पिछले तीन साल से आंतरिक हिंसा और अलगाववाद से जूझ रहे म्यांमार में अब जुंटा (आर्मी शासन) विद्रोहियों से बातचीत के लिए तैयार हो गया है. भारत के पड़ोसी देश में अब जुंटा आर्मी ने बयान जारी करते हुए कहा है कि हम बातचीत के लिए तैयार है. जुंटा का ये बयान ऐसे वक्त में आया है जब हाल ही में म्यांमार पूर्व के एक बड़े इलाके पर चीन समर्थित विद्रोही संगठनों ने अपना कब्जा कर लिया है.
खास बात ये है कि हाल ही में भारत ने म्यांमार के विद्रोहियों गुटों के प्रतिनिधियों को एक सेमिनार के लिए नई दिल्ली आमंत्रित किया था.
माना जा रहा है कि पिछले साढ़े तीन साल में जुंटा को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, जिसके बाद मिलिट्री शासन बातचीत करने की बात करने लगा है. फरवरी 2021 में आर्मी ने आंग सू सरकार का तख्तापलट कर दिया था और तब से ही म्यांमार भीषण हिंसा का गवाह बना है.
जुंटा आर्मी ने क्या ऐलान किया?
जुंटा ने बयान जारी कर कहा कि “हम राज्य के खिलाफ लड़ रहे जातीय सशस्त्र समूहों, आतंकवादी विद्रोही समूहों और आतंकवादी पीडीएफ समूहों को शांति से बातचीत के लिए आमंत्रित करते हैं, ताकि वो आतंकी लड़ाई छोड़ दें और राजनीतिक समस्याओं को राजनीतिक तौर से हल करने के लिए बातचीत करें.”
दरअसल सेना के तख्तापलट के विरोध में आम नागरिकों ने पीडीएफ (पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज) बना लिया. आर्मी का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ और हथियारबंद समूहों ने सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया है. म्यांमार के चिन, कचिन और रखाइन प्रांत में विद्रोहियों का ही शासन चलता है और म्यांमार प्रशासन पूरी तरह गायब हो गया है.
जातीय अल्पसंख्यक सशस्त्र समूहों और लोकतंत्र समर्थक पीडीएफ के हाथों युद्ध में पस्त होने के बाद आर्मी ने बातचीत की प्रस्ताव दिया है. जुंटा ने अपने बयान में कहा है कि “देश के मानव संसाधन, बुनियादी ढांचे और कई लोगों की जान चली गई है और संघर्ष के कारण देश की स्थिरता और विकास रुक गया है.”
दरअसल, चीन से सटे म्यांमार के प्रांतों में विद्रोह गुट ने अपना शासन स्थापित कर लिया है. इन विद्रोहियों को चीन का समर्थन माना जाता है. साथ ही अमेरिका भी इन विद्रोही संगठनों से सांठगांठ करने की फिराक में है. यही वजह कि म्यांमार सैन्य शासन को अपनी सत्ता डावाडोल नजर आने लगी है. विद्रोहियों से बातचीत की ये बड़ी वजह है. पश्चिमी देशों द्वारा म्यांमार के बॉयकॉट से भी आर्थिक हालात पर खासा असर पड़ा है.
हाल ही में विद्रोहियों ने म्यांमार की सेना के सबसे बड़े मिलिट्री बेस मायावडी पर भी कब्जा कर लिया था.
सेना को अपने किए हर काम के लिए जवाबदेह होना होगा: केएनयू
जुंटा सेना से संघर्ष कर रहे करेन नेशनल यूनियन (केएनयू) के प्रवक्ता पदोह सॉ ताव नी ने बातचीत के प्रस्ताव पर कहा कि “बातचीत केवल तभी संभव है जब सेना सामान्य राजनीतिक उद्देश्यों पर सहमत हो. सेना को अपने द्वारा किए गए हर काम के लिए जवाबदेह होना होगा, जिसमें युद्ध भी शामिल है. भविष्य की राजनीति में कोई सैन्य भागीदारी न हो और सेना को एक संघीय लोकतांत्रिक संविधान से सहमत होना होगा. अगर सेना इन बातों से सहमत है तभी बातचीत हो सकती है अन्यथा नहीं.”
म्यांमार के साथ भारत साझा करता है बॉर्डर
भारत के साथ म्यांमार 1650 किलोमीटर लंबा बॉर्डर साझा करता है. म्यांमार के गृहयुद्ध का असर भारत पर भी पड़ा है. मणिपुर में फैली अराजकता के पीछे म्यांमार भी काफी हद तक जिम्मेदार माना जाता है. क्योंकि ऐसी खबरें आईं थी कि म्यांमार के कंधे पर बंदूक रखकर चीन भारत के बॉर्डर पर अशांति फैलाने की फिराक में है. यही वजह है आर्मी चीफ तक ने मणिपुर का दौरा किया था.
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