समंदर पर पुल बनाकर भगवान राम अपनी वानर सेना के साथ लंका पहुंच गए. राम जी की सेना ने लंका में अपनी छावनी डाल ली और युद्ध की तैयारी करने लगे. लेकिन युद्ध में जाने से पहले भगवान राम, रावण को एक और मौका देना चाहते थे. वे युद्ध को टालना चाहते थे. ये युद्ध टल सकता था अगर रावण माता सीता को सकुशल वापस लौटा देता. ऐसे में भगवान राम ने अपने दूत के रुप में बाली के पुत्र अंगद को रावण के दरबार में पहुंचा. मानव-इतिहास में ये पहली बार था कि युद्ध से पहले डिप्लोमेसी के जरिए रक्त-पात को रोकने की पूरी कोशिश की गई थी.
रामचरित मानस में लिखा है कि भगवान राम ने बालि-पुत्र अंगद से कुछ ये कहा था, “बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ॥ काजु हमार तासु हित होई। रिपु सन करेहु बतकही सोई॥” यानी, “तुमको बहुत समझाकर क्या कहूँ! मैं जानता हूँ, तुम परम चतुर हो। शत्रु से वही बातचीत करना, जिससे हमारा काम हो और उसका कल्याण.”
भगवान राम ने बेहद सोच विचार कर अंगद को अपने दूत के तौर पर रावण के दरबार में भेजा था. इसका कारण ये था कि अंगद उस बाली का बेटा था जिसने रावण को युद्ध में ना केवल हराया था बल्कि अपनी काख में भी लंबे समय तक दबाकर रखा था. ऐसे में आज की आधुनिक एग्रेसिव-डिप्लोमेसी के जरिए दुश्मन पर साईक्लोजिल दवाब बनाने की कोशिश की गई थी. यानी युद्ध से पहले दुश्मन के खिलाफ साई-ऑप्स.
अंगद अपने काम में सफल रहे थे. उन्होंने अपना पैर रावण के दरबार में ऐसा रखा कि कोई उसे हिला तक नहीं पाया था. पहले हनुमान जी ने लंका में आग लगाकर रावण को हिला दिया था और फिर रावण को लात मारकर अंगद ने सलाह दी कि मेरे पैर मत पड़ भगवान राम के पांव छूकर माफी मांग ले. ये रावण और राक्षसों से भरी उसकी लंका के लिए एक बड़ा झटका था [रामायण में कैसे हुआ था R&AW जैसा ऑपरेशन (TFA Special पार्ट-2)].
शांति प्रस्ताव लेकर गए दूत के अपमान और माता सीता को वापस ना लौटाकर रावण ने युद्ध टालने के सभी रास्ते बंद कर दिए थे. ऐसे में युद्ध ही आखिरी रास्ता था दुश्मन को उसकी हद बताना का और माता सीता को वापस लाने का. जैसा हम सभी जानते हैं राम और रावण की सेनाओं में युद्ध हुआ और विभीषण की मदद से भगवान राम ने रावण को मार गिराया.
जैसा पिछले पार्ट में बताया था कि आज की भारतीय सेना भी भगवान राम और रामायण को अपना आदर्श मानती है [राम की सेना ही है Indian Army ! (TFA Special Part-1)]. यही वजह है कि भारतीय सेना भी आखिरी समय तक युद्ध टालने की कोशिश करती है. 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने आखिरी वक्त तक डिप्लोमेसी के जरिए युद्ध टालने की कोशिश की. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका सहित पाकिस्तान के सभी मित्र-देशों को घूम-घूम कर बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचार के बारे में आगाह किया. लेकिन किसी ने एक ना सुनी. ऐसे में भारत के पास पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के सिवाए कोई दूसरा रास्ता नहीं था. दिसंबर 1971 में मात्र 14 दिनों में ही भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में बुरी तरह मात दी और पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए.
1971 ही नहीं कश्मीर में प्रोक्सी-वॉर के दौरान भी भारत ने पाकिस्तान को कई बार आगाह किया. लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. संसद पर आतंकी हमले. मुंबई के 26-11 हमले और आए दिन भारत के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे सीरियल बम बलास्ट के बाद भारत ने पाकिस्तान को आंतकी संगठनों के डोजियर सौंपे, यूएन तक में पाकिस्तान से ओपरेट होने वाले आंतकियों पर लगाम लगाने की गुजारिश की. लेकिन किसी ने एक ना सुनी. फिर क्या था भारत के सब्र का बांध टूट गया. उरी अटैक और पुलवामा हमले के बाद भारत ने वर्ष 2016 में पहले पाकिस्तान के खिलाफ पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक की और फिर वर्ष 2019 में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के ख्बैर पख्तूनख्वा में बालाकोट एयर स्ट्राइक की. तब कहीं जाकर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आया और वर्ष 2021 में भारत से एलओसी पर शांति बहाली के लिए युद्धविराम समझौता किया. तभी से एलओसी पर शांति है.
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