संसद में फिलिस्तीन की जय-जयकार करने वाले एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी फंसने लगे तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करने लगे हैं. क्योंकि आजादी से पहले गांधी जी ने फिलिस्तीन के पक्ष में एक लेख लिखा था.
इजरायल-फिलिस्तीन के बीच चल रही जंग के बीच ओवैसी ने फिलिस्तीन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए शपथ ग्रहण के दौरान “जय फिलिस्तीन” कह दिया. जिसके बाद हंगामा मचना शुरु हो गया. हालांकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विरोध के बाद नारे को रिकॉर्ड से हटा दिया गया लेकिन ओवैसी की सदस्यता निरस्त करने की मांग की है.
घिरे ओवैसी, राष्ट्रपति से की गई शिकायत
बीजेपी ने संसद में फिलिस्तीन के पक्ष में ओवैसी के नारे पर आपत्ति जताई है, साथ ही कहा है कि मौजूदा नियमों के अनुसार ओवैसी को संसद से अयोग्य ठहराया जाना चाहिए.
वहीं सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट हरिशंकर जैन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को चिट्ठी लिखकर औवेसी की सदस्यता रद्द करने की डिमांड की है. तो एडवोकेट विनीत जिंदल ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया कि उन्होंने “फिलिस्तीन के लिए निष्ठा दिखाने पर ओवैसी को अनुच्छेद 102 (4) के तहत अयोग्य ठहराने की मांग की है.”
वहीं केन्द्रीय मंत्री और उत्तराखंड से सांसद अजय टम्टा ने कहा, “संवैधानिक प्रक्रिया के मुताबिक, एक सांसद उतना ही पढ़ेगा, जितना उसे कहा जाएगा.”
भारत में संसद सत्र के दूसरे दिन ऐसा कुछ हुआ जिससे फिलिस्तीन को लेकर दुनियाभर में चर्चा होने लगी. शिकायत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक पहुंच गई. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा सांसद के तौर पर शपथ लेने के दौरान फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाकर विवाद खड़ा कर दिया.
‘फिलिस्तीन’ पर घिरे तो ओवैसी ने दिया गांधी का उदाहरण
जय फिलिस्तीन पर घिरने के बाद हैदराबाद के सांसद ने कहा, “मैंने संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है. दूसरे सांसद भी अलग-अलग बातें कह रहे थे. मैंने ‘जय भीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन’ कहा. यह गलत कैसे है? मुझे संविधान का प्रावधान बताएं?”
ओवैसी ने महात्मा गांधी उदाहरण देते हुए कहा, “आपको यह भी सुनना चाहिए कि दूसरे क्या कहते हैं. मैंने वही कहा जो मुझे कहना था. महात्मा गांधी ने फिलिस्तीन के बारे में क्या कहा था, इसे भी पढ़ें.”
फिलिस्तीन पर क्या था बापू का दृष्टिकोण?
साल 1938 में हरिजन नामक साप्ताहिक पत्रिका में महात्मा गांधी का लेख प्रकाशित हुआ था. इस लेख में फिलिस्तीन मुद्दे पर गांधी ने लिखा कि “आज फिलिस्तीन में जो कुछ हो रहा है, उसे किसी भी नैतिक आचार संहिता से उचित नहीं ठहराया जा सकता. यहूदियों के प्रति उनकी सहानुभूति न्याय की आवश्यकताओं के प्रति उन्हें अंधा नहीं बनाती. निश्चित रूप से यह मानवता के खिलाफ अपराध होगा कि गर्वित अरबों को कम किया जाए ताकि फिलिस्तीन को यहूदियों को आंशिक रूप से या पूरी तरह से उनके राष्ट्रीय घर के रूप में वापस किया जा सके. ब्रिटिश बंदूक की छाया में फिलिस्तीन में प्रवेश करना गलत है.”
फिलिस्तीन के साथ कैसे हैं भारत के संबंध?
भारत ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में कभी किसी का पक्ष नहीं लिया है. भारत ने दोनों देशों में विवाद सुलझाने पर जोर दिया. फरवरी में विदेश मंत्रालय में तत्कालीन राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में कहा था, “फिलिस्तीन के प्रति भारत की नीति लंबे समय से चली आ रही है और सुसंगत है. हमने सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक संप्रभु, स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य की स्थापना की दिशा में बातचीत के जरिए दो राज्य समाधान का समर्थन किया है, जो इजरायल के साथ शांति से रह सके.”
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में भारत ने इजरायल और फिलिस्तीन विवाद के हल के लिए दो राष्ट्र समाधान की वकालत की. संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक बार फिर दोहराते हुए इस भारत ने कहा कि “हम दो राष्ट्र समाधान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि फिलिस्तीनी अपनी सुरक्षित सीमा के भीतर एक स्वतंत्र देश में रह सकें.”