1971 के युद्ध से पहले तक दुनिया तो क्या भारत में ही कोई नौसेना को संजीदगी से नहीं लेता था. 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी नौसेना हमारे सबसे पवित्र स्थलों में से एक द्वारका पर हमला कर चली गई थी. गुजरात में भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका पर पाकिस्तान जहाज बमबारी कर चले गए और भारत ने कोई जवाब तक नहीं दिया था. भारत ने ये कहकर हमले को टाल दिया कि बमबारी में नौसेना को कोई खास नुकसान नहीं हुआ है. जबकि हकीकत ये थी कि पाकिस्तान ने इस हमले को अपने देश में जाकर जीत के तौर पर लिया और भारत की जबरदस्त बेइज्जती की थी. इसका कारण ये था कि भारत जंग को बढ़ाना नहीं चाहता था. यानि थलसेना और वायुसेना तो पाकिस्तान के खिलाफ लड़ रहे थे लेकिन भारत की सरकार इस युद्ध को समंदर में नहीं लड़ना चाहती थी. ऐसे में इस निर्णय को लेकर नौसेना के कुछ ऑफिसर्स ने अपना विरोध जताया था.
1971 युद्ध की प्लानिंग के दौरान भी इंडियन नेवी को बाहर रखने की कोशिश की गई थी. इसका कारण ये था कि उन दिनों पाकिस्तानी नेवी, भारतीय नौसेना से युद्धपोत और तकनीक के मामले में थोड़ी बीस (20) थी. ऐसे में नेवी के ही कुछ सीनियर कमांडर पाकिस्तानी नौसेना से लोहा लेने में हिचकिचा रहे थे. वॉर-रूम तक में चर्चा के दौरान ये मुद्दा उठ चुका था. लेकिन तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल एस एम नंदा ठान चुके थे कि इस बार युद्ध में इंडियन नेवी को अपना खोया हुआ गौरव दिलाना है. 1965 के हमले का मुंहतोड़ जवाब देने का वक्त आ गया है. यही वजह है कि उन्होंने वॉर-प्लान तैयार होने के बाद अपनी योजना सीधे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बताई. यानी इस बार नेवी भी आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है.
इस बार नेवी सिर्फ थल-सेना और वायुसेना को युद्ध में मदद ही नहीं करेगी बल्कि समंदर के रास्ते आक्रमण भी करेगी. यानि पाकिस्तान पर जल, थल और आकाश तीनों से प्रहार करने का वक्त था. ऐसा प्रहार की पाकिस्तान की सात पुश्तें तक याद रखेंगी. इसके लिए एडमिरल नंदा ने नेवल वॉर-रूम को एक ऑफेंसिव-वॉर प्लान तैयार करने का आदेश दिया. इस प्लान के तहत भारतीय नौसेना को कराची बंदरगाह पर आक्रमण करना था. नौसेना के हमले के वक्त ही भारतीय वायुसेना को कराची के एयरबेस पर हवाई हमला करना था.
लेकिन कराची पर हमला करना इतना आसान नहीं था. 71 के युद्ध से ठीक पहले पाकिस्तान ने फ्रांस से तीन सबमरीन खरीदी थी. पाकिस्तान के पास उस वक्त कुल 12 पनडुब्बियां थी. इतनी बड़ी पनडुब्बी की फ्लीट चुपचाप हमला करने के लिए ही इस्तेमाल की जाती हैं. इसके अलावा पाकिस्तानी नौसेना के बेड़े में डेस्ट्रोयर, फ्रीगेट, माइनस्वीपर और टारपीडो-बोट्स भी शामिल थी.
भारतीय नौसेना को जहां एक साथ दो तरफा एक लंबी कोस्टलाइन और मुंबई, गोवा, कोच्ची और विशाखापट्टनम जैसे बड़े बंदरगाहों की सुरक्षा करनी थी, पाकिस्तान की समुद्री सीमा थोड़ी छोटी थी. उसे एक ही बड़े बंदरगाह की सुरक्षा करनी थी. वो था कराची पोर्ट. ईस्ट बांग्लादेश के बंदरगाह चटगांव, खुलना और कॉक्स बाजार इतने बड़े नहीं थे. ऐसे में एडमिरल नंदा ने ऑफेंस इज द बेस्ट डिफेंस की रणनीति पर काम किया. भारतीय नौसेना ठान चुकी थी अब वक्त आ गया है कि ईस्ट पाकिस्तान को कंधे से पकड़कर पाकिस्तान से हमेशा-हमेशा के लिए जुदा कर देना है. इसके अलावा नौसेना को भी थलसेना और वायुसेना के ऑपरेशन्स में मदद करनी थी.
