संसद सत्र में व्यस्तता और चीन- पाकिस्तान के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही एससीओ बैठक में शामिल होने कजाकिस्तान (3-4 जुलाई) नहीं जा रहे हैं लेकिन जल्द ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने मॉस्को जा सकते हैं. इस बात की जानकारी खुद पुतिन के एक करीबी सलाहकार ने दी है. अगले महीने यानी जुलाई के दूसरे हफ्ते में ही ये यात्रा संभव हो सकती है.
पुतिन के सलाहकार उरी इसाकोव के मुताबिक, पीएम मोदी की आधिकारिक यात्रा की ‘तैयारियां शुरु’ हो चुकी है. हालांकि, ऊरी ने ये जरुर कहा कि अभी तक ‘तारीख को लेकर कोई सहमति नहीं बनी है’. पीएम मोदी अगर मॉस्को के दौरे पर जाते हैं तो 2019 के बाद ये उनकी पहली रूस यात्रा होगी. साथ ही रूस-यूक्रेन जंग शुरु होने के बाद भी उनकी ये पहली रूस यात्रा मानी जाएगी.
पुतिन भी आखिरी बार दिसंबर 2021 में ही भारत के एक संक्षिप्त दौरे पर आए थे. वे मात्र छह घंटे के लिए ही दिल्ली आए थे. दिल्ली आने के दो महीने बाद ही रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग (‘स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन’) छेड़ दिया था.
सितंबर 2023 में राजधानी दिल्ली में आयोजित जी-20 की बैठक में भी पुतिन भारत नहीं आए थे. उनकी जगह रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव समिट में शामिल हुए थे. उसी दौरान टर्की (तुर्किए) की मदद से भारत ने रूस और यूक्रेन के बीच ‘अनाज संधि’ कराने में अहम भूमिका निभाई थी.
पीएम मोदी के तीसरी बार चुनाव जीतने पर पुतिन ने ही सबसे पहले (5 जून) को फोन कर बधाई दी थी. दोनों की केमिस्ट्री जबरदस्त है और जब भी मिलते हैं गर्मजोशी साफ दिखाई पड़ती है. बावजूद इसके सितंबर 2022 में उज्बेकिस्तान में आयोजित शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) की बैठक में पीएम मोदी ने यूक्रेन जंग को लेकर पुतिन के मुंह पर ये बोल दिया था कि “ये युग युद्ध का नहीं है.”
भारत ने भले ही खुलकर रूस की आलोचना नहीं की है लेकिन युद्ध शुरु होने के बाद से ही डिप्लोमेसी और बातचीत के जरिए यूक्रेन से शत्रुता खत्म करने की हिमायत की है. इसी महीने स्विट्जरलैंड में आयोजित ‘समिट ऑन पीस इन यूक्रेन’ में भारत ने अपनी इसी नीति को दोहराया था. रूस के शिखर सम्मेलन में शामिल न होने के चलते भारत ने समिट के किसी भी साझा बयान या फिर प्रस्ताव का हिस्सा न बनने से भी साफ इंकार कर दिया था.
अगर पीएम मोदी मॉस्को की यात्रा करते हैं तो अमेरिकी सहित सभी पश्चिमी देशों की निगाहें भी इस तरफ लगी होंगी. क्योंकि गुरपतवंत सिंह पन्नू के मामले के बाद से भारत के अमेरिका और कनाडा जैसे देशों से भी संबंधों में थोड़ी दरार आ गई है. ऐसे में मॉस्को की यात्रा भारत की कूटनीति में एक ‘बैलेंसिंग-पोजिशनिंग’ भी साबित हो सकती है.
पीएम मोदी के मॉस्को यात्रा की खबर ऐसे समय में आई है जब रूस ने भारत के साथ ‘मिलिट्री-लॉजिस्टिक एग्रीमेंट’ का प्रस्ताव रखा है (बेहद खास है रूस का मिलिट्री एग्रीमेंट प्रस्ताव !).
अगले महीने (3-4 जुलाई) को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा नहीं ले रहे हैं. संसद के पहले सत्र के चलते पीएम मोदी कजाकिस्तान में आयोजित एससीओ बैठक में नहीं जाएंगे. एससीओ में भारत और कजाकिस्तान के अलावा रूस, चीन, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. बैठक में पुतिन सहित सभी एससीओ देशों के राष्ट्राध्यक्षों के शामिल होने की पूरी संभावना है.
हालांकि, संसद का सत्र 3 जुलाई को खत्म हो रहा है, ऐसे में पीएम मोदी कजाकिस्तान नहीं जा रहे हैं. लेकिन एससीओ बैठक में न जाने का एक कारण चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात न करना माना जा रहा है. क्योंकि दोनों ही देशों से भारत के संबंध अभी तक पटरी पर नहीं आ पाए हैं.
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