June 29, 2024
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गलवान के चार साल पूरे, एलएसी पर नागास्त्र

गलवान घाटी की झड़प के ठीक चार साल बाद भारत ने ड्रोन वारफेयर में एक बड़ा कदम उठाया है. स्वदेश में निर्मित पहले ‘कामकाजी’ (आत्मघाती) ड्रोन ‘नागास्त्र’ को भारतीय सेना को सप्लाई कर दिया गया है. माना जा रहा है कि जल्द इन लॉइटरिंग म्यूनिशन को पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी एलएसी पर तैनात किया जाएगा. 

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की पहचान और दुश्मनों पर एयर-स्ट्राइक करने में माहिर ‘नागास्त्र 1’ का पहला बैच भारतीय सेना को मिल गया है. इस बैच में 120 ड्रोन हैं. ये ड्रोन दुश्मन के टैंक, आर्मर्ड व्हीकल, मिलिट्री-ट्रक, बंकर, पोस्ट और हथियार डिपो को पलक झपकते ही खत्म कर देगा. इन ड्रोन को नागपुर की कंपनी सोलर इंडस्ट्रीज की ‘इकोनॉमिक्स एक्सप्लोसिव लिमिटेड’ यूनिट ने बनाया है. यह सोलर इंडस्ट्रीज की सहायक कंपनी है. सेना ने 480 लॉइटरिंग म्यूनिशन यानी आत्मघाती ड्रोन का ऑर्डर दिया था. इनमें से 120 की डिलीवरी कर दी गई है.

चीन सीमा पर परीक्षण, दुश्मनों को डसेगा नागास्त्र
नागास्त्र ड्रोन से भारतीय सेना की ताकत में इजाफा हो गया है. यह ‘मैन-पोर्टेबल’ है मतलब इसे कोई भी जवान खुद ही उठाकर कहीं भी ले जा सकते हैं. यह ड्रोन दुश्मन के प्रशिक्षण शिविरों, लॉन्च पैड और घुसपैठियों पर सटीक हमला करने में सक्षम हैं.  इसके परीक्षण चीन सीमा के पास लद्दाख की नुब्रा घाटी में किए गए. नागास्त्र -1 का वजन 9 किलोग्राम है. यह 30 मिनट तक उड़ान भर सकता है. मैन-इन-लूप रेंज 15 किमी और स्वायत्त मोड रेंज 30 किमी है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि नागास्त्र ड्रोन दुश्मन देशों के रडार में नहीं आ पाता है. इन ड्रोन को चुपके से कम आवाज की मदद से दुश्मन के घर में घुसकर हमला करवाया जा सकता है. नागास्त्र फिक्स्ड विंग्स ड्रोन हैं, जिसमें विस्फोटक रख कर दुश्मनों के ठिकानों पर हमला किया जा सकता है. इसके वैरिएंट्स को ट्राईपॉड या हाथों से भी उड़ाया जा सकता है. दूसरा वैरिएंट टैंक, बख्तरबंद और एंटी-पर्सनल हमले के काम आ सकता है.

गलवान घाटी की झड़प के हुए चार साल
15-16 जून 2020 को भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में खूनी झड़प हुई थी. इस झड़प में भारतीय सेना के कर्नल संतोष बाबू सहित कुल 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे. लेकिन चीन ने आज तक अपने मारे गए सैनिकों का आंकड़ा आज तक सार्वजनिक नहीं किया है. माना जाता है कि चीन के भी बड़ी संख्या में सैनिक हताहत हुए थे. चीन ने इस झड़प में बहादुरी का प्रदर्शन करने वाले पांच सैनिकों के नाम उजागर किए थे (चार मरणोपरांत) जिन्हें वीरता मेडल से नवाजा गया था. तभी से भारत और चीन के संबंध बेहद नाजुक बने हुए हैं. उस वक्त, भारत को ड्रोन की कमी खली थी. ऐसे में तभी से भारतीय सेना ने ड्रोन टेक्नोलॉजी में महारत हासिल करने की ठानी है. नागास्त्र भी उसी ड्रोन वारफेयर का नतीजा है. 

पैराशूट से सॉफ्ट लैंडिंग बनाती है नागास्त्र को बेहद खास
इस ड्रोन को पहली बार अप्रैल 2023 में मानेकशॉ सेंटर में दिखाया गया था. नागास्त्र, इजरायल और पोलैंड से आयात किए गए हवाई हथियारों से करीब 40 फीसदी सस्ता भी है. नागास्त्र-1 जैसे ड्रोन एक प्रकार के घूमने वाले हथियार हैं, जिसमें हवाई हथियार को एक अंतर्निर्मित वार-हेड के साथ डिजाइन किया गया है. नागास्त्र दिन और रात में निगरानी करने वाले कैमरों के अलावा 1 किलोग्राम के खतरनाक बारूदी वॉरहेड से लैस है, यदि किसी कारणवश नागास्त्र टारगेट का पता नहीं लगा पाता है. या मिशन रोक दिया जाता है तो आत्मघाती ड्रोन को वापस बुलाया जा सकता है. और पैराशूट के साथ सॉफ्ट लैंडिंग की जा सकती है, जिससे कई बार दोबारा उपयोग किया जा सकता है (https://x.com/FrontalForce/status/1801577381494407615).

दरअसल आत्मघाती और घातक ड्रोन आज के समय की मांग है. रूस-यूक्रेन की जंग हो या फिर इजरायल-हमास में चल रहा युद्ध हो, ड्रोन का व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया गया है. यही वजह है कि भारतीय सेना भी ड्रोन से मजबूत हो रही है. साथ ही पिछले 10 सालों में मोदी सरकार ने जिस तरह से आत्मनिर्भरता के नारे को बुलंद किया है, लिहाजा भारतीय कंपनियां खुद स्वदेशी हथियार, ड्रोन और मिसाइलें बना रही हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया था जिसमें यूक्रेन का एक आत्मघाती ड्रोन रुस के सैनिकों की जीप को निशाना बनाता है. हमले के दौरान एक दूसरा ड्रोन, अटैक को अपने कैमरे में कैद कर रहा था (https://x.com/neeraj_rajput/status/1801481945865396553).

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