मोबाइल, फोन और ईमेल के जमाने में भी सेना के जवान अपने परिवारों से संदेशों के लिए चिठ्ठी और पत्र पर निर्भर रहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि एलओसी और एलएसी पर भारतीय सेना के कुछ चौकियों और बॉर्डर पोस्ट उन लोकेशन पर हैं जहां मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है. इसके लिए ही भारतीय सेना की आर्मी पोस्टल सर्विस कोर दिन-रात दूर दराज के इलाकों के साथ-साथ विदेश तक में सैनिकों को चिट्ठी पहुंचाने का काम करती है.
हर साल 1 सितंबर को ‘विश्व पत्र लेखन दिवस’ मनाया जाता है. रविवार को पत्र लेखन दिवस के मौके पर भारतीय सेना के सूत्रों ने टीएफए को बताया कि “पारंपरिक इनलैंड लेटर और पोस्ट कार्ड के साथ-साथ ‘सैनिक-समाचार’ पत्र (मैगजीन) सैनिकों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी आर्मी पोस्टल सर्विस (एपीएस) कोर की है.”
सैनिक समाचार महीने में दो बार प्रकाशित होता है और देश की 13 अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशित किया जाता है. ऐसे में सैनिकों की भाषा के अनुसार सैनिक समाचार तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती होती है.
बालीवुड की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘बॉर्डर’ का सैनिकों के घर से आई चिट्ठी पत्र पर दर्शाया गया गाना, ‘संदेसे आते हैं’ आज भी देशभर में बेहद लोकप्रिय है.
सेना के सूत्रों ने ये जरूर साफ किया कि वक्त के साथ-साथ पोस्टल सर्विस में तैनात सैनिकों की संख्या में जरूर कमी आई है. मोबाइल कनेक्टिविटी इत्यादि के चलते अब सिर्फ उन्हीं इलाकों में चिठ्ठी-पत्र पहुंचाई जाती हैं जहां फोन काम नहीं करते हैं. ऐसे में “पिछले 7-8 साल में पोस्टल सर्विस कोर में तैनात सैनिकों की संख्या 7500 से 2500 रह गई है.”
भारतीय सेना की पोस्टल सर्विस को करीब 170 साल हो चुके हैं. वर्ष 1856 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने पर्शिया (ईरान) में युद्ध लड़ने के दौरान पहले एफपीओ यानी ‘फील्ड पोस्ट ऑफिस’ की तैनाती की थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एफपीओ सेना की एएससी (आर्मी सर्विस कोर) का हिस्सा होते थे. लेकिन 1972 में एपीएस को एक अलग कोर के तौर पर गठित किया गया. आज भारतीय सेना में कुल 373 एफपीओ हैं. पोस्टल कोर का आदर्श-वाक्य है ‘मेल-मिलाप’.
आजादी के बाद देश में दो सेंट्रल बेस पोस्ट ऑफिस (सीबीपीओ) स्थापित किए गए. पहला राजधानी दिल्ली में (56 एपीओ) और दूसरा कोलकाता में (99 एपीओ). भारतीय सेना के सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा के चलते लोकेशन बदलने के बावजूद भी फील्ड फॉर्मेशन का पता एक ही रहता है.
खास बात ये है कि डाक विभाग के इंडियन पोस्टल सर्विस के अधिकारी ‘डेप्युटेशन’ (प्रतिनियुक्ति) पर सेना में कार्यरत हैं. भारतीय सेना, पोस्टल सर्विस की महिला अधिकारियों को भी प्रतिनियुक्ति पर आने के लिए प्रोत्साहित करती है.
सूत्रों के मुताबिक, सेना की तैनाती बेहद ही दुर्गम इलाकों में होती है. ऐसे में चुनाव के दौरान, वोटिंग कराने की जिम्मेदारी भी पोस्टल सर्विस कोर की होती है. साथ ही आम डाक-घरों की तरह ही पोस्टल सर्विस कोर अब सैनिकों के आधार-कार्ड इत्यादि बनाने जैसी सुविधाएं भी प्रदान करने लगी है.