क्यों चुप है पाकिस्तान. क्यों चीन की बक-बक पर लग गया है ताला. क्यों चीन-पाकिस्तान सीमा पर दुश्मनों ने चिल्लाना तो दूर फुसफुसाहट भी बंद कर दी है. कारण है भारत की ‘त्रिनेत्र’. क्योंकि भारत की तीसरी आंख रख रही है एलओसी से लेकर एलएसी की हर बातचीत, कम्युनिकेशन और रेडियो-फ्रीक्वेंसी पर नजर. एलओसी से लेकर एलएसी पर चीन और पाकिस्तान के कमांडर क्या बातचीत करते हैं, दुश्मन देश के पायलट आसमान में अपने फाइटर जेट की कॉकपिट में क्या मैसेज कमांड एंड कंट्रोल सेंटर को भेज रहे हैं, रडार स्टेशन से क्या मैसेज भेजा गया, सब भारत की त्रिनेत्र सुन रही है.
फाइनल असॉल्ट आज आपको लेकर आया है भारतीय वायुसेना के एक खास एयर बेस जम्मू में. खास इसलिए क्योंकि ये देशभर में उन चुनिंदा एयरबेस में है जहां भारत की ‘त्रिनेत्र स्क्वाड्रन’ तैनात रहती है. जम्मू एयर बेस की इस त्रिनेत्र स्क्वाड्रन में तैनात है इजराइल के हेरॉन ड्रोन. हेरॉन ड्रोन की जिन खूबियों के बारे में खुद त्रिनेत्र स्क्वाड्रन के कमांडिंग ऑफिसर यानि सीओ ने फाइनल असॉल्ट को बताई, वो आज तक आपने ने न कभी पढ़ी होंगी और न कभी सुनी होंगी. क्योंकि क्योंकि उसी में छिपा है पाकिस्तान और चीन की चुप्पी का राज़.
जिस तरह भगवान शिव की तीसरी आंख (‘त्रिनेत्र’) दुख-सुख, अच्छा बुरा सब देख सकती है, ठीक वैसे ही वायुसेना की ये आई एन द स्काई यानि तीसरी आंख सब कुछ देख सकती है और सुन भी सकती है. क्योंकि इजरायल से लिए ये आरपीए यानि रिमोटली पायलेटेड एयरक्राफ्ट आईएसआईडी तकनीक से लैस हैं. आईएसआर तो आपने सुना होगा—इंटेलिजेंस, सर्विलांस एंड रिकोनिसेंस. लेकिन इसमें एक डी भी जुड़ा है, आईएसआरडी यानि ‘डेजीकनेटेड’ तकनीक. क्या है हेरॉन ड्रोन की डेजीकनेटेड तकनीक इससे पहले सुन लें आईएसआर की उन खूबियों के बारे में जो आपने आज से पहले नहीं सुनी होगी.
जम्मू स्थित त्रिनेत्र स्क्वाड्रन (3003 स्क्वाड्रन) के कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) विंग कमांडर गौरव के मुताबिक, हेरॉन ड्रोन के जरिए आईएसआर यानि इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकोनिसेंस तो किया जाता है साथ ही इसमें लगी लेजर तकनीक से टारगेट को ‘डेजिकनेटे’ भी किया जाता है. विंग कमांडर गौरव कुण्डलिया के मुताबिक, किसी भी युद्ध में जाने के लिए कोई भी सेना एक दिन के आईएसआर पर निर्भर नहीं कर सकती है. ये एक डेली रूटीन प्रक्रिया होती है ताकि जंग में जाने के समय सेना के पास दुश्मन की एक-एक जानकारी हो. यही वजह है कि हेरॉन ड्रोन इलेक्ट्रो-ऑप्टिक कैमरा, सिंथेटिक अपर्चर रडार और इलइन्ट यानि इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस से लैस है.
