जिस देश में वो डिप्लोमैट कदम रखता है, सत्ता में भूचाल मच जाता है. जिस डिप्लोमैट को बांग्लादेश में तख्तापलट का मास्टरमाइंड माना जाता है, जिसके श्रीलंका में कदम रखते ही सरकार विरोधी प्रदर्शन उग्र हो गए थे, अब वो डिप्लोमैट आ रहा है भारत. ये है अमेरिका का विवादास्पद राजनयिक डोनाल़्ड लू.
कई देशों में तिकड़म से सरकारों को गिराने में माहिर है अमेरिकी राजनयिक डोनाल्ड लू. अमेरिकी विदेश विभाग ने डोनाल्ड लू की भारत और बांग्लादेश की यात्रा (10-16 सितंबर) की घोषणा की है. अमेरिका ने लू की यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों में सहयोग और रिश्तों में सामन्जस्यता बढ़ाना बताया है.
डोनाल्ड लू का हालांकि, ट्रैक रिकॉर्ड साफ नहीं है. कहा जाता है कि लू जिस जिस भी देश में कदम रखते हैं वहां कुछ दिनों बाद सत्ता परिवर्तन की कोशिश होती है. बांग्लादेश और श्रीलंका इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. कहा जाता है डोनाल्ड लू ही वो ‘व्हाइटमैन’ है, जिसने अमेरिका की तरफ से शेख हसीना को सत्ता में बने रहने के एवज में बंगाल की खाड़ी में एयरबेस बनाने देने की पेशकश की थी. व्हाइटमैन की पेशकश ठुकराने से लेकिन, क्या हुआ, ये जगजाहिर है. कितना उग्र प्रदर्शन, कितनी हिंसा कि शेख हसीना को अपना देश तक छोड़ना पड़ा.
खुद इमरान खान भी आरोप लगा चुके हैं कि विदेशी हस्तक्षेप के कारण उन्हें हटाया गया. इसके पीछे भी डोनाल्ड लू का ही हाथ बताया जाता है. दरअसल इमरान खान रूस के साथ संबंध बढ़ा रहे थे. जो अमेरिका को नहीं पसंद था. हालांकि डोनाल्ड लू ने अपने ऊपर लगाए आरोपों को खारिज कर दिया था.
भारत आ रहे अमेरिकी राजनयिक डोनाल्ड लू, क्या कोई साजिश की बू?
अमेरिका के वरिष्ठ राजनयिक डोनाल्ड लू इस हफ्ते भारत और बांग्लादेश का दौरा करने वाले हैं. डोनाल्ड लू अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण और मध्य एशिया के लिए सहायक विदेश मंत्री के पद पर कार्यरत हैं. इससे पहले लू, अल्बानिया और किर्गिस्तान में अमेरिका का राजदूत रहे हैं.
अमेरिकी विदेश विभाग ने बताया कि “डोनाल्ड लू इंडिया आइडियाज समिट में हिस्सा लेंगे. इसके अलावा वह अमेरिका और भारत के टू प्लस टू बातचीत में हिस्सा लेंगे.”
अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक, “डोनाल्ड लू की इस यात्रा का मकसद अमेरिकी साझेदारों के आर्थिक विकास का समर्थन करने और पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता की पुष्टि करना है. “
डोनाल्ड लू और भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत में भारतीय विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय से लोग शामिल होंगे. इस मुलाक़ात में भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने पर बातचीत होगी.
चुनाव के बीच भी लू ने किया था भारत का दौरा
इस साल लोकसभा चुनाव के बीच भी डोनाल्ड लू ने भारत का दौरा किया था. उस दौरान डोनाल्ड लू बांग्लादेश और श्रीलंका भी गए थे. हैरानी की बात ये थी कि डोनाल्ड लू ने ना सिर्फ दिल्ली बल्कि चेन्नई का दौरा किया था. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि लू का चेन्नई दौरा इसलिए था क्योंकि वहां द्रविड़ राजनीति मजबूत है और तमिलनाडु में अलगाववादी सोच के लोग रहे हैं. डीएमके के नेता हमेशा से एक अलग ‘द्रविड़नाडु’ बनाने की मांग करते रहे हैं. अमेरिका ने हालांकि, कहा था कि “डोनाल्ड लू दक्षिण भारत से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने’ के लिए चेन्नई गए थे.”
पिछले साल जनवरी 2023 में कई रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया गया था कि राहुल गांधी ने अमेरिका में एक सीक्रेट बैठक की थी. जिसमें डोनाल्ड लू भी मौजूद थे. इस दौरान बैठक में डोनाल्ड लू ने भी भारत में मोदी सरकार के कार्यकाल में मानवाधिकार को लेकर चिंता जताई थी.