कराची पर हमले करने के लिए भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े में आईएनएस रणजीत, गोदावरी और गंगा डेस्ट्रोयर थे तो नौ फ्रीगेट और एक गन-क्रूजर था, दो हेलीकॉप्टर टैंकर और सबमरीन-टेंडर. लेकिन एडमिरल नंदा ने दांव लगाया हाल ही में सोवियत संघ से लिए गई 08 मिसाइल बोट्स पर. ये ओसा-क्लास बोट्स इसलिए सोवियत संघ से ली गई थी क्योंकि 1965 के युद्ध के चलते ब्रिटेन ने भारत को मिलिट्री सप्लाई पर रोक लगा दी थी. रूसी भाषा में ओसा का अर्थ होता है ततैया. यानि जो दुश्मन पर ऐसा हमला करे कि ततैया के डंक की तरह लगे.
भारतीय नौसेना इन मिसाइल बोट्स को विद्युत-क्लास के नाम से जानती थी. क्योंकि सोवितय संघ से ली गई पहली मिसाइल बोट को आईएनएस विद्युत नाम दिया गया था. इसके अलावा बाकी के नाम थे वीर, विजेता और विनाश. ये सभी मिसाइल बोट्स भारतीय नौसेना की 22 स्क्वाड्रन का हिस्सा थी जिसे किलर-स्क्वाड्रन के नाम से भी जाना जाता था. मिसाइल बोट्स का इस्तेमाल मुख्यत कोस्टलाइन की डिफेंस के लिए किया जाता है. लेकिन 1968 के सिक्स डे वॉर में इज्पिट की ओसा क्लास मिसाइल ने इजरायल के एक फ्रीगेट को मार गिराया था.
मिसाइल बोट्स से कराची पर हमला करने के लिए इसलिए भी चुना गया था क्योंकि इन्हें बिना दुश्मन की निगाहों में आए कराची तक पहुंचाया जा सकता था. भारतीय नौसेना ने कराची पर हमला करने के लिए अपने ऑपरेशन को नाम दिया ट्राइडेंट. कराची पर पहला हमला 4 दिसम्बर की रात को किया जाना था. इसके बाद 6-7 दिसम्बर की रात को ऑपरेशन पायथन और फिर 10-11 दिसम्बर को ऑपरेशन ट्रायफ्म. हालांकि, युद्ध के दौरान तीसरे ऑपरेशन की भारत को कभी जरूरत नहीं पड़ी और दो हमलों में ही कराची ही नहीं पूरे पाकिस्तान ने दम तोड़ दिया.
2-3 दिसम्बर की रात को मुंबई से सभी जहाज अरब सागर के लिए आक्रमण करने के लिए कूच कर गए. हैरानी की बात ये थी कि ये सभी जंगी जहाज पाकिस्तान की हैंगोर पनडुब्बी के सर से ऊपर निकलकर अरब सागर में घेराबंदी करने के लिए जा रहे थे. पाकिस्तान की ये पनडुब्बी मुंबई पर हमला करने के इरादे से पहुंची थी लेकिन इससे पहले की पाकिस्तान आक्रमण करता, भारतीय नौसेना ने बाजी पलट दी. हालांकि, 3 दिसम्बर को पाकिस्तानी वायुसेना ने उत्तरी भारत के कई एयर बेस पर हमले कर दिए थे. लेकिन समंदर के रास्ते भारत इसका करारा जवाब देगा पाकिस्तान ने सपने में भी नहीं सोचा था.
