भारत क्या अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को मान्यता देने की तैयारी कर रहा है. ये सवाल इसलिए क्योंकि तालिबान द्वारा बुलाई अंतर्राष्ट्रीय मीटिंग में भारत की तरफ से दो प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया है. तालिबान के मुताबिक, भारत ने अफगानिस्तान में विकास और स्थिरता बनाए रखने का समर्थन किया है.
खास बात ये है कि अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में हुई ये मीटिंग ऐसे समय में हुई है जब यूएई की राजधानी अबू धाबी में भारतीय दूतावास में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में तालिबान के राजदूत बदरुद्दीन हक्कानी को भी निमंत्रण भेजा गया था. बदरुद्दीन राजदूत बनने से पहले हक्कानी नेटवर्क (पूर्व आतंकी संगठन) से जुड़े रहे थे. लेकिन वर्ष 2021 में जब तालिबान ने अफगान सरकार को उखाड़ फेंका तो हक्कानी नेटवर्क भी सरकार का हिस्सा बन गया था.
29 जनवरी को अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार के विदेश मंत्रालय ने भारत सहित 11 देशों के राजनयिकों को आमंत्रित किया था. इस बैठक में तालिबान को समर्थन देने वाले रुस, चीन, ईरान, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, और तुर्की जैसे देशों के डिप्लोमेट्स ने शिरकत की थी. तालिबान ने इस बैठक को अफगानिस्तान के क्षेत्रीय सहयोग की पहल का नाम दिया है.
काबुल में आयोजित इस बैठक को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय ने कोई बयान जारी नहीं किया है. लेकिन तालिबान सरकार के विदेश मंत्रालय के उप-प्रवक्ता हाफिज जिया अहमद ने अपने एक्स अकाउंट (पूर्व ट्विटर) में भारत के दो प्रतिनिधियों की तस्वीरें साझा कर लिखा कि भारतीय प्रतिनिधियों ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा है कि “अफगानिस्तान से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पहल में भारत सक्रिय तौर से हिस्सा लेता है. भारत अफगानिस्तान केे विकास और स्थिरता को पूरी तरह समर्थन करता है.” https://x.com/HafizZiaAhmad/status/1751974371055608289?s=20
तालिबान की मीटिंग में शिरकत को लेकर दिल्ली में अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत रहे फरीद मामुन्दजई ने भारत को आड़े हाथों लिया है. फरीद ने अपने एक्स अकाउंट में एक अफगानी पत्रकार द्वारा बैठक की साझा की गई तस्वीर पर लिखा कि ‘भारत लगातार और अब सार्वजनिक तौर से सिग्नल दे रहा है कि राजनीति बाकी सभी चीजों से ऊपर होती है. खासतौर से अफगानिस्तान को लेकर भारत तालिबान से करीबी संबंध बना रहा है.”
दरअसल, भारत ने तालिबानी सरकार को अभी तक मान्यता नहीं दी है. राजधानी दिल्ली में पूर्व अफगान सरकार के दूतावास को बंद करने को लेकर भी विवाद हो गया था. लेकिन पहले अफगानिस्तान को लेकर रुस द्वारा आयोजित मास्को समिट (सितंबर 2023) में हिस्सा लेकर और अब काबुल में तालिबान की मीटिंग में शिरकत करने से साफ है कि भारत का रुख तालिबान को लेकर बदल रहा है.
दरअसल, पिछले कुछ समय से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के संबंध सामान्य नहीं रहे हैं. बड़ी संख्या में पाकिस्तान ने अफगानी नागरिकों को अपने देश से निकलकर वापस अफगानिस्तान भेज दिया है. इससे दोनों देशों के संबंधों में खटास आ गई है. हालांकि, रविवार को बुलाई मीटिंग में पाकिस्तान के प्रतिनिधि ने भी हिस्सा लिया था.
मंगलवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बीजिंग में तालिबानी राजदूत मावलावी असदुल्लाह के ‘लेटर ऑफ क्रेडेंश’ को स्वीकार किया. साफ है कि चीन की जिनपिंग सरकार ने तालिबान की सरकार को मान्यता दे दी है.
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