July 5, 2024
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यूक्रेन battlefield में रुस, अमेरिका की Live भिड़ंत

रुस और यूक्रेन की रणभूमि से एक ऐसा वीडियो सामने आया है जिससे हर किसी के रोंगटे खड़े हो सकते हैं. क्योंकि ये रुस और अमेरिका के आर्मर्ड व्हीकल्स (बख्तरबंद गाड़ियों) की आमने-सामने की जंग प्रदर्शित करता है. कैसे अमेरिका द्वारा यूक्रेन को दिए हुए ब्रैडली इंफेंट्री कॉम्बैट व्हीकल (आईएफवी) और रुस के बीटीआर आर्मर्ड पर्सनल कैरियर (एपीसी) की टक्कर दिखाता है. सोशल मीडिया पर इस मीडिया को लेकर अपने-अपने तर्क दिए जा रहे हैं कि आखिर जीत किसकी हुई, अमेरिका की या रुस की. 

करीब एक मिनट की इस वीडियो को ड्रोन के जरिए कैमरे में कैद किया गया है. वीडियो में खुले मैदानों के बीच रुस का बीटीआर एपीसी (आईएफवी) बेहद तेजी से दौड़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है. सड़क के दोनों तरफ खुले मैदान में कई जगह काला धुंआ उठता हुई दिखाई पड़ रहा है. यानी ये रुस या फिर यूक्रेन सेना का डिफेंसिव एरिया दिखाई पड़ रहा है जिस पर कब्जा करने की लड़ाई चल रही है. 

रुसी बीटीआर फायरिंग भी कर रहा है और उसपर ताबड़तोड़ फायर भी हो रहा है. जैसे ड्रोन कैमरा करीब पहुंचता है तो रुसी बीटीआर से एक सैनिक नीचे गिरते हुए दिखाई पड़ता है. लेकिन बीटीआर तभी सड़क से किनारे होकर कच्चे रास्ते की तरफ दौड़ने लगता है. तभी सड़क पर अमेरिकी ब्रैडली आता हुआ दिखाई पड़ता है. इसी दौरान रुस का बीटीआर जो कच्चे रास्ते पर दौड़ रहा था उसका टरेट घूमता है और अमेरिकी ब्रैडली पर फिर से फायरिंग शुरु कर देता है. लेकिन अमेरिकी ब्रैडली का टरेट नहीं घूम पाता है और सड़क पर विपरीत दिशा में चला जाता है. 

ड्रोन कैमरा अभी भी रुसी बीटीआर पर टिका हुआ है. बीटीआर से स्मोक (धुआं) निकलता दिखाई पड़ता है और उसमें से एक दूसरा रूसी सैनिक नीचे गिरता है और पलटी मारता है. ऐसा दिखाई पड़ता है कि ये सैनिक जानबूझकर बीटीआर से नीचे कूदा है. ड्रोन कैमरा अब जूम आउट हो जाता है यानी ड्रोन फुटेज अब दूर से ली जा रही है. वीडियो में दिखाई पड़ता है कि रूसी बीटीआर सड़क के किनारे दो-तीन टूटे-फूटे घरों की तरफ रुख करता है और पेड़ और झाड़ियों के झुरमुट में आड़ ले लेता है. इसके साथ ही वीडियो खत्म हो जाता है. इस वीडियो को यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने भी अपने ऑफिसियल एक्स अकाउंट पर साझा किया है. यहां तक वीडियो देखने में ऐसा लगता है कि रुस के बीटीआर को अमेरिकी ब्रैडले ने आमने-सामने की लड़ाई में हरा दिया है. लेकिन ये एडिटेड वीडियो है यानी पूरा वीडियो नहीं है जो यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है (https://x.com/DefenceU/status/1799436431846244641).

दरअसल, इस वीडियो का एक थोड़ा बड़ा वर्जन (1.09 मिनट का) भी है. उस वीडियो के बारे में बताने से पहले जो वीडियो यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने साझा किया है उसे थोड़ा डाइसेक्ट कर लेते हैं. दरअसल, जब 47 सेकंड का वीडियो जहां खत्म होता है वहां रुसी बीटीआर से स्मोक निकल रही है और कुछ दिखाई नहीं पड़ता है. लेकिन अगर वीडियो को जूम करके देखा जाए तो उस स्मोक से कुछ सैनिक पोजीशन लेते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है कि रूसी सैनिक सड़क के किनारे जो बड़ा सा टूटा-फूटा घर दिखाई पड़ रहा है उसपर असॉल्ट करने या फिर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं. 

एक मिनट से ज्यादा वाले वीडियो में 47 सेकंड के बाद दिखाई पड़ता है कि अमेरिकी ब्रैडली सड़क पर खड़ा हुआ है यानी उसपर हुए हमले से वो इमोबिलाइज हो चुका है. वीडियो में यूक्रेनी सैनिक ब्रैडली को छोड़कर खेतों की तरफ भागते हुए दिखाई पड़ते हैं. एक बम का गोला भी ब्रैडले के ठीक सामने आकर गिरता हुआ भी दिखाई पड़ता है (https://x.com/MyLordBebo/status/1799143918895816971).

हालांकि, ये साफ नहीं है कि वीडियो कब का है और कहां का है लेकिन माना जा रहा है कि ये हाल ही में सामने आया है और यूक्रेन के अवदीव्का इलाका का है जिस पर अब रुस का कब्जा है.

दरअसल, जंग के मैदान में इंफेंट्री सैनिकों को सुरक्षित पहुंचाने के लिए आईएफवी (या एपीसी) का इस्तेमाल किया जाता है. भारतीय सेना के इतर रुस, अमेरिका और चीन जैसे देशों में पैदल-सैनिकों की यूनिट लगभग खत्म कर दी गई हैं. ऐसे में सैनिकों के मूवमेंट के लिए इन इंफेंट्री कॉम्बैट व्हीकल का इस्तेमाल किया जाता है. भारतीय सेना में रुस के बने बीएमपी इंफेंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स (आईसीवी) का इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि भारतीय सेना में मैकेनाइज्ड-इंफेंट्री को अलग रेजीमेंट के तौर पर खड़ा किया गया है.

आईएफवी (या आईसीवी) में दो-तीन क्रू होता है और इसमें छह-सात सैनिकों के बैठने की जगह होती है. मॉर्डन आईएफवी मशीन-गन और एटीजीएम यानी एंटी-टैंक गाईडेड मिसाइल से लैस होते हैं. अपने गंतव्य पर पहुंचकर इसमें सवार सैनिक दुश्मन पर अचानक से हमला बोलते हैं. अमेरिका ने यूक्रेन को जो ब्रैडली आईएफवी दिए हैं वे 80 के दशक में बनाए गए थे. रुस के बीटीआर भी 80 के दशक में बनाए गए थे और दुनियाभर की एक दर्जन से ज्यादा देशों की सेनाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. 

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