भारत में मानवाधिकारों का बहाना या मजबूत सरकार से अमेरिका चिंतित!
मार्च 2023 में जब अमेरिका की सीनेट फॉरेन अफेयर्स कमेटी के सामने डोनाल्ड लू ने भारत में मानवाधिकार को लेकर चिंता जताई थी. डोनाल्ड लू ने जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का ना होना और मानवाधिकार हनन पर चिंता जाहिर की थी. डोनाल्ड लू ने कहा था, “हम पूरे देश में मुस्लिमों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भेदभाव की के साथ-साथ एनजीओ को प्रतिबंधित किए जाने की खबरों पर बारीकी से नज़र बनाए हुए हैं. ये अहम है कि एक पार्टनर के तौर पर हम भारत में परेशान करने वाली घटनाओं को लेकर आवाज़ उठाएं.”
दरअसल, अमेरिका का डीप स्टेट भारत में एक मजबूत मोदी सरकार की जगह गठबंधन वाली बीजेपी विरोधी सरकार को सत्ता में लाना चाहता है. इसलिए ही ‘अग्निवीर’ को लेकर भ्रम फैलाया गया, जाति जनगणना को लेकर हिंदुओं को बांटने की कोशिश की गई. किसान आंदोलन से लेकर शाहीन बाग में एनआरसी को लेकर आंदोलन ये सब कहीं ना कहीं साजिश का हिस्सा रहे हैं. ये सब ऐसे मुद्दे हैं जिस पर दुनिया में भारत को बदनाम करने की कोशिश होती रही है और एक बड़ा तबका भी प्रभावित होकर ऐसे जालों में फंसता चला जाता है कि सच में हिंदुस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ बुरा हो रहा है.
कश्मीर में नाइंसाफी हो रही है. सोशल मीडिया पर तरह तरह के फर्जी मैसेज के जरिए लोगों को भड़काया जाता है, युवाओं का ब्रेनवाश किया जाता है. भारत विरोधी गतिविधियां होती हैं और यहीं सब तो डोनाल्ड लू जैसा लोग चाहते हैं कि भारत की आंतरिक सुरक्षा को कमजोर किया जाए ताकि फूट डालो और राज करो की नीति सफल हो. जिस भी देश में एकजुटता नहीं है, वहां ना कभी प्रगति हो सकती है और ना ही देश आत्मनिर्भर बन सकता है.
क्या भारत में अल्पसंख्यकों के बहाने दखल दे रहा है अमेरिका?
भारत में अमेरिकी दूतावास के सीनियर अधिकारियों ने 26 अगस्त को कश्मीरी नेताओं से मुलाकात की थी. दूतावास के अधिकारी नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला से उनके घर पर मिलने श्रीनगर पहुंचे. ये मुलाकात उमर अब्दुल्ला के घर पर हुई थी. कश्मीरी नेताओं से मिलने वाले अधिकारियों में अमेरिकी दूतावास में राजनीतिक मामलों के मिनिस्टर-काउंसलर ग्राहम मेयर, फर्स्ट सेक्रेटरी गेरी एप्पलगार्थ और राजनीतिक काउंसलर अभिराम शामिल थे.
सिर्फ इतना ही नहीं, अमेरिका संवेदनशील मुद्दों को छेड़ रहा है. मसलन संसद में वक्फ संशोधन विधेयक की चर्चा चल रही है. तब 12 अगस्त को एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी से मिली थी अमेरिकी कॉन्सुल जनरल. लार्सन हैदराबाद में अमेरिकी मिशन का नेतृत्व करती हैं. जेनिफर लार्सेन ने असदुद्दीन ओवैसी से मुलाकात की थी. कॉन्सुल जनरल जेनिफर लार्सेन ने मुलाकात की तस्वीर एक्स पर पोस्ट की थी.
ओवैसी से ही नहीं जेनिफर ने बल्कि सीएम और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू से भी बातचीत की थी. चंद्रबाबू वो नेता हैं, जिन्होंने मोदी सरकार को समर्थन दिया हुआ है. चंद्रबाबू नायडू ने वक्फ संशोधन बिल का विरोध किया है. मतलब साफ है कि अमेरिका, भारत में कुछ ना कुछ खिचड़ी जरूर पका रहा है. भारत में चाहे वो कश्मीर का मुद्दा हो या मुसलमानों से जुड़ा कोई मुद्दा, अमेरिका उसके जरिए अपना उल्लू साध रहा है.
अब जब जम्मू कश्मीर में चुनाव होने वाले हैं तो डोनाल्ड लू एक बार फिर भारत पहुंच रहे हैं. क्योंकि आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद ना सिर्फ पत्थरबाजी की घटनाएं कम हुई है बल्कि पर्यटकों की संख्या का भी रिकॉर्ड टूट गया है.