3 दिसम्बर को नौसेना के युद्धपोत कराची से 250 किलोमीटर दूर डेरा डाल कर बैठ गए. ये इसलिए किया गया क्योंकि उस वक्त पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों की रेंज 150-200 किलोमीटर थी. कराची पर हमले के लिए तीन (03) मिसाइल बोट्स की योजना बनाई गई. भारत की दो मिसाइल बोट, विद्युत और निर्घट को पहले से ही गुजरात के ओखा बंदरगाह पर पाकिस्तान के अटैक से निपटने के लिए तैनात थी. एक पेटया क्लास फ्रीगेट कछहल भी वहां तैनात था. ऐसे में दो मिसाइल बोट्स वीर और निपट के साथ साथ किलटन फ्रीगेट को भी सौराष्ट्र के तट के करीब तैनात कर दिया गया.
खास बात ये है कि पाकिस्तानी नौसेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई को चकमा देने के लिए भारतीय नौसेना की मिसाइल बोट्स में तैनात कैप्टन और बाकी क्रू रूसी भाषा में कम्युनिकेशन कर रहा था. ये इसलिए ताकी पाकिस्तान को जरा भी भनक न लगे कि ये भारत की बोट्स हैं. भारतीय नौसेना का नेवल क्रू इसलिए रूसी भाषा में बातचीत कर पा रहा था क्योंकि वे सभी हाल ही में रूस में ट्रेनिग लेकर आए थे. मिसाइल बोट्स को सोवियत संघ से लेने के दौरान उनपर तैनात होने वाले क्रू को रूस में ट्रेनिंग दी गई थी.
4-5 दिसम्बर की दरमियानी रात मिसाइल बोट निपट, निर्घट और वीर ने कराची पर जोरदार हमला किया. क्योंकि इन मिसाइल बोट्स की एंड्यूरेंस थोड़ी कम थी और ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती थी, ऐसे में रात के अंधेरे में इन मिसाइल बोट्स को टो (खींच कर) कराची पहुंचाया गया. इस दौरान हालांकि किलटन और कछहल इन बोट्स को एस्कॉर्ट कर रही थी. साथ ही पाकिस्तानी फाइटर जेट्स नाइट ऑपरेशन्स करने में सक्षम नहीं थे.
रात के अंधेरे में भारत की मिसाइल बोट्स ने पाकिस्तानी नौसेना के डेस्ट्रोयर खैबर और माइनस्वीपर मुहाफिज को मिसाइल दागकर समंदर में डुबो दिया. कराची बंदरगाह पर खड़े पाकिस्तान के ऑयल टैंकर को भी आग के हवाले कर दिया गया. इस दौरान लाईबेरिया का एक जहाज एमवी वीनस चैलेंजर भी हमले का शिकार हो गया. माना जाता है कि इस जहाज में अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए गोला-बारूद भेजा था.
उधर बंगाल की खाड़ी मेें भी भारतीय नौसेना पाकिस्तान को मूली की तरह काट रही थी. पाकिस्तान की पीएनएस गाज़ी पनडुब्बी ने खुद हिट-विकेट कर लिया और विशाखापट्टनम के करीब ही समंदर में उसकी हमेशा हमेशा के लिए कब्र बन गई. भारतीय नौसेना का एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत भी पूर्वी पाकिस्तान के चटगांव, मंगला, खुलना और कॉक्स-बाजार बंदरगाह पर लगातार हमले कर पाकिस्तानी नौसेना की कमर तोड़ रहा था. इसी दौरा अरब सागर में पाकिस्तानी नौसेना ने एक बड़ा उलटफेर किया.
9 दिसंबर को पाकिस्तानी पनडुब्बी हैंगोर ने सौराष्ट्र तट के द्वीव में तैनात आईएनएस खुखरी युद्धपोत पर हमला कर डुबो दिया. खुखरी पर तैनात सभी 18 नेवल ऑफिसर और 176 नौसैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. खुखरी के कैप्टन एम एन मूला ने हमले के बावजूद अपने जहाज को नहीं छोड़ा और शिप के ब्रिज पर कैप्टन की चेयर पर आखिरी तक जमे रहे. हैंगोर ने द्वीव में तैनात भारत के एक दूसरे युद्धपोत आईएनएस कृपाण पर भी दो बार हमला करने की कोशिश की लेकिन कृपाण चकमा देने में कामयाब रहा.