भारत ने जो इजराइल से हेरॉन ड्रोन लिए हैं वे थलसेना और वायुसेना दोनों ही इस्तेमाल करती है. करीब 30 हजार फीट की उंचाई पर उड़ने के चलते दुश्मन की रडार भी उन्हें नहीं पकड़ पाती है. ये ड्रोन 30 घंटे तक आसमान में रहकर अपने मिशन को अंजाम दे सकते हैं. यही वजह है कि भले ही इऩमें एक फाइटर जेट या फिर टोही विमान की तरह पायलट, नेविगेटर्स और गनर की तरह क्रू मेम्बर कॉकपिट में न बैठते हों लेकिन ग्राउंड पर ये सभी मौजूद रहते हैं. भले ही हेरोन एक अनमैन्ड एयरक्राफ्ट है लेकिन उसके लिए ग्राउंड स्टाफ की जरूरत जरूर पड़ती है.
फाइनल असॉल्ट के एडिटर इन चीफ नीरज राजपूत जब जम्मू एयरबेस में मौजूद थे उस दौरान त्रिनेत्र स्क्वाड्रन को एक मिशन के बारे में इनपुट मिला. इसलिए एक हेरॉन ड्रोन को फाइनल असॉल्ट की मौजूदगी में ही एयर-बोर्न किया गया. विंग कमांडर गौरव ने इस मिशन से जुड़ी संवेदनशील जानकारी तो हमसे साझा नहीं की लेकिन उन्होनें इतना जरूरत बताया कि उन्हें किस किस तरह के मिशन के लिए भारतीय सेना, पुलिस, बीएसएफ इत्यादि से मदद की जरूरत पड़ती है.
वर्ष 2016 में पठानकोट एयर बेस पर हुए हमले के दौरान सबसे पहले आतंकियों की इमेज इसी स्क्वाड्रन की ड्रोन ने ही कमांडोज से साझा की थी जिसके बाद उनकी लोकेशन पता चली और ढेर किया गया. एलओसी पर पाकिस्तान की तरफ से होने वाली आतंकियों की घुसपैठ के दौरान भी हेरॉन को तैनात किया जाता है ताकि आतंकियों की लोकेशन और उनकी हरकत पर नजर रियल टाइम में रखी जा सके.
यहां तक की पिछले साल फरवरी में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू कश्मीर के दौरे पर आए थे तब उनके खास विमान एयरफोर्स-1 को भी हेरॉन ने अपने सुरक्षा-कवच में घेरा हुआ था. वर्ष 2020 में गलवान घाटी की लड़ाई के दौरान इन हेरोन ड्रोन को पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर भी एक लंबे समय तक तैनात किया गया था. कमांडिंग ऑफिसर ने बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े किसी भी घटना के लिए हेरॉन की तैनाती एक बेहद ही गर्व की बात है जो सशस्त्र सेनाओं के बीच सिनर्जी और इंटीग्रेशन का एक बड़ा उदाहरण है.
दुनियाभर में जो युद्ध हो रहे हैं, चाहे फिर वो आर्मेनिया-अजरबैजान हो या फिर रूस-यूक्रेन युद्ध, उससे साफ हो गया है कि ड्रोन एक ऐसी कटिंग एज टेक्नोलॉजी है जो किसी भी युद्ध का मुंह मोड़ सकती है. कोई भी देश अपनी मिलिट्री टेक्नोलॉजी में यूएवी और आरपीए को नजरअंदाज नहीं कर सकता है. अगर ऐसा किया तो उस देश की सेना को गंभीर परिणाम सहना पड़ सकता है. यही वजह है कि भारत भी ड्रोन टेक्नोलॉजी के जरिए दुश्मन से एक कदम आगे रहना चाहता है. जल्द ही भारत और अमेरिका के बीच एमक्यू-9बी रीपर ड्रोन से जुड़ा समझौता हो सकता है. भारत अमेरिका से 31 ड्रोन ले रहा है जिन्हें आर्म्ड भी किया जा सकता है. ठीक वैसे ही जैसे हेरोन को बम और मिसाइलों से लैस किया जा सकता है. इन 31 रीपर ड्रोन में से 15 भारतीय नौसेना को हिन्द महासागर की निगहबानी के लिए मिलेंगे और 8-8 वायुसेना और थलसेना को. इसके अलावा डीआरडीओ द्वारा तैयार तपस ड्रोन भी तैयार है और जल्द ही इसको लेकर बड़ा ऐलान हो सकता है.
नीरज राजपूत देश के जाने-माने मल्टी-मीडिया वॉर-जर्नलिस्ट हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी पुस्तक ‘ऑपरेशन Z लाइव’ हाल ही में प्रकाशित हुई है.