विदेश मंत्री एस जयशंकर के चीन दौरे से पहले बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर भारत के रुख से चीन भड़क गया है. उत्तराधिकारी विवाद के बाद एक महीने के लिए लेह-लद्दाख पहुंचे दलाई लामा को लेकर चीन के तेवर कड़े हैं. चीन की ओर से कहा गया है, कि तिब्बत से जुड़े मुद्दे, खासकर दलाई लामा का पुनर्जन्म वाला मामला भारत और चीन के संबंधों में कांटे की तरह हैं.
इस सप्ताह चीन जा रहे विदेश मंत्री एस जयशंकर
भारत में चीनी दूतावास की प्रवक्ता ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे को भारत और चीन के संबंध के बीच कांटा बताया है. चीनी दूतावास का बयान ऐसे वक्त में आया है जब साल 2020 में गलवान झड़प के बाद 5 साल में पहली बार विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन पहुंचेंगे. इस सप्ताह विदेश मंत्री का बीजिंग दौरा प्रस्तावित है.
एलएसी पर सैन्य तनाव के कारण पिछले 5 वर्षों में भारत और चीन के बीच संबंध और खराब हो गए थे. पिछले साल अक्टूबर में पीएम नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच रूस के कजान में हुई द्विपक्षीय बैठक में दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने पर सहमति बनी थी.
इस साल जनवरी से भारत और चीन दोनों ने ही बातचीत पर जोर दिया है. एनएसए अजीत डोवल, विदेश सचिव विक्रम मिसरी के अलावा पिछले महीने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी चीन जा चुके हैं. परंतु बातचीत के लिए चीन कितना गंभीर है इसका पता इसी बात से चल रहा है कि एस जयशंकर के दौरे से पहले धौंस जमाने और दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है.
लद्दाख में दलाई लामा, बौखलाया चीन
शनिवार को दलाई लामा लेह-लद्दाख पहुंचे हैं. विशेष सुरक्षा के साथ भारतीय वायुसेना का विमान दलाई लामा को लेकर लेह पहुंचा था. इस बात से चीन बौखला गया है. इससे पहले अपने जन्मदिन के पूर्व संध्या दलाई लामा ने साफ कर दिया था कि उनके उत्तराधिकारी को चुनने में चीन की कोई भूमिका नहीं होगी.उनके द्वारा स्थापित ट्रस्ट ही उनके पुनर्जन्म को मान्यता दे सकता है.
भारत ने दलाई लामा की इस बात का समर्थन किया है कि उनके उत्तराधिकारी के चयन में किसी बाहरी का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.
दिल्ली में चीन प्रवक्ता यू जिंग ने कहा है कि “कुछ रणनीतिक और शैक्षणिक लोगों ने दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर गलत बयान दिए हैं. इन लोगों ने भारत सरकार से विपरित स्टैंड दिखाया है. विदेश मामलों से जुड़े लोगों को शिजांग (तिब्बत) से जुड़े मुद्दों की संवेदनशीलता को समझना चाहिए. दलाई लामा का पुनर्जन्म और उत्तराधिकारी पूरी तरह चीन का आंतरिक मामला है. तिब्बत से जुड़ा यह मुद्दा भारत-चीन संबंधों में एक कांटा है और भारत के लिए बोझ बन गया है. अगर भारत ‘तिब्बत कार्ड’ खेलेगा, तो खुद ही नुकसान करेगा.”
जयशंकर-वांग यी के बीच द्विपक्षीय बैठक, ऑपरेशन सिंदूर पर भी होगी बात
विदेश मंत्री एस जयशंकर कहते रहे हैं कि भारत और चीन के बीच रिश्ते बहुत जटिल हैं. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद है, व्यापारिक मुद्दे हैं और तिब्बत, में भारत से सपोर्ट पर चीन चिढ़ता है. इन सभी मुद्दों को हल करना आसान नहीं है.
दूसरा 22 अप्रैल को पहलगाम नरसंहार के बाद जिस तरह से चीन ने पाकिस्तान को लॉजिस्टिक सपोर्ट से लेकर टेक्नोलॉजी तक की मदद की है, उस मुद्दे पर भारत ने चीन को बेनकाब कर दिया है. सिर्फ भारत ने ही नहीं फ्रांस की खुफिया एजेंसी ने भी चीन के प्रोपेगेंडा को दुनिया के सामने लाकर रख दिया है.
जयशंकर 14 और 15 जुलाई को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए चीन में मौजूद रहेंगे. इस दौरान एस जयशंकर अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मिलेंगे. दोनों विदेश मंत्रियों से उम्मीद है कि बातचीत से दोनों देशों के संबंध सामान्य किए जा सकें. लेकिन जयशंकर के दौरे से पहले पाकिस्तान के सदाबहार मित्र चीन ने जो चालबाजी दिखानी शुरु की है, माना जा रहा है कि भारत की ओर से उन्हें कड़ा जवाब ही मिलेगा.