सऊदी अरब और यूएई की यात्रा से लौटे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की है कि वे एक बार फिर से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. रूस में आम चुनाव अगले साल यानी मार्च के महीने में होगा. ये चुनाव ऐसे समय में होगा जब यूक्रेन के खिलाफ जंग (‘स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन’) को पूरे तीन साल पूरे हो चुके होंगे.
शुक्रवार को क्रेमलिन पैलेस में यूक्रेन युद्ध के योद्धाओं को सम्मानित के लिए आयोजित एक सैन्य समारोह में पुतिन ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया. दरअसल, सम्मानित सैनिकों में से एक ने पुतिन से ये सवाल किया था कि क्या वे एक बार फिर से रूस के राष्ट्रपति बनना चाहेंगे, तो पुतिन ने दो टूक कहा कि वे चुनाव लड़ने जा रहे हैं.
पिछले 23 सालों से पुतिन कभी रूस के राष्ट्रपति और कभी प्रधानमंत्री बनकर अपने देश के सबसे लंबे समय तक देश की कमान संभालने वाले राष्ट्राध्यक्ष हैं. वर्ष 2020 में जब उन्होंने अपने देश के संविधान को संशोधित किया था तभी लोगों ने कयास लगाने शुरु कर दिए थे कि वे अगला चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. क्योंकि उससे पहले तक रूस में कोई भी राष्ट्राध्यक्ष दो बार से अधिक चुनाव नहीं लड़ सकता था. इससे पहले भी वे संविधान को संशोधित कर कभी प्रधानमंत्री तो कभी राष्ट्रपति बनकर देश का राजनीतिक नेतृत्व कर रहे थे.
पिछले साल यानि फरवरी 2022 में यूक्रेन के खिलाफ आक्रमण, जिसे रूस में स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन का नाम दिया जाता है, करने के बाद दुनिया को ऐसा लगने लगा था कि पुतिन की लोकप्रियता कम हो रही है. अमेरिका सहित अधिकतर यूरोपीय देशों ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए भारी प्रतिबंध लगा दिए थे. पश्चिमी देशों को लगता था कि ऐसा करने से पुतिन की लोकप्रियता अपने ही देश (रशिया) में कम हो जाएगी और लोग उनके खिलाफ सड़कों पर उतर आएंगे. लेकिन पिछले 22 महीनों से जिस तरह रूस ने यूक्रेन के डोनबास इलाके पर कब्जा कर अपने देश में शामिल कर लिया है और अमेरिका सहित नाटो देशों को मुंह की खानी पड़ी है उससे पुतिन की लोकप्रियता अपने देशवासियों में कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है.
इसका कारण ये है कि प्रतिबंधों के बावजूद रूस की अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत स्थिति में है. भले ही पश्चिमी ब्रांड रूस छोड़कर जा चुके हैं लेकिन रशिया की आर्थिक स्थिति में कोई गिरावट नहीं आई है. यूक्रेन से सटे सीमावर्ती प्रांतों को छोड़ दें तो रुस के किसी भी इलाके में जिंदगी आम दिनों जैसी चल रही है. इसके उलट सीमावर्ती इलाकों में पुतिन और उनके ऑपरेशन जेड को जबरदस्त समर्थन मिला है. जगह-जगह पुतिन और उनकी पार्टी के समर्थन के पोस्टर-बैनर लगे दिखाई पड़ते हैं.
पुतिन की तरह ही उनके देशवासियों को भी ऐसा लगता है कि यूक्रेन के कंधे पर बंदूक रखकर अमेरिका, रशिया को कमजोर करने की साजिश रच रहा है. यही वजह है कि पुतिन को अपने देशवासियों का समर्थन मिल रहा है. रूस के नागरिकों में कराए गए सर्वे में उनकी लोकप्रियता 80 प्रतिशत तक पाई गई है. यही वजह है कि पुतिन ने एक बार फिर से इलेक्शन लड़ने का फैसला किया है. वे इस वक्त 71 वर्ष के हैं और नए संशोधन के तहत कम से कम 2036 तक देश का नेतृत्व कर सकते हैं. रूस में राष्ट्राध्यक्ष का कार्यकाल छह साल के लिए होता है.
अगर पुतिन 2024 का चुनाव जीतते हैं तो राष्ट्रपति के तौर पर ये उनका पांचवा कार्यकाल होगा. वे 1999 में देश के राष्ट्रपति बनने थे और इसी बीच दो बार प्रधानमंत्री भी रहे. रुस में पिछले 20 सालों से पुतिन को टक्कर देने वाला कोई मजबूत उम्मीदवार सामने नहीं आया है. उनपर कई बार विपक्षी नेताओं को जेल भेजने से लेकर जहर देने तक के गंभीर आरोप भी लग चुके हैं. कई बार तो ये भी आरोप लगते हैं कि जो भी विपक्षी उम्मीदवार उनके खिलाफ चुनाव लड़ा है वो उनका ही कोई ‘प्रोक्सी’ या फिर ‘डमी-उम्मीदवार’ होता है. यही वजह है कि पश्चिमी देश रुस में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को वन-पार्टी डिक्टेटरशिप (तानाशाही) से तुलना करते हैं.
यूक्रेन से चल रही तनातनी के बीच कभी पुतिन के वफादार रहे प्राईवेट मिलिशिया वैगनर के चीफ येवगेनी प्रिगोझिन ने विद्रोह करने की कोशिश जरूर की लेकिन उसे तुरंत दबा दिया गया. यही नहीं सैन्य विद्रोह के कुछ हफ्तों बाद ही प्रिगोझिन की एक हवाई हादसे में अपने साथियों के साथ संदिग्ध तौर से मौत हो गई. इसे हादसे से पुतिन की छवि एक ताकतवर नेता के तौर पर उभरी है.
पुतिन की लोकप्रियता इसलिए भी कम नहीं हुई है क्योंकि भारत और चीन जैसे बड़े देशों से उनके संबंध बेहद मजबूत रहे हैं. ऐसे समय में जब दुनिया के अधिकतर देश उनसे पल्ला झाड़ रहे थे तब भारत और चीन ने उनके साथ संबंधों को नहीं तोड़ा. इसके लिए भारत को तो पश्चिमी देशों की आलोचना का भी शिकार होना पड़ा. भारत और रुस के व्यापार में और हथियारों के लेनदेन पर कोई खासा असर नहीं पड़ा. रुस से कच्चा तेल लेने को लेकर भी यूक्रेन सहित कई यूरोपीय देशों ने भारत की भर्त्सना की. लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि रुस के साथ संबंध ऐतिहासिक हैं और समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं. भारत अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति निर्धारित करता है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही पुतिन से कहा हो कि “ये युग युद्ध का नहीं है” लेकिन उनसे अपने दोस्ती को नहीं टूटने दिया. यही वजह है कि पुतिन भी पीएम मोदी और भारत की सार्वजनिक तौर से मजबूत विदेश नीति की तारीफ करते नहीं थकते हैं.
पुतिन से अगर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने मुंह मोड़ लिया है तो रुस ने भारत और चीन के साथ-साथ ईरान, सऊदी अरब, यूएई, ब्राजील, उत्तर कोरिया और अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में काम किया है. हाल ही में पुतिन सऊदी अरब और यूएई की यात्रा पर गए थे. वहां से लौटते ही ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने मास्को का दौरा किया. ऐसे में पुतिन एक ‘वैकल्पिक’ वर्ल्ड ऑर्डर बुनने की तैयारी में जुटे हैं जो अमेरिका और वेस्ट को चुनौती दे सके.