Acquisitions Alert Breaking News Defence

200 ब्रह्मोस के साथ नेवी अधिक घातक

भारतीय नौसेना को अधिक घातक बनाने के लिए जल्द बड़ी संख्या में सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल मिलने जा रही हैं. इस बाबत रक्षा मंत्रालय ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस कंपनी से 20 हजार करोड़ से ज्यादा का सौदा किया है. इसके अलावा वायुसेना के मिग 29 फाइटर जेट के लिए नए एयरो-इंजन और लो-फ्लाइंग उड़ान भरने वाले ड्रोन के खिलाफ क्लोज इन वेपन सिस्टम (सीआईडब्लूएस) को लेकर भी रक्षा मंत्रालय ने मेक इन इंडिया के तहत करार किया है. 

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता’ के अंतर्गत तथा मेक-इन-इंडिया पहल को बढ़ावा देने के लिए, रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को कुल 40 हजार ( 39,125.39) करोड़ रुपये के पांच प्रमुख एग्रीमेंट किए. ये सभी करार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने की उपस्थिति में किए गए. 

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद के लिए ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (बीएपीएल) के साथ 19,518.65 करोड़ रुपये की लागत के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए हैं. इन मिसाइलों का उपयोग भारतीय नौसेना की कॉम्बेट यूनिट और ट्रेनिंग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाएगा. मंत्रालय के मुताबिक, इस परियोजना से देश के संयुक्त उद्यम कंपनियों में नौ लाख श्रम दिवस और एनसलेरी इंड्रस्टी (एमएसएमई सहित) में लगभग 135 लाख श्रम दिवस रोजगार सृजित होने की संभावना है.

इसके साथ ही रक्षा मंत्रालय ने युद्धपोत पर तैनात की जाने वाली ब्रह्मोस प्रणाली की खरीद के लिए बीएपीएल के साथ 988.07 करोड़ रुपये  का अनुबंध भी किया है. यह प्रणाली समुद्री हमलों के लिए भारतीय नौसेना के विभिन्न फ्रंटलाइन युद्धपोतों पर मुख्य हथियार के रूप में तैनात है. यह प्रणाली सुपरसोनिक गति पर सटीकता के साथ विस्तारित रेंज से भूमि या समुद्री लक्ष्यों को मारने में सक्षम है. रक्षा मंत्रालय का दावा है कि इस परियोजना से 7-8 वर्षों की अवधि में लगभग 60,000 श्रम दिवस का रोजगार सृजित होने की संभावना है.

हालांकि, रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक बयान में ये नहीं बताया है कि इन दोनों करार में कितनी ब्रह्मोस मिसाइल नौसेना को मिलेंगी लेकिन माना जा रहा है कि ये संख्या 200 से ज्यादा की है.

पांच अनुबंधों में मैसर्स हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिग-29 विमान हेतु एयरो-इंजन की अधिप्राप्ति के लिए एक अनुबंध, क्लोज-इन वेपन सिस्टम (सीआईडब्ल्यूएस) की अधिप्राप्ति के लिए मैसर्स लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के साथ दो अनुबंध और ब्रह्मोस मिसाइलों की अधिप्राप्ति तथा भारतीय रक्षा बलों के लिए पोत पर तैनात की जाने वाली ब्रह्मोस प्रणाली की अधिप्राप्ति के लिए मैसर्स ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (बीएएल) के साथ दो अनुबंध हुए।

ये समझौते भविष्य में स्वदेशी क्षमताओं को मजबूत करेंगे, विदेशी मुद्रा बचाएंगे और विदेशी उपकरण निर्माताओं पर निर्भरता को कम करेंगे।

भारतीय वायुसेना के मिग-29 एयरक्राफ्ट के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के आरडी-33 एयरो इंजन का करार किया है. ये 5,249.72 करोड़ रुपये की लागत का अनुबंध किया गया है. इन एयरो-इंजन का उत्पादन एचएएल के कोरापुट डिवीजन द्वारा किया जाएगा. इन एयरो इंजनों से अवशिष्ट सेवा जीवन के लिए मिग-29 फ्लीट की परिचालन क्षमता को बनाए रखने के लिए भारतीय वायु सेना की आवश्यकता को पूरा करने की उम्मीद है. 

मिग-29 के एयरो-इंजन का निर्माण रूसी ओईएम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) लाइसेंस के तहत किया जाएगा. 80 के दशक के मध्य में भारतीय वायुसेना ने रुस से मिग-29 फाइटर जेट खरीदे थे. इस वक्त वायुसेना में मिग-29 की तीन स्क्वाड्रन हैं जो आदमपुर (पंजाब) और जामनगर (गुजरात) में तैनात रहती हैं. भारत ने मिग-29 फाइटर जेट पाकिस्तान द्वारा अमेरिका से लिए गए एफ-16 लड़ाकू विमानों के मुकाबले में खरीदे थे. पुराने पड़े चुके मिग-29 को अब अपग्रेड करने की प्रक्रिया जारी है. इसलिए उनके नए इंजन खरीदने को लेकर नया करार किया गया है. 

रक्षा मंत्रालय ने वायुसेना के लिए ही लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड (एलएंडटी) के साथ सीआईडब्ल्यूएस खरीदना का करार किया है. ये अनुबंध करीब 7700 करोड़ का है. सीआईडब्ल्यूएस देश के चुनिंदा महत्वपूर्ण स्थानों पर टर्मिनल एयर डिफेंस प्रदान करेगा. यह परियोजना भारतीय एयरोस्पेस, रक्षा और एमएसएमई सहित संबंधित उद्योगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देगी. 

एलएंडटी के मुताबिक, सीआईडब्लूएस के जरिए लो-फ्लाइंग और लो सिग्नेचर वाले ड्रोन जैसे एरियल अटैक से सुरक्षा मिलेगी. इस सिस्टम में एयर-डिफेस गन के अलावा ट्रेकिंग रडार और सर्च रडार भी शामिल हैं जो कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से जुड़े होते हैं. 

रक्षा मंत्रालय ने वायुसेना के लिए एल एंड टी से हाई पावर रडार (एचपीआर) खरीदने का करार भी किया है जिसकी कीमत 5,700 करोड़ रुपये से ज्यादा की है. यह छोटे रडार क्रॉस सेक्शन लक्ष्यों का पता लगाने में सक्षम परिष्कृत सेंसर के एकीकरण के साथ भारतीय वायुसेना की स्थलीय वायु रक्षा क्षमताओं में काफी वृद्धि करेगा. यह स्वदेशी रडार निर्माण तकनीक को बढ़ावा देगा क्योंकि यह भारत में निजी क्षेत्र द्वारा निर्मित अपनी तरह का पहला रडार होगा.

ReplyForwardAdd reaction
ReplyForwardAdd reaction
ReplyForwardAdd reaction

 

ReplyForwardAdd reaction

 

ReplyForwardAdd reaction
ReplyForwardAdd reaction

editor
India's premier platform for defence, security, conflict, strategic affairs and geopolitics.