भारत और चीन के बीच एलएसी को लेकर चल रही सकारात्मक कूटनीतिक चर्चा के बीच खुलासा हुआ है कि चीन ने पैंगोंग त्सो झील पर अपने कब्जे वाले क्षेत्र में ब्रिज बना लिया है. सोमवार को टोक्यो से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन से द्विपक्षीय वार्ता पर जोर दिया था. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या वाकई चीन पर भरोसा किया जाता है.
सवाल ये भी कि ब्रिज की सैटेलाइट इमेज को सार्वजनिक करने के पीछे भारत और चीन के बीच दरार पैदा करने की साजिश तो नहीं है. क्योंकि चीन ने जब इस पुल को बनाने की शुरुआत की थी, तब भी ये खबर सामने आई थी. लेकिन अब निर्माण पूरा होने के बाद तस्वीर को ऐसे समय में दुनिया के सामने लाया गया है जब दोनों देश (भारत और चीन) वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) विवाद को दोगुने प्रयास से हल करना चाहते हैं.
सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ है कि लद्दाख में पेंगोंग त्सो झील पर चीन ने ब्रिज बना लिया है और उस पर एक गाड़ी जा रही है. इस ब्रिज की मदद से चीन अब आसानी से झील के उत्तर से दक्षिण इलाके में सैनिक और भारी हथियार पहुंचा सकता है.
चीन ने बनाया पुल, भारत की क्या है तैयारी ?
लद्दाख की एक सैटेलाइट तस्वीरों ने एलएसी पर चीन की नीयत को लेकर सवाल खड़े किए हैं. चीन ने लद्दाख के खुर्नाक इलाके में झील पर पुल का निर्माण पूरा कर लिया है. इस पुल के सहारे चीनी सैनिकों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने में देर नहीं लगेगी. चीन इस ब्रिज के जरिए इलाके के दक्षिणी हिस्से तक टैंक जैसे भारी हथियारों को भी ले जा सकेगा.
भारत भी हालांकि, चीन से मुकाबला करने के लिए पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर अपना सैन्य ढांचा मजबूत करने में जुटा है. भारत की सामरिक स्थिति को मजबूत करने वाले इंडिया चाइना बॉर्डर रोड (आईसीबीआर) प्रोजेक्ट के तीसरे चरण का काम शुरू हो गया है. इस प्रोजेक्ट से पूर्वी लद्दाख में भारत की स्थिति मजबूत होगी. आईसीबीआर प्रोजेक्ट के तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) तक सुरक्षाबलों, उनके उपकरणों, हथियारों को तेजी से पहुंचाने में मदद मिलेगी. भारतीय सैनिक हर स्थिति में और हर मौसम में इन मजबूत सड़कों का इस्तेमाल कर पाएंगे.
भारत और चीन के बीच लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है. 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ झड़प के बाद केंद्र सरकार ने उस इलाके में सड़कों के निर्माण का काम तेज कर दिया है.
कांग्रेस ने संसद में की चर्चा की मांग
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने चल रहे संसद सत्र में चीन के मुद्दे पर चर्चा की मांग की है. मनीष तिवारी ने एक्स पोस्ट में लिखा, “चीन ने पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों को जोड़ने वाला एक पुल बनाया है. भारत के लिए इसके गंभीर रणनीतिक परिणाम हैं, क्योंकि इससे चीन को झील के एक किनारे से दूसरे किनारे पर सैनिकों को तेज़ी से ले जाने में मदद मिलती है. इससे पैंगोंग झील क्षेत्र में चीन को रणनीतिक प्रभुत्व हासिल हो जाता है. भारत सरकार अपनी चुप्पी से चीन को रोजाना ज़मीन पर नए तथ्य गढ़ने में सक्षम बना रही है. संसद को अब इस पर चर्चा करनी चाहिए.”
हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए: एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कुछ महीने पहले खुलासा किया था कि साल 2014 से पहले की सरकारों ने कभी भी चीन से सटी सीमाओं पर बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं किया. एस जयशंकर ने कहा था कि जब साल 2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो चीन से सटे सीमा पर बुनियादी ढांचे का बजट 3500 करोड़ रुपये था, लेकिन आज बजट 14,500 करोड़ रुपये से ज्यादा है.
एस जयशंकर ने एक कार्यक्रम में कहा था कि “भारत को 1962 के युद्ध से सबक लेना चाहिए था, लेकिन 2014 तक सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास में कोई प्रगति नहीं हुई. चीन हमारा पड़ोसी है और चाहे वह चीन हो या कोई अन्य पड़ोसी, सीमा समाधान एक तरह की चुनौती है. अगर हमने इतिहास से सबक नहीं सीखा, तो बार-बार गलतियां करते रहेंगे.”
विवाद सुलझाने के लिए नहीं मंजूर किसी की मध्यस्थता
सोमवार को टोक्यो में क्वाड समूह की बैठक के दौरान मीडिया से बात करते हुए जयशंकर ने साफ कहा था कि भारत बातचीत के जरिए चीन से विवाद सुलझाएगा. विदेश मंत्री ने ये भी कहा था कि दोनों देशों के बीच विवाद सुलझाने के लिए किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की जरुरत नहीं है. (चीन से खुद निपटाएंगे विवाद, मध्यस्थता मंजूर नहीं)