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यूक्रेन युद्ध: कैसे होगा हार जीत का फैसला

रुस-यूक्रेन युद्ध को दो साल पूरे हो चुके हैं और तीसरे वर्ष में दाखिल हो चुका है. युद्ध कब खत्म होगा कोई नहीं जानता. लेकिन दो साल बाद ये साफ हो चुका है कि युद्ध में ऊंट किस करवट बैठा है यानी जंग में किसका पलड़ा भारी है. क्योंकि युद्ध के पहले साल में तो ये भी साफ-साफ नहीं था कि जंग में किस का दबदबा है—रूस का या यूक्रेन का. 

यूक्रेन जंग के दो साल पूरे होने से महज दो दिन पहले रुस से आए वीडियो ने सबकी नींद उड़ा दी. इस वीडियो में रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन स्ट्रेटेजिक मिसाइल से लैस बॉम्बर (एयरक्राफ्ट) टी-160 एम को उड़ाते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. इस वीडियो से दो बात साफ हैं. पहला ये कि पुतिन कॉकपिट में बैठकर बॉम्बर को आत्मविश्वास के साथ कंट्रोल में दिखाई पड़ रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसा उन्होने हाल ही में एक चार-पांच घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस दिखाया था. 

24 फरवरी 2022 को जब पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन (आक्रमण) की घोषणा की थी तब डोनबास का पूरा इलाका यूक्रेन का अभिन्न अंग था. लेकिन पहले दो स्थानीय मिलेशिया (विद्रोही ग्रुप) को खड़ाकर पुतिन ने डोनबास के टुकड़े कर को दो अलग देश (दोनेत्स्क और लुहांस्क) बनाए जाने की घोषणा की और फिर जनमत संग्रह कराकर उन्हें अपने देश (रशिया) में शामिल कर लिया. डोनबास का क्षेत्रफल पूरे यूक्रेन का करीब एक चौथाई हिस्सा है. अगर इसमें क्रीमिया को भी जोड़ लें जो पुतिन ने यूक्रेन से वर्ष 2014 में छीन लिया था तो ये करीब एक तिहाई हो जाता है. 

किसी भी युद्ध के फैसले में ये बेहद मायने रखता है कि किस देश ने कितना एरिया जीता है या खोया है. अगर ऐसा है तो रुस जंग जीत चुका है. लेकिन अगर रुस जंग जीत चुका है तो फिर युद्ध क्या खत्म नहीं हो रहा. 

युद्ध की दूसरी वर्षगांठ पर यूक्रेन की राजधानी कीव से भी एक तस्वीर सामने आई. इस तस्वीर में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की करीब 100 देशों के राजदूत और प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात कर रहे हैं. इनमें उन देशों के प्रतिनिधि भी शामिल थे जो युद्ध में तटस्थ भूमिका में है. भारत भी एक ऐसा ही देश है. इसके अलावा इटली, कनाडा और बेल्जियम जैसे देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी कीव का दौरा किया. यूरोपियन यूनियन की अध्यक्ष भी इस दौरान यूक्रेन पहुंची. लेकिन पिछले कुछ महीनों से जेलेंस्की की जितनी भी तस्वीरें और वीडियो सार्वजनिक रूप से सामने आए हैं उनमें वे थके-हारे से दिखाई पड़ते हैं. 

अमेरिकी संसद (कांग्रेस) द्वारा यूक्रेन की मदद से इंकार से जेलेंस्की निराश हो गए हैं. जर्मनी और दूसरे ईयू देशों के सैन्य मदद के बावजूद यूक्रेन की सेना काउंटर-ऑफेंसिव यानी रुस पर जवाबी कारवाई में सफल नहीं हो पाई है. इसका बड़ा कारण ये है कि रुस ने डोनबास की सीमा पर जबरदस्त घेराबंदी कर रखी है. हजारों की तादाद में सीमा पर लैंड माइंस (बारूदी सुरंग) लगाने से यूक्रेनी सीमा आगे नहीं बढ़ पा रही है और डोनबास को वापस लेने का सपना हकीकत में तब्दील होता नहीं दिखाई पड़ रहा है. 

पिछले हफ्ते ही रुस की सेना ने यूक्रेन से अवदिव्का नाम के एक दूसरे शहर को छीन लिया. यानी जहां यूक्रेन की सेना डोनबास में आगे नहीं बढ़ पा रही है रुस की सेना अभी भी आगे बढ़ते जा रही है. लेकिन रुस की सेना कहां जाकर रुकेगी. क्या पुतिन की सेना कीव में जाकर रुकेगी. अगर ऐसा है तो फिर दो साल पहले जब यूक्रेन के खिलाफ स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन शुरु किया था तो कीव के बाहरी इलाकों से अपनी सेना को वापस क्यों बुला लिया था. रुस का दावा है कि शांति वार्ता की शर्त के चलते सेना को वापस बुलाया था लेकिन जेलेंस्की ने ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के दबाव में हस्ताक्षर नहीं किया. ऐसे में सवाल है कि अब क्या शांति वार्ता का कोई रास्ता बचा है या नहीं. 

यूरोप के कई देश अभी भी भारत जैसे तटस्थ देशों को रुस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने के लिए एक्टिव भूमिका निभाने का जोर डाल रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि पिछले साल सितंबर के महीने में दिल्ली में हुई जी-20 समिट में ग्रेन-डील के लिए रुस को तैयार करना शामिल है. पूरी दुनिया जानती है कि आज अगर पुतिन को किसी समझौते के लिए मना सकता है तो वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं जो रुस के राष्ट्रपति को सार्वजनिक तौर से कह सकते हैं कि ये युग युद्ध का नहीं है. 

इसी से जुड़ा है पुतिन के बॉम्बर वाले वीडियो का दूसरा आशय. अगर पुतिन को जरा भी ये अंदेशा हुआ है कि अमेरिका या दूसरे नाटो (यूरोपीय) देश पारंपरिक जंग में हावी हो रहे हैं तो उनका हाथ स्ट्रेटेजिक मिसाइल को लॉन्च करने वाले बटन तक भी पहुंच सकता है. ऐसे में पूरी मानवता पर संकट के बादल छा जाएंगे. यही वजह है कि पारंपरिक युद्ध कहीं डर्टी-वॉर में तब्दील ना हो जाए, उसे रोकना बेहद जरूरी है. 

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