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मोदी Xi की पांच साल बाद मुलाकात, वैश्विक शांति में मिलेगी मदद

गलवान घाटी की झड़प के बाद पहली बार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा कि सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए ‘आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता’ बेहद जरूरी है. मोदी ने भारत और चीन के बीच स्थिर संबंध एशिया और पूरे ‘वैश्विक शांति’ के लिए बेहद जरूरी है.

रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स समिट से इतर पीएम मोदी और शी जिनपिंग में पूरे पांच साल बाद बैठक हुई है. आखिरी बार, दोनों की मुलाकात वर्ष 2019 में हुई थी. जून 2020 में कोरोना महामारी के दौरान भारत और चीन के बीच गलवान घाटी की झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच जबरदस्त तनाव बना हुआ था. पूर्वी लद्दाख से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच जबरदस्त फेस-ऑफ चल रहा था.

सोमवार को भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुए डिसएंगेजमेंट करार के बाद कज़ान में मोदी और शी की वार्ता का रास्ता खुला. ब्रिक्स समिट (22-24 अक्टूबर) के दूसरे दिऩ, मोदी और शी ने मुलाकात की तो प्रधानमंत्री ने साफ कहा कि भारत और चीन के “संबंधों का महत्व केवल हमारे लोगों के लिए ही नहीं है बल्कि वैश्विक शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए भी अहम हैं.”

मोदी ने कहा कि सीमा पर पिछले चार वर्षों (यानी 2020) में उत्पन्न हुए मुद्दों पर बनी सहमति का स्वागत है. सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना हमारी प्राथमिकता रहनी चाहिए. लेकिन प्रधानमंत्री ने ये भी दो टूक कहा कि “आपसी विश्वास, आपसी सम्मान और संवेदनशीलता हमारे संबंधों का आधार बने रहना चाहिए.” (Disengagement के साथ आपसी विश्वास जरूरी: थलसेना प्रमुख)

बैठक के बाद मोदी और शी इस बात पर सहमत हुए कि भारत-चीन सीमा के प्रश्न से संबंधित ‘विशेष प्रतिनिधि’ सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति प्रक्रिया की निगरानी करने और सीमा संबंधी प्रश्न का “निष्पक्ष, उचित एवं पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तलाशने के लिए शीघ्र मिलेंगे.”

भारत की तरफ से सीमा विवाद सुलझाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोवल को विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किया गया है. चीन की तरफ से विदेश मंत्री वांग यी विशेष प्रतिनिधि हैं. बुधवार को हुई मीटिंग के दौरान पीएम मोदी के साथ एनएसए डोवल और विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मौजूद थे. (LAC पर भारत चीन में डिसएंगेजमेंट, BRICS समिट से ऐन पहले समझौता)

मीटिंग के बाद दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि “द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर एवं फिर से मजबूत करने हेतु विदेश मंत्रियों एवं अन्य अधिकारियों के स्तर पर प्रासंगिक संवाद तंत्र का भी सदुपयोग किया जाएगा.” (चीन ने भी माना 04 विवादित इलाकों में हुआ Disengagement)

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया कि “दोनों नेताओं ने इस बात की पुष्टि की कि दो पड़ोसी एवं इस धरती के दो सबसे बड़े राष्ट्रों के रूप में भारत और चीन के बीच स्थिर, अनुकूल एवं सौहार्दपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों का क्षेत्रीय तथा वैश्विक शांति एवं समृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. यह बहुध्रुवीय एशिया और बहुध्रुवीय विश्व की दिशा में भी योगदान देगा.”

दोनों देशों ने “रणनीतिक एवं दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने, रणनीतिक संवाद बढ़ाने और विकास संबंधी चुनौतियों का समाधान करने हेतु सहयोग की संभावनाओं को तलाशने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया.”

मीटिंग में बोलते हुए शी जिनपिंग ने कहा कि भारत और चीन, दोनों को “एक दूसरे में विकास के अवसर तलाशने चाहिए, ना कि एक दूसरे के लिए खतरा बनें.”

जिनपिंग ने दोनों देशों को प्रतिद्धंदियों की बजाए ‘पार्टनर’ करार दिया.

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