बांग्लादेश युद्ध (1971) के लिए कभी भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए गाली निकालने से लेकर मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित डिप्लोमेसी के मास्टर और दुनिया को वर्ल्ड-ऑर्डर देने वाले हेनरी किसिंजर (किसिंगर) का 100 साल की उम्र में निधन हो गया है. विवादों में घिरे रहने वाले किसिंजर मरने से पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करने बीजिंग गए थे तो इजरायल-हमास युद्ध पर भी उनकी प्रतिक्रिया आई थी.
किसिंजर की कंसल्टेंसी फर्म ने उनकी मौत की जानकारी दी. जर्मनी में एक यहूदी परिवार में जन्मे किसिंगर 15 वर्ष की उम्र में अमेरिका चले गए थे. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय उन्होंने अमेरिका की इंटेलिजेंस विंग में भी अपनी सेवाएं दी थी. लेकिन उन्हें पूरी दुनिया एक डिप्लोमेट और स्टेटक्राफ्ट (शासन-कला) का मास्टर मानती थी. इसके लिए उन्हें जबरदस्त आलोचना का शिकार भी होना पड़ा. मौत के बाद भी उन्हें सोशल मीडिया पर जबरदस्त गालियां मिल रही हैं.
किसिंजर ने अमेरिका के दो राष्ट्रपति, रिचर्ड निक्सन (1969-74) और जेराल्ड फोर्ड (1974-77) के कार्यकाल में पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) और फिर विदेश मंत्री के तौर पर काम किया था. इस दौरान उन पर वियतनाम युद्ध में नरसंहार और इंडोनेशिया, चिली और पाकिस्तान जैसे देशों में मिलिट्री शासक और तानाशाहों को समर्थन देने के लिए जमकर विरोध झेलना पड़ा. ऐसा इसलिए क्योंकि किसिंजर आक्रामक डिप्लोमेसी और शासन के पक्षधर थे. कोल्ड-वॉर के दौरान कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट शासन के धुर-विरोधी होने के नाते उन्हें दुनिया का एक बड़ा वर्ग उनकी नीतियों से कभी इत्तेफाक नहीं रखता था. लोग उन्हें वॉर-क्राइम का गुनहगार मानते आए हैं. हालांकि, बाद में वियतनाम युद्ध को खत्म करने में निर्णायक भूमिका के लिए किसिंजर को नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया था.
एक लंबे समय तक भारत में उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती थी. इसका कारण ये था कि 1971 युद्ध के समय वे अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे. भारत क्योंकि सोवितय संघ (रूस) के करीबी था इसलिए अमेरिका पाकिस्तान का अहम मित्र और साझेदार था. हथियार, गोला-बारूद और वित्तीय सहायता से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक पर अमेरिका पाकिस्तान का साथ देता था. उस दौरान (1969-71) पाकिस्तान में सैन्य शासक याहया खान के हाथों में सत्ता थी. याहया खान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) में जमकर स्थानीय बंगला लोगों पर जुल्म हुए और नरसंहार हुआ. लेकिन अपील करने के बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान की जुल्मों-सितम पर पर्दा डाले रखा.
पूर्वी पाकिस्तान में पैदा हुए हालात और पाकिस्तान से तनातनी के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी निक्सन से मुलाकात के लिए अमेरिका गई थीं. लेकिन निक्सन एक लंबे इंतजार के बाद उनसे मिले थे. बरहाल, अमेरिका से लौटने के कुछ दिनों बाद ही भारत और पाकिस्तान में जंग शुरु हो गई थी (3-16 दिसम्बर 1971). भारत ने पाकिस्तान को न केवल जंग में धूल चटाई और एक निर्णायक विजय हासिल की बल्कि पाकिस्तान के दो टुकड़े भी कर दिए. पाकिस्तान के दो टुकड़े होने के साथ ही पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में जन्म हुआ.
