गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद पहली बार चीन पहुंचे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उपराष्ट्रपति हान झेंग से बीजिंग में मुलाकात की है. एस जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए चीन दौरे पर हैं. ये बैठक ऐसे वक्त में हो रही है जब जयशंकर के बीजिंग पहुंचने के कुछ घंटे पहले चीन ने दलाई लामा और तिब्बत को लेकर भारत के रुख पर ऊटपटांग बयान दिया है. हाल ही में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देने पर चीन पूरी दुनिया में बेनकाब हुआ है.
चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात के दौरान जयशंकर ने दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य होने पर जोर दिया है.
वैश्विक हालात मुश्किल, भारत-चीन के सामान्य रिश्ते जरूरी: जयशंकर
एस जयशंकर ने चीनी उपराष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान कहा, ‘जब हमारी मुलाकात हो रही है तो उस वक्त वैश्विक हालात बेहद जटिल बने हुए हैं. बतौर पड़ोसी देश और बड़ी अर्थव्यवस्थाएं होने के नाते हमारे बीच विचारों का आदान-प्रदान बेहद अहम है.’
एस जयशंकर ने ने कहा, “भारत, चीन की एससीओ अध्यक्षता की सफलता का समर्थन करता है और माना कि पिछले अक्टूबर में कज़ान में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद से हमारे द्विपक्षीय संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है.”
भारत में कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली की सराहना हुई: जयशंकर
विदेश मंत्री ने चीनी उपराष्ट्रपति से कहा, “कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली भारत में बेहद सकारात्मक रूप से सराही जा रही है. यह दोनों देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों को मजबूत करने का अवसर है.”
एस जयशंकर ने कहा, “हमने अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मनाई है. कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली की भी भारत में व्यापक रूप से सराहना की जा रही है. हमारे संबंधों के निरंतर बेहतर होने से पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम मिल सकते हैं.”
जयशंकर ने भारत-चीन के द्विपक्षीय संवाद को आगे बढ़ाने की जरूरत पर भी बल दिया और उम्मीद जताई कि सभी मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जाएगा.
6 साल बाद शुरु हुई कैलाश मानसरोवर यात्रा, एलएसी पर तनाव के बाद लगा था ग्रहण
कैलाश मानसरोवर यात्रा इस साल छह साल के बाद फिर शुरू हुई है. कोरोना महामारी और 2020 में गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद यात्रा रोक दी गई थी. भारत चीन के बीच एलएसी पर तनाव के चलते कैलाश मानसरोवर यात्रा रुक गई थी, लेकिन कजान में पीएम मोदी और शी जिनपिंग की बातचीत के बाद रिश्तों को सामान्य बनाने पर जोर दिया गया. जिसके बाद अब भारत और चीन के संबंध फिर से पटरी पर आ रहे हैं. एलएसी पर भी तनाव कम हुआ है, जिसके बाद यह यात्रा इस साल फिर शुरू हुई. जून से शुरु हुई यात्रा अगस्त तक चलेगी. इस दौरान करीब 750 तीर्थयात्री तिब्बत में कैलाश मानसरोवर की यात्रा करेंगे.
क्यों अहम मानी जा रही जयशंकर की चीन यात्रा, रूस की कोशिश एक मंच पर साथ आएं
एस जयशंकर की यात्रा भारत-चीन दोनों के संबंधों को सुधारने की दिशा में अहम मानी जा रही है. दोनों नेताओं की बैठक को संबंधों में संवाद और संतुलन से सुलझाने पर जोर दिया गया है.
दरअसल रूस की कोशिश है कि रूस-भारत-चीन मिलकर त्रिपक्षीय मंच पर आएं. रूस शुरुआत से ही भारत-चीन के रिश्तों को मजबूत बनाने में जुटा है. रूसी विदेश मंत्री और व्लादिमीर पुतिन खुद कह चुके हैं कि वेस्ट देश नहीं चाहते हैं कि उनके परममित्र देश भारत और चीन एक साथ आएं, इसलिए जानबूझकर दोनों देशों के बीच फूट डाली जा रही है.
परन्तु इस बात को भारत नहीं नकार सकता है कि भारत विरोधी पाकिस्तान को चीन बहुत शह देता रहता है. चीन ऐसा देश हैं जिसपर आंख मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता है. पहलगाम नरसंहार के दौरान ही देख लीजिए, चीन उन पहले देशों में एक था,जिसे कूटनीतिक तौर पर भारत ने कॉन्फिडेंस में लिया था. लेकिन हुआ क्या, चीन, पाकिस्तान के साथ खड़ा हो गया और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान लाइव फीड देकर भारत की सैन्य तैयारियों का खुलासा करता रहा, भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा भी फैलाता रहा. लेकिन कहते हैं ना कि झूठ के पंख नहीं होते, यानि थोड़ी देर में थककर खुद गिर जाता है, वही हाल चीन का भी हुआ. दुनियाभर में पाकिस्तान का साथ देने पर थू-थू हुई और तो और फ्रांसीसी खुफिया एजेंसी ने भी चीन को बेनकाब किया कि किस तरह अपने राजनयिकों के जरिए चीन ने झूठ फैलाया था.
जयशंकर की यात्रा से पहले चीन ने दिखाया असली रंग
तिब्बती बौद्ध गुरु दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे पर जिस तरह से भारत ने उनका साथ दिया है, वो चीन को पसंद नहीं आ रहा. यही नहीं दलाई लामा का लद्दाख में आवाभगत करना भी चीन को अखर रहा है. जिसके बाद रविवार को दिल्ली में चीन प्रवक्ता यू जिंग ने एक्स पर एक लंबी चौड़ी पोस्ट डाली, जिसमें उन्होंने लिखा कि “कुछ रणनीतिक और शैक्षणिक लोगों ने दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर गलत बयान दिए हैं. इन लोगों ने भारत सरकार से विपरीत स्टैंड दिखाया है. विदेश मामलों से जुड़े लोगों को शिजांग (तिब्बत) से जुड़े मुद्दों की संवेदनशीलता को समझना चाहिए. दलाई लामा का पुनर्जन्म और उत्तराधिकारी पूरी तरह चीन का आंतरिक मामला है. तिब्बत से जुड़ा यह मुद्दा भारत-चीन संबंधों में एक कांटा है और भारत के लिए बोझ बन गया है. अगर भारत ‘तिब्बत कार्ड’ खेलेगा, तो खुद ही नुकसान करेगा.”