“लंबी कतारों में छिपी हैं बदलते सूरत -ए-हाल यानी जम्हूरियत की कहानी, रोशन उम्मीदें खुद करेंगी गोया अपनी तकदीरें बयानी...” कुछ इन्हीं पंक्तियों के साथ चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर के चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया है. 10 साल बाद होने वाला है जम्मू कश्मीर में चुनाव. ऐसा चुनाव जो आतंकियों के नापाक इरादों को देगा मुंहतोड़ जवाब. क्योंकि जम्मू कश्मीर की जनता शांति चाहती है और सुकून चाहती है. आर्टिकल 370 के हटने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने वाला है.
जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में होंगे चुनाव: चुनाव आयुक्त
जम्मू क्षेत्र में में हाल के महीनों में आतंकी घटनाओं में हुई वृद्धि के बीच चुनाव आयोग ने इलेक्शन की घोषणा कर दी है. आयोग के मुताबिक जम्मू कश्मीर में तीन चरणों में वोटिंग होगी. 18 सितंबर को पहला चरण, 25 सितंबर को दूसरा चरण और 1 अक्टूबर को तीसरे और आखिरी चरण में वोट डाले जाएंगे. वहीं 4 अक्टूबर को रिजल्ट घोषित किया जाएगा. पहले चरण में 24 सीटों, दूसरे चरण में 26 सीटों पर, और तीसरे चरण में 40 सीटों पर वोटिंग की जाएगी. जम्मू कश्मीर में इस समय 87.09 लाख मतदाता हैं, जिनमें 20 लाख से ज्यादा युवा हैं. चुनाव आयोग 20 अगस्त को फाइनल वोटर लिस्ट जारी होगी.
दुनिया देखेगी नापाक इरादों के शिकस्त की कहानी: मुख्य चुनाव आयुक्त
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने एक शायरी के माध्यम से कहा, “लंबी कतारों में छिपी हैं बदलते सूरत ए हाल यानी जम्हूरियत की कहानी, रोशन उम्मीदें खुद करेंगी गोया अपनी तकदीरें बयानी. जम्हूरियत के जश्न में आपकी शिरकत, दुनिया देखेगी नापाक इरादों के शिकस्त की कहानी.”
राजीव कुमार ने कहा, “जम्मू कश्मीर की आवाम तस्वीर बदलना चाहती है. चुनाव के लिए हर किसी में उत्सुकता है, हम मौसम ठीक होने के इंतजार में थे. अमरनाथ यात्रा खत्म होने का इंतजार था.”
बुलेट-बायकॉट की जगह लोगों ने बैलेट चुना- चुनाव आयुक्त
चुनाव आय़ुक्त ने कहा, “लोकसभा में जिस तरह से लोगों ने बढ़ चढ़ कर वोटिंग में हिस्सा लिया था वो काबिले तारीफ है. लोगों ने बुलेट-बायकॉट की जगह लोगों ने बैलेट चुना.”
अगर इस साल हुए लोकसभा चुनावों पर गौर किया जाए तो जम्मू-कश्मीर के लोगों ने चुनावों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. जम्मू कश्मीर में लोकसभा चुनाव 2024 में कुल वोट प्रतिशत 65.52% रहा था. इसमें बीजेपी को 23%, पीडीपी को 22.7%, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 20.8% और कांग्रेस को 18% वोट मिले थे.
83 नहीं 90 सीटों पर होगा चुनाव
अनुच्छेद 370 हटने के बाद होने वाले चुनाव में कई अहम बदलाव हुआ है. 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों में बंट गया. पहला, जम्मू-कश्मीर और दूसरा, लद्दाख. दोनों ही अब केंद्र शासित प्रदेश हैं. 10 साल सीटों की संख्या भी पहले से थोड़ी बढ़ गई है.