आईएनएस खुखरी के खोने के अलावा पाकिस्तानी वायुसेना ओखा पोर्ट पर एरियल अटैक कर रही थी. ऐसे में भारतीय नौसेना ने कराची पर दूसरे हमले की योजना बनाई ताकि पाकिस्तान को अपनी जकड़ में लेकर हड्डियों को तोड़ दिया जाए. 8 और 9 दिसम्बर की रात को भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन पायथन लॉन्च कर एक बार फिर कराची पर अंतिम प्रहार किया. इस बार हमला मिसाइल बोट आईएनएस विनाश के जरिए किया गया जिसे फ्रीगेट त्रिशूल एस्कॉर्ट कर रहा था. भारत के इस हमले में पनामा का एक जहाज गल्फ-स्टार, पाकिस्तान का ऑयल टैंकर ढाका और ब्रिटिश शिप एसएस हर्मेटन को तबाह कर दिया गया. कीमारी ऑयल डिपो को आग के हवाले कर दिया गया.
अगले दिन यानी 10 दिसम्बर को भारतीय वायुसेना के फाइटर जेट कराची के एयर बेस पर हमला करने पहुंचे तो देखा कि पूरा बंदरगाह धूं-धूं कर जल रहा था. आग की लपटें 60 मील दूर से दिखाई पड़ रही थी. इसी दौरान वायुसेना के एक पायलट ने कहा कि ये एशिया की सबसे बड़ी खूनी बॉनफायर है. कराची की ये आग सात दिन सात रातों तक जलती रही. पूरा कराची शहर धुएं के गुबार से भर गया और तीन दिनों तक शहर के लोगों को सूरज की किरण के दर्शन नहीं हुए.
कराची पर हुए दूसरे हमले से पाकिस्तानी नौैसेना पूरी तरह घबरा गई और अपने सभी युद्धपोतों को कराची की सुरक्षा के लिए वापस बुला लिया. इससे पाकिस्तानी नौसेैनिकों के मोराल पर जबरदस्त असर पड़ा. इसका नतीजा ये हुआ कि पूरा अरब सागर भारतीय नौसेना की वेस्टर्न-फ्लीट के अधिकार-क्षेत्र में आ गया. पाकिस्तानी कार्गो शिप को बंधक बना लिया गया. विदेशी मर्चेंट शिप फारस की खाड़ी से अरब सागर आने के लिए अब भारतीय नौसेना से इजाजत लेने लगे.
भारतीय नौसेना को कराची पर तीसरे हमले की जरूरत नहीं पड़ी. क्योंकि पाकिस्तान की एक-तिहाई नौसेना बर्बाद हो चुकी थी. पाकिस्तान की पूर्वी कमान के कमांडिंग इन चीफ रियर एडमिरल मोहम्मद शरीफ ने भारतीय नौसेना के कमांडिंग इन चीफ वाइस एडमिरल नीलकांता कृष्णन के सामने सरेंडर कर दिया. पाकिस्तान के जनरल नियाजी और 93 हजार पाकिस्तानी नौसेना की तरह ही मोहम्मद शरीफ ने भी अपनी पिस्टल एडमिरल कृष्णन के सामने सरेंडर कर दी जो आज भी भारत के एक मिलिट्री म्यूजियम में रखी है.
हर साल 4 दिसम्बर को भारत, नौसेना दिवस मनाता है. क्योंकि इसी दिन 1971 के युद्ध में भारतीय नौसेना ने पहली बार अपनी ताकत से पूरी दुनिया को रूबरू कराया था. इस साल पहली बार नौसेना दिवस, कोंकण तट पर स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज (1630-1680) द्वारा निर्मित सिंधुदुर्ग किले में मनाने जा रही है. इस दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिंधुदुर्ग में मौजूद रहेंगे. पीएम मोदी राजकोट फोर्ट में शिवाजी महाराज की मूर्ति का अनावरण करेंगे और शाम में तरकरली-तट पर भारतीय नौसेना की समुद्री क्षमताओं का निरीक्षण करेंगे.