रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास के बीच चल रही जंग से भारतीय सेना ने भी हथियारों के इस्तेमाल को लेकर बड़ी सीख ली हैं. इनमें सबसे प्रमुख है ‘एरिया डिनायल एम्युनिशन सिस्टम’ (एडीएमएस) जिसके लिए भारतीय सेना के तोपखाने ने ‘पिनाका’ रॉकेट सिस्टम में जरूरी बदलाव शुरू कर दिए हैं. दूसरा है ‘जीपीएस-डिनायल एनवायरमेंट’.
भारतीय सेना के तोपखाने (आर्टिलरी) के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल अदोष कुमार के मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध में देखा गया है कि बेहद ही खास एडीएमएस का इस्तेमाल हुआ है. इसके लिए लैंडमाइंस (बारूदी सुरंग) को बिछाने के लिए रॉकेट सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में 30-40 किलोमीटर दूर से ही रॉकेट के जरिए बारूदी सुरंग को बिछाया जा सकता है.
भारतीय सेना की रेजीमेंट ऑफ आर्टिलरी के 198 वें स्थापना दिवस से पहले मीडिया को (ऑफ कैमरा) संबोधित करते हुए लें.जनरल अदोष कुमार ने बताया कि पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम आज दुनिया के सबसे घातक सिस्टम में से एक है. पिनाका की रेंज को भी बढ़ा दिया गया है.
पिनाका की रेंज करीब 40 किलोमीटर है लेकिन वर्ष 2019 में डीआरडीओ ने इस रॉकेट को मिसाइल सिस्टम में तब्दील कर दिया था ताकि मारक क्षमता और रेंज को बढ़ाया जा सके. अब पिनाका सिस्टम की रेंज करीब 75 किलोमीटर हो गई है. ऐसे में भारतीय सेना पिनाका के जरिए ही लैंड माइंस को बिछाने की तैयारी कर रही है.
दुश्मन की इंफेंन्ट्री (सैनिकों) से लेकर टैंक और दूसरे मैकेनाइज्ड फोर्सेज को अपने अधिकार-क्षेत्र में घुसपैठ करने से रोकने के लिए बारूदी सुरंग को बिछाया जाता है. भारत में अभी तक ये जिम्मेदारी कोर ऑफ इंजीनियर्स के हवाले हैं. इंजीनियर्स कोर के सैनिक (सैपर्स) इन बारूंदी सुरंग को बिछाते हैं, जो बेहद जोखिम कार्य है और समय भी ज्यादा लगता है.
गौरतलब है कि गलवान घाटी की झड़प के दौरान चीन की पीएलए सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब इस तरह के रॉकेट सिस्टम का प्रदर्शन किया था. यही वजह है कि भारतीय सेना भी इस सिस्टम को जल्द से जल्द तैयार कर तोपखाने का हिस्सा बनाने में जुटी है.
ले.जनरल अदोष कुमार के मुताबिक, एडीएमएल के अलावा भारतीय सेना जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) के बिना प्रेसशियन स्ट्राइक करने वाले हथियारों का भी इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है.
टीएफए के सवाल पर डीजी आर्टिलरी ने कहा कि अप्रैल के महीने में ईरान का इजरायल पर जो बड़ा एरियल अटैक विफल हुआ था, वो ऐसा लगता है कि नेविगेशन को बाधित किया गया या फिर नेविगेशन को जाम कर दिया गया. ऐसे में, ले.जनरल अदोष कुमार ने कहा कि ये बेहद जरूरी है कि जीपीएस डिनायल सिस्टम भी तोपखाने का निकट भविष्य में हिस्सा हों.
कारगिल युद्ध (1999) के दौरान भी भारतीय सेना के नेविगेशन को पश्चिमी देशों ने बाधित किया था, जिसके चलते पाकिस्तान के खिलाफ काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा था.
यही वजह है कि भारतीय तोपखाना स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम, ‘नाविक’ का बेसब्री से इंतजार कर रहा है.
इसी साल जुलाई के महीने में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना की बख्तरबंद गाड़ियों के लिए स्वदेशी ‘नाविक’ नेविगेशन सिस्टम का ऑर्डर दिया था. ये पहली बार है कि जीपीएस के साथ-साथ स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली से युक्त आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल्स (एएफवी) का सेना इस्तेमाल करेगी. अभी तक सेना की गाड़ियां विदेशी जीपीएस से ही लैस होती थी. (सेना को स्वदेशी जीपीएस ‘नाविक’ की मंजूरी, पहले लगेगा बख्तरबंद गाड़ियों में)
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दो साल पहले ‘नाविक’ सिस्टम को तैयार किया था. नाविक को पहले इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस, नाविक) के नाम से जाना जाता था. नाविक, पूरे भारत के साथ ही आसपास के डेढ़ हजार किलोमीटर तक के क्षेत्र को कवर कर सकता है. आने वाले समय में इसकी रेंज तीन हजार किलोमीटर तक हो सकती है. पिछले साल इसरो ने सशस्त्र सेनाओं के लिए नाविक को लॉन्च किया था.
ले.जनरल अदोष कुमार के मुताबिक, नाविक के सेना में शामिल होने से विदेशी ग्लोबल नेविगेशन (और पोजिशनिंग) सिस्टम के इस्तेमाल से बचा जा सके. (भारत की हाइपरसोनिक मिसाइल जल्द होगी रॉकेट फोर्स का हिस्सा)
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