प्लेन क्रैश की जांच में मदद करने के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने एक खास ब्लैक बॉक्स तैयार किया है जिसमें जीपीएस लगा है. ऐसे में एचएएल का दावा है कि किसी दूर-दराज इलाके में या फिर समंदर तक में अगर कोई एयरक्राफ्ट दुर्घटना का शिकार हो जाता है जो उसके ब्लैक-बॉक्स को ढूंढने में कोई खासी दिक्कत नहीं आएगी.
एचएएल के डिप्टी जीएम (डिजाइन) शशांक शेखर मिश्रा ने टीएफए से खास बातचीत में बताया कि जो नया फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (एफडीआर) तैयार किया गया है उसका जीपीएस 72 घंटे तक एक्टिव रहता है. ऐसे में दुर्घटना के बाद प्लेन और उसके ब्लैक-बॉक्स को ढूंढने में थोड़ी आसानी हो जाएगी. क्योंकि ये एफडीआर समंदर में डूबता नहीं है और पानी पर तैरता रहता है.
एचएएल का दावा है कि इस तरह के एफडीआर को भारत के अलावा अमेरिका और जर्मनी की चुनिंदा कंपनियां ही आज तक बना पाए हैं. ऐसे में प्लेन क्रैश की घटनाओं की जांच में ये नया ब्लैक-बॉक्स मील का पत्थर साबित हो सकता है. शशांक शेखर ने बताया कि इस नए ब्लैक-बॉक्स को सबसे पहले रूस से लिए एएन-32 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और डोरनियर विमानों में लगाना शुरु कर दिया गया है.
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में भारतीय वायुसेना का एक एएन-32 विमान चेन्नई से अंडमान निकोबार की यात्रा के दौरान समंदर में क्रैश हो गया था. विमान में कुल 29 लोग सवार थे. भारतीय नौसेना और कोस्टगार्ड की एक महीने की सर्च के बाद भी विमान और उसमें सवार लोगों का कोई अता-पता नहीं चल पाया था. क्योंकि विमान में अंडरवाटर लोकेटर बिकन नहीं था. लेकिन एचएएल का नया ब्लैक-बॉक्स समंदर में डूबेगा नहीं और पानी पर तैरता रहेगा. साथ ही 72 घंटे तक ये अपनी लोकेशन ट्रांसमिट करता रहेगा.
हाल ही में एचएएल ने राजधानी दिल्ली में दो दिवसीय (7-8 दिसंबर) एवियॉनिक्स-एक्सपो का आयोजन किया था. इस एक्सपो में एचएएल ने अपने नेविगेशन और कम्युनिकेशन उपकरणों को प्रदर्शित किया था. इसी दौरान एचएएल ने नए फ्लाइट रिकॉर्डर के बारे में टीएफए से जानकारी साझा की और बताया कि एएन-32 (रूसी मालवाहक विमान) और डोरनियर एयरक्राफ्ट को नए एफडीआर से लैस करना शुरु कर दिया गया है.
दरअसल, एचएएल करीब 25 सालों से एफडीआर बनाता आ रहा है. लेकिन नया फ्लाइट रिकॉर्डर इसलिए बनाया है ताकि क्रैश के बाद ब्लैक-बॉक्स को जल्द से जल्द ढूंढ लिया जाए. विमान के पायलट की एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) से बातचीत के साथ साथ विमान में मौजूद क्रू-मेंबर के ऑफिशियल कम्युनिकेशन को भी फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (एफडीआर) में रिकॉर्ड कर लिया जाता है. इसी एफडीआर को आम-भाषा में ब्लैक-बॉक्स कहा जाता है. शशांक शेखर के मुताबिक, हालांकि, इस एफडीआर का रंग नारंगी होता है लेकिन इसे ब्लैक-बॉक्स इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके अंदर डाटा (बातचीत इत्यादि) बेहद गोपनीय होती है और इसे बनाने वाली कंपनी ही इसे डिसाइफर कर सकती है.
आपका बता दें कि इसी साल सितंबर के महीने में अमेरिका के साउथ कैरोलिना में यूएस मरीन कोर का एक स्टील्थ फाइटर जेट एफ-35 दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. पायलट ने पैराशूट के जरिए कूदकर अपनी जान बचा ली थी. लेकिन अमेरिका की वायुसेना और खोजकर्मी दल को प्लेन का मलबा ढूंढने में एक लंबा वक्त लग गया था.