पुराने जम्मू-कश्मीर में जम्मू में 37 और कश्मीर में 46 सीटें होती थीं. जम्मू, हिन्दू बाहुल्य जबकि कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य इलाका है. लिहाजा, कश्मीर में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद पार्टियों को सरकार बनाना आसान हो जाता था. लेकिन अब परिसीमन के बाद जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 सीटें होंगी. जिसके बाद अब सिर्फ कश्मीर ही नहीं, बल्कि जम्मू में भी ज्यादा सीटें जीतना जरूरी हो गया है. जम्मू में 6 सीटें बढ़ने से जम्मू-कश्मीर में बीजेपी को फायदा मिल सकता है.
कहां कितनी सीटें बढ़ीं?
जम्मू रीजन में सांबा, कठुआ, राजौरी, किश्तवाड़, डोडा और उधमपुर में एक-एक सीट बढ़ाई गई है. वहीं, कश्मीर रीजन में कुपवाड़ा जिले में एक सीट बढ़ाई गई है. जम्मू के सांबा में रामगढ़, कठुआ में जसरोता, राजौरी में थन्नामंडी, किश्तवाड़ में पड्डेर-नागसेनी, डोडा में डोडा पश्चिम और उधमपुर में रामनगर सीट नई जोड़ी गईं हैं. कश्मीर रीजन में त्रेहगाम नई सीट होगी. अब कुपवाड़ा में 5 की बजाय 6 सीटें होंगी.
कश्मीरी पंडितों के लिए रिजर्व होंगी दो सीटें
वहीं कश्मीरी पंडितों जिन्हें कश्मीरी प्रवासी कहा गया है. उनके लिए दो सीटें रिजर्व रखी गई हैं. अब उपराज्यपाल विधानसभा के लिए तीन सदस्यों को नॉमिनेट कर सकेंगे, जिनमें से दो कश्मीरी प्रवासी और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति होगा. जिन दो कश्मीरी प्रवासियों को नामित किया जाएगा, उनमें से एक महिला होगी. कश्मीरी प्रवासी उसे माना जाएगा जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन किया हो और उसका नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर हो.
2014 में जम्मू-कश्मीर का सियासी समीकरण जानिए
जम्मू कश्मीर में 2014 में कुल 111 सीटें थीं. इनमें से 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर (पीओके) के लिए निर्धारित हैं. बाकी 87 सीटों पर चुनाव हुआ था, जिसमें लद्दाख की भी चार सीटें शामिल थीं. साल 2014 में पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी, पर महबूबा मुफ्ती की पीडीपी को बहुमत नहीं मिला था. ऐसे में महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था और तब बीजेपी और पीडीपी की सरकार सत्ता में आई थी. पर गठबंधन के करीब 4 साल बाद जून 2018 में बीजेपी के सरकार से समर्थन वापस ले लेने के बाद सरकार गिर गई थी. तबसे जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार नहीं है.
अब राज्य सरकार की शक्तियों में बदलाव
2019 के बाद सरकार की शक्तियों में भी बदलाव हुआ है. पहले चुनी हुई सरकार ही सबकुछ होती थीं, लेकिन अब ज्यादातर शक्तियां उपराज्यपाल के पास होंगी. पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर उपराज्यपाल का अधिकार होगा. जबकि, बाकी सभी मामलों पर चुनी हुई सरकार फैसला कर सकेगी हालांकि राज्य सरकार को अपने फैसलों के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी.
चुनाव मैदान में नहीं दिखेंगे महबूबा मुफ्ती जैसे बड़े नेता
जम्मू-कश्मीर में चुनाव इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि इस बार जम्मू-कश्मीर के बड़े-बड़े नेता चुनावी मैदान में नहीं नजर आएंगे. पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती हो या फारूक अब्दुल्ला दोनों ही चुनाव नहीं लड़ेगे. वहीं आतंकी वारदातों में इजाफा होने के बाद पार्टी उम्मीदवारों के साथ-साथ पार्टी के पदाधिकारियों को भी सुरक्षा देने के निर्देश दिए गए हैं.