जिस देश की राजधानी वियना के नाम से राजनयिक संबंधों से जुड़े वैश्विक समझौता बना हैं उस ऑस्ट्रिया की यात्रा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने जा रहे हैं. पीएम मोदी का ये दौरा रूस के दौरे के तुरंत बाद होगा. माना जा रहा है की मॉस्को से पीएम सीधे ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना जाएंगे. वियना कन्वेंशन के जरिए ही दुनिया के सभी देशों के बीच राजनयिक संबंधों की रूपरेखा तैयार की गई है.
पिछले 40 सालों में पहली बार भारत का कोई प्रधानमंत्री ऑस्ट्रिया के दौरे पर जा रहा है. आखिरी बार 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वियना की यात्रा पर गए थीं. ऑस्ट्रिया, यूरोप के उन चुनिंदा देशों में शामिल है जो अमेरिका के नेतृत्व वाले मिलिट्री संगठन नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नाटो) का हिस्सा नहीं है. बावजूद इसके यूक्रेन युद्ध के लिए ऑस्ट्रिया ने रूस की आलोचना की है.
प्रधानमंत्री मोदी अगले महीने 7-10 जुलाई तक रूस और ऑस्ट्रिया के दौरे पर जाएंगे. 3-4 जुलाई को कजाकिस्तान में होने जा रही शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में मोदी हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं. संसद के पहले सत्र के चलते पीएम मोदी कजाकिस्तान में आयोजित एससीओ बैठक में नहीं जाएंगे. एससीओ में भारत और कजाकिस्तान के अलावा रूस, चीन, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. बैठक में पुतिन सहित सभी एससीओ देशों के राष्ट्राध्यक्षों के शामिल होने की पूरी संभावना है.
हालांकि, संसद का सत्र 3 जुलाई को खत्म हो रहा है, ऐसे में पीएम मोदी कजाकिस्तान नहीं जा रहे हैं. लेकिन एससीओ बैठक में न जाने का एक कारण चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात न करना माना जा रहा है. क्योंकि दोनों ही देशों से भारत के संबंध अभी तक पटरी पर नहीं आ पाए हैं (Kremlin जुटा मोदी के स्वागत में, मॉस्को यात्रा जल्द संभव).
पीएम मोदी की जगह विदेश मंत्री एस जयशंकर एससीओ बैठक में शिरकत करेंगे. उसके बाद जयशंकर, पीएम के साथ मॉस्को और वियना भी जाएंगे.
वियना दौरे पर भारत और ऑस्ट्रिया के बीच स्टार्टअप और टेक्नोलॉजी के मुद्दे पर करार हो सकता है. लेकिन वियना के दौरे का भारी कूटनीतिक संदेश है. क्योंकि 60 के दशक में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा राजनयिक संबंधों को लेकर वियना कन्वेंशन आयोजित किया गया था. इसका उद्देश्य अलग-अलग देशों की सरकारों के बीच “मैत्रीपूर्ण संबंधों के विकास” को सुविधाजनक बनाना है.
गौरतलब है कि पिछले दो सालों से रूस और यूक्रेन के बीच जंग चल रही है जिसमें पूरी दुनिया अलग-अलग ब्लॉक में बंट गई है. भारत सहित कुछेक देश ही हैं जो तटस्थ भूमिका में है. भारत ने भले ही यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की खुलकर आलोचना नहीं की है लेकिन बावजूद इसके पीएम मोदी ने पुतिन को साफ कर दिया है कि ये युग युद्ध का नहीं है. भारत ने हाल ही में स्विट्जरलैंड में आयोजित समिट ऑन पीस फॉर यूक्रेन में जरूर शिरकत की थी लेकिन किसी भी साझा बयान से जुड़ने से साफ इंकार कर दिया था, क्योंकि शिखर सम्मेलन में रूस शामिल नहीं हुआ था.