जंग के दौरान भी निक्सन और किसिंजर की जोड़ी ने भारत को धमकाने के इरादे से बंगाल की खाड़ी में अपनी सेवंथ (7) फ्लीट को भेज दिया. इस जंगी बेड़े में दुनिया का सबसे शक्तिशाली न्यूक्लियर एयरक्राफ्ट कैरियर ‘यूएसएस एंटरप्राइज’ शामिल था. हालांकि, भारत के मित्र-देश सोवियत संघ (आज का रशिया) मदद के लिए सामने आया और अपनी पैसिफिक फ्लीट का रुख भारत की तरफ कर दिया. सोवियत फ्लीट के भारत की समुद्री सीमा में पहुंचने के दौरान ही अमेरिका का जंगी बेड़ा वापस लौटा था.
वर्ष 2005 में अमेरिका के व्हाइट हाउस के दस्तावेजों को जब डि-क्लासिफाइड किया गया तो उसमें निक्सन और किसिंजर की 1971 की बातचीत का ब्यौरा था. इस बातचीत में दोनों ही भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बारे में भद्दी भाषा और गालियों तक का उपयोग करते हुए पाए गए थे. ऐसे में भारत के लोग किसिंजर को नापसंद करने लगे. सीक्रेट दस्तावेजों के खुलासे के बाद किसिंजर ने इंदिरा गांधी के लिए इस्तेमाल किए गए शब्दों के लिए माफी मांगी और कहा कि वे उनकी (इंदिरा गांधी) की बेहद इज्जत करते हैं.
वर्ष 2014 में अपनी चर्चित पुस्तक ‘वर्ल्ड ऑर्डर’ में उन्होंने भारत को एक उभरती हुई महाशक्ति माना. वे नए (लोकप्रिय) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आकर्षक व्यक्तित्व से खासे प्रभावित थे जिसका जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक में भी किया.
वर्ष 2019 में किसिंजर ने प्रधानमंत्री मोदी से उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास 7 एलकेएम मुलाकात कर पूरी दुनिया को भौचक्का कर दिया. दरअसल, किसिंजर दुनिया की एक शक्तिशाली संस्था ‘बिल्डरबर्जर्स’ के सदस्य थे. ये संस्था मूलत अमेरिका और यूरोप के बीच आर्थिक, सामरिक और नीतिगत मामलों में सामंजस्य बिठाने का काम करता आया है. ऐसे में जब किसिंजर इस ग्रुप के बाकी सदस्यों, जिसमें इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर, आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड, अमेरिका की पूर्व एनएसए कोंडलीजा राइस, अमेरिका के पूर्व रक्षा सचिव (मंत्री) और पूर्व सीआईए चीफ रॉबर्ट गेट्स, के साथ पीएम मोदी से मिलने आए, तो पूरी दुनिया जान गई कि अब भारत के बारे में नैरेटिव बदल चुका है.
1998 के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका की अगुवाई में दुनिया द्वारा भारत पर लगाए गए प्रतिबंध पीछे छूट चुके थे और अमेरिका अब भारत से दुश्मनी छोड़कर भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा चुका था. अमेरिका के राष्ट्रपति, बराक ओबामा हो या डोनाल्ड ट्रंप या फिर अब जो बाइडेन से पीएम मोदी की केमिस्ट्री देखते ही बनती है. इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन के खिलाफ लामबंदी में अमेरिका भारत का साथ चाहता था. भारत साथ भी दे रहा था कि गुरूवार को अमेरिका से आई एक खबर ने पूरे भारत को सन्न कर दिया.
किसिंजर के मौत की खबर ऐसे समय में आई जब अमेरिका ने खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रचने के आरोप में चेक गणराज्य में रहने वाले भारत के एक नागरिक निखिल गुप्ता और एक सीनियर इंडियन गवर्नमेंट ऑफिसर के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी है. ऐसे में भारत को किसिंजर का मशहूर वक्तव्य याद आया जिसमें उन्होंने कहा था कि “अमेरिका से दुश्मनी खतरनाक होती है लेकिन दोस्ती (ज्यादा) घातक होती है.”