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म्यांमार का Sittwe पोर्ट भारत का, चाबहार के बाद दूसरा

छोटे देशों को आंख दिखाकर या फिर कर्ज के बोझ में दबाने वाले चीन की हेकड़ी भारत के एक फैसले के बाद निकल गई है. अरुणाचल प्रदेश में पहले सेला टनल बनाकर तो अब म्यांमार में सितवे पर भारत की मौजूदगी से चीन टेंशन में आ गया है. ग्लोबल ताकत के तौर पर देखे जाने वाले भारत ने ईरान के चाबहार के बाद एक और देश के बंदरगाह पर परिचालन का नियंत्रण हासिल किया है.

भारत को मिली ‘सितवे’ बंदरगाह की जिम्मेदारी
म्यांमार और भारत के बीच एक ऐसा फैसला हुआ है, जिससे चीन की चिंता बढ़ गई है. भारत को म्यांमार के सितवे बंदरगाह के संचालन की पूरी जिम्मेदारी मिल गई है. विदेश मंत्रालय ने सितवे में कलादान नदी पर मौजूद पूरे बंदरगाह का संचालन संभालने के लिए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. मंजूरी मिलने के बाद सितवे पोर्ट का प्रबंधन अब आईपीजीएल देखेगी. सितवे पोर्ट के जरिए समंदर में भारत की मौजूदगी सुरक्षा और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाने की दिशा में एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है. सितवे पोर्ट भारत की मदद से ही साल 2016 में म्यांमार के रखाइन राज्य की राजधानी सितवे में बनाया गया था. ईरान में चाबहार के बाद म्यांमार का सितवे भारत का दूसरा विदेशी बंदरगाह है.

भारत के लिए बेहद अहम है सितवे बंदरगाह
नॉर्थ ईस्ट में अपनी कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए भारत के लिए सितवे पोर्ट बेहद अहम है. चीन से तनातनी के बीच रणनीतिक तौर पर ये पोर्ट भारत की दावेदारी को मजबूत करेगा. दरअसल, सितवे पोर्ट कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इस परियोजना का लक्ष्य कोलकाता के पूर्वी भारतीय बंदरगाह को समुद्र के रास्ते म्यांमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ना है. यह आगे सितवे बंदरगाह को कलादान नदी जलमार्ग के माध्यम से म्यांमार के पलेतवा और फिर सड़क मार्ग के माध्यम से मिजोरम के जोरनपुई से जोड़ेगा. मिजोरम तक जोड़ने वाले इस रूट के तैयार होने के बाद भारत के लिए उत्तर पूर्व (नॉर्थ ईस्ट) में मौजूद राज्यों तक सप्लाई पहुंचाने में आसान होगी. इस लिंक के खुलने से पूर्वोत्तर राज्यों में माल भेजने के लिए एक वैकल्पिक रूट बनेगा. रूट बनने के बाद सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता भी कम हो जाएगी, जिसे चिकन नेक के नाम से जाना जाता है.

चीन से मुकाबले के लिए जरूरी है म्यांमार
बौद्ध धर्म भारत और म्यांमार के संबंधों की एक मजबूत डोर है. म्यांमार की संस्कृति पर बौद्ध धर्म की गहरी छाप साफ नजर आता है. भारत के लिए म्यांमार आर्थिक, सैन्य और सुरक्षा कारणों से बेहद अहम है, वो भी तब जब चीन की नजर लगातार म्यांमार पर हो. चीन लगातार म्यांमार में दखल दे रहा है. भारत का म्यांमार के साथ 1643 किलोमीटर का बॉर्डर है, जो चार पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम से सटा है. भारत और म्यांमार के बीच एक हिस्सा समंदर से भी गुजरता है. भारत में नॉर्थ ईस्ट में अशांति और उपद्रव खत्म करने के लिहाज से हाल ही में केन्द्र सरकार ने पूरी तरह से तारबंदी करने का फैसला लिया है. गृहमंत्री अमित शाह ने भारत-म्यांमार सीमा के 1,643 किलोमीटर में से अतिरिक्त 300 किलोमीटर के लिए स्मार्ट बाड़ लगाने की प्लानिंग की घोषणा की थी.

अंडमान से 55 किलोमीटर दूर सैन्य अड्डा
सेटेलाइट तस्वीरों से इस बात का खुलासा हुआ है कि म्यांमार के ग्रेट कोको द्वीप पर सैन्य अड्डा बनकर तैयार हो गया है. कोको द्वीप के एयरक्राफ्ट के हैंगर बनाने का निर्माण कार्य पूरा किया जा चुका है. म्यांमार का ये म‍िल‍िट्री बेस भारत के अंडमान निकोबार द्वीप से मात्र 55 किमी की दूरी पर है. कहा जाता है कि इस सैन्य बेस को चीन ने बनाया है जहां चीनी खुफिया एजेंसी का अड्डा भी है. कोको द्वीप ना सिर्फ दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्ग मलक्का स्ट्रेट से करीब है बल्कि भारत के अंडमान निकोबार द्वीप से मात्र 55 किमी की दूरी पर है. अंडमान में ही भारत की तीनों ही सेनाओं की एकीकृत कमान है. दरअसल गृहयुद्ध झेल रहे म्यांमार में चीन पैठ बढ़ाना शुरु कर चुका है, कोको द्वीप के जरिए चीन जासूसी कर सकता है. पर चीन की चालबाजी पर भारत ने भी रणनीति बना ली है और अब सितवे बंदरगाह का प्रबंधन भारत के हाथ में हैं.  

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