अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन के खिलाफ तिब्बत बिल को मंजूरी दे दी है. चीन-तिब्बत डिस्प्यूट एक्ट के जरिए बीजिंग को तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से सभी विवादों को सुलझाने के लिए सीधे बातचीत का आह्वान किया गया है. हालांकि, इस विधेयक में एक बार फिर से तिब्बत को चीन का हिस्सा बताया गया है.
अपने कार्यकाल के आखिरी साल में बाइडेन ने अमेरिका कांग्रेस (संसद) द्वारा पास किए गए विधेयक, प्रोमोटिंग ए रेजुलेशन ऑन द तिब्बत-चायना डिस्प्यूट एक्ट पर हस्ताक्षर कर दिया. इसी एक्ट के जरिए अमेरिकी कांग्रेस ने तिब्बत में मानवाधिकार स्थिति और शासन के शांतिपूर्ण समाधान के लिए चीन से अपील की है. हालांकि, चीन की प्रतिक्रिया अभी तक इस बिल (एक्ट) पर सामने नहीं आई है.
अमेरिका एक्ट के मुताबिक, चीन को तिब्बत की भाषा, संस्कृति और धार्मिक विरासत को सुरक्षित रखने की बात की गई है.अमेरिका के इस प्रस्ताव में बीजिंग से अपील की गई थी कि वो दलाई लामा से एक बार फिर बातचीत शुरू करें.
साल 2002 से लेकर 2010 के बीच चीन और दलाई लामा के प्रतिनिधि के बीच नौ राउंड की बातचीत हुई. लेकिन अबतक कोई हल नहीं निकला है. उसके बाद से चीन और दलाई लामा में कोई भी औपचारिक बातचीत नहीं हुई है.
हाल ही में अमेरिकी सीनेट की पूर्व स्पीकर नैन्सी पेलोसी कांग्रेस की विदेश मामलों की कमेटी के सदस्यों के साथ धर्मशाला (भारत) आई थीं और दलाई लामा से मुलाकात की थी. उस दौरान तिब्बत के एक अधिकारी ने एक्स अकाउंट पर लिखा था कि “अमेरिकी संसद में पास हुए बिल का स्वागत करता हूं. यह तिब्बत के लोगों को 70 साल से अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए और मजबूत बनाएगा.” (चीन नहीं चुन पायेगा दलाई लामा का उत्तराधिकारी: पेलोसी)
क्या है चीन-तिब्बत में विवाद?
दरअसल चीन हमेशा से तिब्बत पर दावा ठोकता रहा है. चीन का दावा है 13वीं शताब्दी में तिब्बत चीन का हिस्सा था. तिब्बत, हालांकि चीन के दावों को बेबुनियाद बताता रहा है. साल 1912 में तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था. तब चीन को कोई आपत्ति नहीं थी. जब चीन में कम्युनिस्ट सरकार आ गई तो साल 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला कर गैर-कानूनी कब्जा कर लिया.
चीन की विस्तारवादी और दमनकारी नीति से दुनिया वाकिफ है. बाद में धर्मगुरु दलाई लामा पर दबाव बनाकर चीन ने संधि समझौते पर हस्ताक्षर करवा लिया. इसके बाद तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह की स्थिति हो गई. साल 1959 में लोगों ने आशंका जताई कि चीन दलाई लामा को बंधक बनाने वाला है. जिसके बाद सैनिक के वेशभूषा में बचकर तिब्बत की राजधानी ल्हासा से छिपकर दलाई लामा ने भारत से शरण मांगी. असम के तेजपुर में पहुंचे दलाई लामा को भारत ने सम्मान के साथ शरण दी. माना जाता है कि साल 1962 में चीन-भारत में हुए युद्ध की एक वजह दलाई लामा को शरण देना भी था. दलाई लामा आज भी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं. धर्मशाला से ही तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है [Indo-Tibet: द दलाई लामा बटालियन (TFA Special)].
चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया और शांतिपूर्वक विरोध करने वाले स्थानीय लोगों पर जबरदस्त जुल्म ढाए गए. तिब्बती मठों को तोड़ दिया गया और तिब्बत के धार्मिक रीति-रिवाजों में दखलंदाजी की गई. यहां तक की तिब्बती मान्यताओं के जरिए अगले दलाई लामा के चुनने में भी चीन अड़ंगा लगा रहा है. यही वजह है कि अमेरिका ने चीन पर दबाव डालने के लिए ये विधेयक अपनी संसद में पास किया है (तिब्बत में Xi के डैम के खिलाफ विद्रोह (TFA Exclusive)).
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