हमास जंग हो या फिर रुस-यूक्रेन या फिर ईरान-हूती हमले, सभी में नॉन-कांटेक्ट और ड्रोन जैसी डेस्ट्रेक्टिव टेक्नोलॉजी का बढ़ चढ़कर इस्तेमाल किया जा रहा है.
ऐसे में भारत और भारतीय नौसेना को खासतौर से समंदर में लड़े जाने वाली ड्रोन वॉरफेयर को कमर कसकर रखनी होगी. भारतीय नौसेना के पास इस वक्त अमेरिका से लिए दो एमक्यू-9 रीपर ड्रोन हैं जो समंदर की निगहबानी के लिए हैं. अमेरिका से 31 एमक्यू-9 सी-गार्डियन और एयर-गार्डियन की डील अभी पूरी नहीं हुई है. खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश के मामले से अमेरिका से संबंधों में आई खटास से डील में अभी एक लंबा वक्त लग सकता है. इसके अलावा डीआरडीओ का स्वदेशी तपस ड्रोन बनकर तैयार है लेकिन हाल ही में परीक्षण के दौरान क्रैश की घटना से इसकी उड़ान भी थोड़ी धीमी पड़ सकती है.
भारत की कुछ प्राईवेट डिफेंस कंपनियां इस बात का दावा जरुर करती हैं कि उनकी पास ऐसे रडार क्रॉस सेक्शन वाली काउंटर-ड्रोन तकनीक मौजूद है जो लो-फ्लाइंग यूएवी को डिटेक्ट कर सकती हैं लेकिन उन्हें अभी यूजर्स (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) की कसौटी पर खरा उतरना बाकी है (आसमान में इंद्रजाल, नहीं हो सकेगा कोई ड्रोन अटैक (TFA Exclusive).
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