मैरीटाइम हिस्ट्री में मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज को उचित स्थान दिलाने के इरादे से भारतीय नौसेना अगले साल 19 फरवरी से एक हफ्ते की मिलन एक्सरसाइज करने जा रही हैं. इस नेवल एक्सरसाइज में 50 देश शामिल होंगे और भारतीय नौसेना के अलावा 20 मित्र-देशों के युद्धपोत हिस्सा लेंगे. हर साल 19 फरवरी को शिवाजी महाराज का जन्मदिवस मनाया जाता है.
शिवाजी महाराज का जन्म 1630 में हुआ था और भारतीय इतिहास में उन्हें मुगल साम्राज्य के दांत खट्टे करने के लिए जाना जाता है. लेकिन भारत को एक समुद्री-ताकत बनाने में उनके योगदान के बारे में कम ही जानकारी है. यही वजह है कि भारतीय नौसेना शिवाजी राजे के गौरवशाली समुद्री इतिहास को अपनाने में जुटी है.
वर्ष 1995 से भारतीय नौसेना मिलन एक्सरसाइज का आयोजन करती आ रही है. दो साल में एक बार होने वाली इस एक्सरसाइज में मित्र-देशों की नौसेनाएं हिस्सा लेती आई हैं. पिछले दो संस्करण से ये एक्सरसाइज नौसेना के पूर्वी कमान के मुख्यालय विशाखापट्टनम में आयोजित किए गए हैं. पहले ये एक्सरसाइज अंडमान निकोबार में होती थी.
भारतीय नौसेना के मुताबिक, इसी हफ्ते विशाखापट्टनम में मिलन एक्सरसाइज को लेकर फाइनल प्लानिंग कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में मिलन एक्सरसाइज में हिस्सा लेने वाले देशों के नेवल ऑफिसर्स ने शिरकत की. मिलन एक्सरसाइज शिवाजी महाराज के जन्मदिवस यानी 19 फरवरी को शुरु होगी और 27 फरवरी तक चलेगी. नौ दिनों तक चलने वाली मिलन एक्सरसाइज का ये 12वां संस्करण है.
दरअसल, भारत में इंडियन नेवी की शुरुआत अंग्रेजों के समय से मानी जाती है जिसे रॉयल इंडियन नेवी कहा जाता था. जबकि हकीकत ये है कि भारत में मराठा शासकों की एक बड़ी नौसेना थी जिसमें 70-80 जहाज थे. मध्यकालीन युग में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा नौसेना की नींव डाली थी. उन्होनें मुंबई से लेकर कोंकण-तट तक कई समुद्री-दुर्ग यानी किलों का निर्माण किया था. गोवा के करीब कर्नाटक के कारवार बंदरगाह में मराठाओं के समय में जहाज का निर्माण किया जाता था. आज कारवार में ही एशिया का सबसे बड़ा नेवल बेस तैयार किया जा रहा है जहां आने वाले समय में भारत के मैरीटाइम थियेटर कमान का हेडक्वार्टर होगा.
मराठा शासकों की नौसेना को स्वर्णिम काल आया सरखेल कान्होजी आंग्रे के समय में. 1690 से लेकर 1729 तक जब तक की उनकी मृत्यु हुई मराठा नौसेना ने ब्रिटिश, पुर्तगाली और डच नौसेनाओं की नाक में दम कर रखा था. ये वो समय था जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सहित पुर्तगाली और डच भारत को अपना गुलाम बनाने की फिराक में थे और समंदर के रास्ते भारत में घुसपैठ बना रहे थे. सरखेल यानी नौसेना के सबसे बड़े एडमिरल, कान्होजी आंग्रे ने समंदर में भी एक भी लड़ाई नहीं हारी थी. सरखेल कान्होजी आंग्रे भी शिवाजी महाराज की तरह ही गुरिल्ला रणनीति के साथ समंदर में युद्ध लड़ते थे. वे दुश्मन के जहाज और नौसेना पर हमला कर कोंकण तट पर बने शिवाजी महाराज के किलों में छिप जाते थे. मुंबई से लेकर कोंकण तट तक जो भी जहाज भारत की सीमा में दाखिल होता था उसे मराठा नौसेना को कर यानी टैक्स देना पड़ता था. भारत की समुद्री सीमाओं में सरखेल कान्होजी आंग्रे ने ही पहली बार फ्लीट रिव्यू यानी अपने जंगी बेड़े की परेड की थी.
हाल ही में भारतीय नौसेना ने नेवी डे भी कोंकण तट पर बने शिवाजी महाराज के सिंधुदुर्ग किले में नेवी-डे मनाया था. इससे पहले नौसेना ने अपने फ्लैग से अंग्रेजों का प्रतीक हटाकर शिवाजी महाराज की नौसेना का प्रतीक चिन्ह शामिल किया था. यानी भारतीय नौसेना गुलामी की मानसिकता को धीरे-धीरे कर दूर कर अपने गौरवशाली इतिहास को अपनाने में जुटी है. फिर चाहे वो दक्षिण का चोला साम्राज्य हो या फिर सातवाहन शासक, या फिर मराठा नौसेना. भारतीय नौसेना, हिंद महासागर क्षेत्र की नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर और ब्लू वाटर नेवी बनाने के साथ-साथ समुद्री-इतिहास के साथ भी कदम-ताल कर रही है.
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